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बड़े-बड़े ऋषि मुनि और तपस्वी इन्हीं प्रकृति की गोद में बरसों बरस आसन लगाकर तपस्या करते

सरायकेला -खरसवाॅ (संजय मिश्रा ) वेद वेदांतर कालों से प्रचलित रहा है कि प्रकृति वास्तविक रुप से अपने सोलह श्रृंगारों के साथ अरण्य यानी वनों की हरियाली के बीच निवास करती है। शायद यही कारण रहा होगा कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि और तपस्वी इन्हीं प्रकृति की गोद में बरसों बरस आसन लगाकर तपस्या करते हुए ईश्वर शक्ति की साक्षात प्राप्ति किया करते थे। यहां फेफड़ों के लिए शुद्ध हवा है। तो मन: शांति के लिए विशुद्ध वातावरण है।

आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ ने वन के प्राकृतिक जीवन को सबसे अधिक नुकसान

परंतु इसके साथ ही सभ्यता के विकास के साथ तथाकथित आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ ने वन के प्राकृतिक जीवन को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने का काम किया है। मॉर्डन होते आज के इस हाईटेक युग में किसी न किसी रूप में मानव की चाहतों का सबसे अधिक भार जंगलों पर पड़ा है। जिसका परिणाम है कि दुनिया भर के जंगलों का मनुष्य ने अपनी लालसा और लालच की पूर्ति के लिए भरपूर दोहन किया है। इसके फलस्वरूप जंगल के मूल जीवन में काफी परिवर्तन भी आया है। पुरातन काल के कई पक्षी और जीव अब लोगों के याद से भी मिट चुके हैं।

पर्यावरण के सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध और चील जैसे पक्षी अब कभी कभार और लगभग ना के बराबर ही नजर आते हैं।

जिसका ताजा उदाहरण है कभी बहुतायत में आसमान में मंडराते देखे जाते पर्यावरण के सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध और चील जैसे पक्षी अब कभी कभार और लगभग ना के बराबर ही नजर आते हैं। वन्य जीवन और वन्य जीव के संरक्षण के सरकार के लाखों दावे और कार्यक्रम सीमित वन्यजीवों एवं वन संसाधनों के संरक्षण तक देखा जा रहा है।

परंतु इन सभी के बीच में एक बात पॉजिटिव यह भी है कि प्रकृति अपने आप को संवारने के लिए अपना खेल बखूबी खेलती है।


पिछले लॉकडाउन ने बदल दी है जंगल की जिंदगी, एक और बदलाव का है इंतजार ………..

बीते वर्ष कोरोना संकटकाल में लगाए गए लॉकडाउन की एक ओर जहां विभिन्न प्रकार के चर्चा की गई। और रोजी रोजगार से लेकर व्यवसाय और विकास को लेकर चारों ओर हाहाकार मचा रहा। वहीं दूसरी ओर सरायकेला खरसावां जिले के राजनगर वन परिसर क्षेत्र के जंगलों में राष्ट्रीय पक्षी मोर की कुहूक गूंजने लगी।राजनगर वन परिसर के फॉरेस्टर इंचार्ज शुभम पंडा बताते हैं कि क्षेत्र के सितानी और राजाबासा वन क्षेत्र में बीते लॉकडाउन के बाद काफी संख्या में मोर पक्षी के बढ़ने के ट्रेस मिले हैं। इसके अलावा जंगली सूअर, लंगूर, भालू, खरगोश एवं खेड़िया की संख्या में भी उत्साहित करने वाली वृद्धि देखी जा रही है।

इतना ही नहीं राजाबासा जंगल के बीचोबीच तकरीबन 400 फीट की ऊंचाई पर प्राकृतिक जलाशय भटकते जंगली हाथियों को प्राकृतिक आश्रय प्रदान कर रहे हैं। जहां ठंडी के दिनों में बाहर से पहुंचे जंगली गजराज यहां आश्रय ले रहे हैं। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि बीते लॉकडाउन के दौरान जंगल क्षेत्रों में मानव का प्रवेश और हस्तक्षेप नहीं के बराबर रहा है। जिसका परिणाम रहा कि शुद्ध वातावरण के साथ वन्य जीव एवं वृक्ष और संपदा में भी मुक्त तरीके से विकास हुआ है।
अवसर एवं संरक्षण मिले तो भव्य टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित हो सकता है।

राजाबासा के जंगलों में आज भी कई पौराणिक कथा विलीन है ……

राजाबासा वन भूमि के बीचो बीच तकरीबन 400 फीट की ऊंचाई पर एक रहस्यमई प्राकृतिक जिला से तालाब के रूप में है। बताया जाता है कि करीब 200 वर्ष पूर्व ईचा के तत्कालीन महाराज द्वारा इसे बनवाया गया था। जब वे यहां आखेट के लिए आया करते थे। जहां उनके आवागमन और विश्राम गृह का अवशेष आज भी मौजूद देखा जाता है। रहस्य की बात है कि इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद भी उक्त जलाशय में सालों भर लबालब पानी की स्थिति बनी रहती है। और जंगल के वन्य जीव उक्त जलाशय में जल क्रीड़ा के साथ-साथ प्यास बुझाने का काम करते हुए देखे जाते हैं। फॉरेस्टर इंचार्ज बताते हैं कि बेहतर टूरिस्ट प्लेस बनाए जाने की सभी संभावनाओं वाले उक्त क्षेत्र में माउंटेन ट्रैकिंग के साथ-साथ फोटोशूट और अच्छे गाइड की सहायता से सुरक्षित वन भ्रमण के अवसर उपलब्ध है। इसके अलावा वन क्षेत्र की समर्पित भाव से रक्षा कर रही स्थानीय ग्राम वन समिति द्वारा तैयार किया जाने वाला उत्तम मध्यान्ह भोजन का आनंद टूरिस्ट यहां ले सकेंगे। जिसकी शुरुआत भी सरायकेला से पहुंचे 3 पर्यटकों द्वारा बीते रविवार को की गई। जिसकी सराहना टूरिस्ट द्वारा दिल की गहराइयों से की गई है। बताते चलें कि उक्त जलाशय से तकरीबन 200 फीट ऊपर ग्रामीणों के कुलदेवी का पूजा स्थल भी है। जिसकी पूजा प्रत्येक वर्ष पुजारी द्वारा संपन्न कराई जाती है। परंतु पूजा स्थल तक पहुंचने के रास्ते इतने दुर्गम हैं कि अन्य कोई ग्रामीण वहां तक पहुंच नहीं पाते हैं।
लालच तजे तो धरती पर ही बन सकता है स्वर्ग:-

सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य के जंगल क्षेत्र में लगातार बढ़ते हुए हस्तक्षेप ने मानव जाति और वन्यजीवों के बीच एक अघोषित युद्ध छेड़ रखी है। जो एक दूसरे को देखते ही अपनी सुरक्षा की दृष्टि से उग्र होकर एक दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं। जिसका परिणाम है कि दोनों ही पक्षों को समय-समय पर जान और माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। मनुष्य की लापरवाही और हस्तक्षेप इन दिनों बड़े पैमाने पर दावानल के रूप में देखने को मिल रहा है।

जब बीड़ी या सिगरेट पीते हुए जंगल में घुसे लोग लापरवाह तरीके से जलती बीड़ी और सिगरेट को फेंक देते हैं। गर्मी के दिनों में यह जंगल क्षेत्र में व्यापक आगजनी के रूप में घटना घट रही है। जो वन्यजीवों से उनके प्राकृतिक आश्रय और उनका भोजन छीन रहे हैं। इसके अलावा विभिन्न कारणों से वनों की कटाई भी वन्य जीवन को तहस-नहस कर रही है। जिसका परिणाम है कि जंगल के जीव आवास और भोजन के लिए शहरों की ओर पहुंच रहे हैं।
” बीते लॉकडाउन में थमी जिंदगी के कारण जंगल के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है। हरियाली बढ़ने के साथ-साथ वन्य जीवो की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। राजनगर वन परिसर के सितानी एवं राजाबासा वन क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर सहित लंगूर, भालू, खरगोश एवं जंगली सूअर जैसे वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी देखा जा रहा है। राजाबासा वन क्षेत्र बेहतर टूरिस्ट प्लेस बनने की संभावना के रूप में उभरा है।”

शुभम पंडा, फॉरेस्टर इंचार्ज, राजनगर वन परिसर।
                 
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