रथयात्रा विशेष: जगन्नाथ सेवा समिति सरायकेला कर रही है परंपरागत रथ यात्रा की तैयारी; आज मनेगा पवित्र देव स्नान पूर्णिमा . . .
अलौकिक है सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ का आगमन।
आज देवस्नान के बाद खट्टे आमड़े की सब्जी खाकर महाप्रभु 15 दिनों के लिए होंगे बीमार।
सरायकेला संजय
जगन्नाथ धाम पुरी के तर्ज पर सरायकेला में आयोजित होने वाले वार्षिक जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास तकरीबन ढाई सौ साल पुराना रहा है। जिसका शुभारंभ पावन अक्षय तृतीया के अवसर पर महाप्रभु श्री जगन्नाथ के रथ निर्माण के साथ हो चुका है।
उत्कलीय जगन्नाथ परंपरा के अनुसार आगामी 20 जून से शुरू होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा के धार्मिक संस्कारों की शुरुआत रविवार को देव स्नान पूर्णिमा के साथ की जाएगी। इसे लेकर जगन्नाथ सेवा समिति सरायकेला द्वारा विशेष तैयारी की जा रही है। जिसके तहत प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर सरायकेला के प्रांगण में श्रद्धालुओं की उपस्थिति में श्री मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी रविवार को प्रातः 8:00 बजे से पवित्र देव स्नान पूर्णिमा मनाते हुए विशेष देव स्नान पूजा अर्चना का आयोजन कर 1001 पवित्र कलशों महाप्रभु श्री जगन्नाथ, अग्रज बलभद्र और बहन सुभद्रा का स्नान कराया जाएगा।
जिसके पश्चात सायं 7:00 बजे से स्थानीय कलाकारों द्वारा भजन संध्या कार्यक्रम एवं श्रद्धालुओं के बीच महाप्रसाद का वितरण किया जाएगा। उक्त जानकारी देते हुए जगन्नाथ सेवा समिति सरायकेला के अध्यक्ष राजा सिंह देव ने बताया कि देव स्नान पूर्णिमा अनुष्ठान स्नान कृषि कैलेंडर से जुड़ा होकर मानसून की शुरुआत का संकेत देता है। सरायकेला स्थित प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर के पुजारी सह सेवक पंडित ब्रह्मानंद महापात्र बताते हैं कि पंचागीय दशा के अनुसार इस वर्ष की रथ यात्रा खास होगी।
ऐसे होंगे धार्मिक अनुष्ठान:-
4 जून- देवस्नान पूर्णिमा।
18 जून- नेत्र उत्सव।
19 जून- उभा यात्रा।
20 जून- रथ यात्रा प्रारंभ।
21 जून- मौसी बाड़ी आगमन।
24 जून- हेरा पंचमी पर रथभांगिनी।
27 जून- मां विपदातारिणी पूजा।
28 जून- बाऊड़ा ( घूरती रथ प्रारंभ).
29 जून- महाप्रभु का श्री मंदिर आगमन के साथ देवशयनी एकादशी पर महाप्रभु का चातुर्मास शयन प्रारंभ।
देवस्नान पूर्णिमा पर खट्टा खाकर महाप्रभु आज होंगे 15 दिनों के लिए बीमार:-
कलियुग में जीवंत देव के रूप में पूजे जाने वाले महाप्रभु श्री जगन्नाथ के सभी धार्मिक अनुष्ठान जीवन से जुड़े हुए हैं। इसे लेकर 4 जून रविवार को वार्षिक रथयात्रा के धार्मिक अनुष्ठानों का शुभारंभ देवस्नान पूर्णिमा के साथ किया जाएगा। धार्मिक मान्यता और परंपरा के अनुसार इस दिन महाप्रभु को 1001 कलशों के पवित्र, औषधियां और सुगंधित द्रव्यों से मिश्रित जल से स्नान करवाया जाएगा। जिसके बाद नए वस्त्र धारण कराकर महाप्रभु को उनके अग्रज बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ श्री मंदिर के सिंहासन पर विराजमान किया जाएगा।
इस अवसर पर भक्तगण महाप्रभु के नवयौवन रूप का दर्शन कर पूजा-अर्चना करेंगे। मौके पर महाप्रभु को खीर एवं खिचड़ी के साथ खट्टे आमड़े की सब्जी का भोग चढ़ाया जाएगा। देव स्नान के बाद भोजन में खट्टे आमड़े की सब्जी का सेवन करके महाप्रभु 15 दिनों के लिए ज्वर से पीड़ित होकर बीमार हो जाएंगे। जिसके बाद अगले 15 दिनों तक स्वास्थ्य लाभ के लिए श्री मंदिर स्थित अन्नसर गृह में चले जाएंगे। इन 15 दिनों में भक्त महाप्रभु के दर्शन नहीं कर पाएंगे। और सिर्फ मंदिर के पुजारी द्वारा बीमार के दिनों में उनकी सेवा की जाती है। इस दौरान महाप्रभु को पहले 5 दिन पर यानी 29 जून को पंचमूल औषधि दी जाएगी। और उसके 10 दिनों बाद यानी 9 जुलाई को दशमूल औषधि दी जाएगी। जिसके बाद महाप्रभु स्वस्थ होकर 18 जून को नेत्र उत्सव के दिन अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
अलौकिक है सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ का आगमन:-
सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के पूजन की परंपरा तकरीबन ढाई सौ साल पुरानी बताई जाती है। इनके सरायकेला आगमन के संबंध में बताया जाता है कि उड़ीसा स्थित ढेंकानाल के पुजारी पंडित जलंधर महापात्र को नदी में स्नान करने के क्रम में महाप्रभु के विग्रह ( लकड़ी) का दर्शन बहते हुए हुआ था। जिसे घर लाकर पुजारी ने श्रृंगार करते हुए पूजा अर्चना शुरू की। कुछ समय पश्चात पंडित जलंधर महाप्रभु के विग्रह को लेकर तत्कालीन सरायकेला स्टेट में पहुंचे और खपरैल घर में महाप्रभु को स्थापित कर पूजा-अर्चना करने लगे। इसी दौरान युद्ध के लिए जा रहे सरायकेला स्टेट के तत्कालीन महाराज अभिराम सिंह को कुटिया से घंटी की आवाज आती हुई सुनाई दी।
इस पर वह कुटिया में जाकर महाप्रभु से युद्ध विजय का आशीर्वाद मांगे। युद्ध से विजयी होकर लौटने के बाद उन्होंने पुजारी सहित महाप्रभु को लाकर खरकई नदी के तट पर जमीन देकर बसाया। इसके बाद प्रसिद्ध शिल्पकार चंद्रमोहन महापात्र के निर्देशन में इसे भव्य रूप देकर मंदिर का निर्माण कराया गया। जो पश्चिम बंगाल स्थित बांकुड़ा और उड़ीसा के मिश्रित मंदिर वास्तुकला निर्माण शैली का उदाहरण है। टेराकोटा पद्धति से तकरीबन पौने दो सौ साल पहले उक्त प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर का निर्माण कराया गया था।
परंतु वर्तमान में मंदिर के ऊपर नीम और पीपल के वृक्ष उगाने के कारण धरोहर की श्रेणी में गिने जाने वाले उक्त मंदिर का गुंबद भाग धड़कने लगा है। जिसे लंबे समय से संरक्षित किए जाने की आवश्यकता जताई जा रही है। वही परंपरागत तरीके से महाप्रभु श्री जगन्नाथ के पूजा परंपरा को लेकर पुजारी जालंधर महापात्र की 10 वीं पीढ़ी आज महाप्रभु की सेवा कर रही है। मंदिर के वर्तमान पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा प्रतिदिन प्रातः कालीन पूजा अर्चना, भोग अर्पण और संध्या आरती की जाती है।
महाप्रभु के पूजा अर्चना सहित संस्कृति के संरक्षक सरायकेला के राजा पदेन होते हैं। उड़ीसा से बिहार के विभाजन के समय सरकार के साथ हुए राजकीय करार के अनुसार 1 जनवरी 1948 से उक्त मंदिर की देखरेख और परंपराओं के निर्वहन का अधिकार राज्य सरकार के पास होने के बावजूद परंपरा अनुसार इसके संरक्षक सरायकेला के वर्तमान राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव हैं। इसके अलावा वर्ष 2007 से जगन्नाथ सेवा समिति उक्त मंदिर की देखरेख और परंपराओं का निर्वहन कर रही है।