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समाज और जीवन के मार्मिक पक्ष बुढ़ापे की दहलीज को लेकर जिले के प्रबुद्ध पारा शिक्षक कुणाल दास ने की रचना; सोशल मीडिया पर मिल रहे लाइक और पॉजिटिव कमेंट्स।

रफ़्तार भरी दुनिया की भीड़ से परे,कुछ गुफ्तगू आज़ भी कर लेते हैं: कुणाल

सरायकेला : संजय मिश्रा

सरायकेला। जिले के प्रबुद्ध पारा शिक्षक कुणाल दास ने बुढ़ापे की दहलीज को लेकर दो वृद्ध जनों की आपसी वार्तालाप को उनके हिसाब से रचनाओं में संवारा है। जीवन और समाज के सबसे मार्मिक पहलू जिसे आमतौर पर नजरअंदाज कर चला जाता है। उनके लिए समर्पित इस रचना को सोशल मीडिया पर लाइक्स और पॉजिटिव कमेंट्स मिल रहे हैं। जिसमें अनुभव के खजाना माने जाने वाले वृद्ध जनों को उनके उम्र के इस पड़ाव पर अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए समाज को भी जागरूक होने की आवश्यकता बताई जा रही है।

                                                    एक पहलू जीवन का
कुछ गुफ्तगू आज़ भी कर लेते हैं….

 

एक पहलू जीवन का
कुछ गुफ्तगू आज़ भी कर लेते हैं….

पीढ़ियों को पलटते देखे हैं,
नस्लों को बदलते देखे हैं।
आ पहुंचा किस दौर पे ज़माना,
बदलाव के पल-पल किस्से देखे हैं।

ख्वाहिशें कुछ खास ना रहीं अब,
चार बातों में खुशी की जुस्तजू कर लेते हैं….

क्या पाया जिंदगी से याद नहीं,
खोने की शिक़ायत कौन सुने।
बचे हैं तो बस चार दिन जिंदगी के,
चेहरे पर झुर्रियों की कहानियां बांट लेते हैं।

रफ़्तार भरी दुनिया की भीड़ से परे,
कुछ गुफ्तगू आज़ भी कर लेते हैं…..

-कुणाल

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