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संथाल जनजाति पूर्वी भारत की सबसे बड़ी जनजाति हैं संथाल समाज…

संथाल समाज दिशोम मांझी परगना प्रेंस क्राप्रेंस हुईं आयोजित…

मांडू / रामगढ़:इन्द्रजीत कुमार

जिले के मांडू प्रखंड क्षेत्र के हेसागढा गांव में प्रधान कार्यालय संथाल समाज दिशोम मांझी परगना के द्वारा प्रेंस क्राप्रेंस किया गया। प्रेंस क्राप्रेंस संबोधित करते हुए। पत्रकारों को बताया गया। फागु बेसरा दिशोम मांझी बाबा, संथाल समाज दिशोम मांझी परगना, सोनाराम हेम्ब्रोम, दिशोम मरांग परगना, संथाल समाज दिशोम मांझी परगना औंर एतो बास्के, जोगवा ने कहा कि संथाल समाज दिशोम माँझी परगना जो संथाल जनजातियों का एक समाजिक संगठन हैं।

संथाल जनजाति पूर्वी भारत की सबसे बड़ी जनजाति हैं। विशेष कर झारखण्ड प्रदेश, पश्चिम बंगाल प्रदेश, उड़ीसा प्रदेश, बिहार प्रदेश कुछ भाग असम प्रदेश एवं इसके अलावे नेपाल देश, भूटान देश एवं बंगलादेश में निवासी हैं। संथाल जनजाति अपनी रूढी, रीति-रिवाज से मार्ग दर्शित होते हैं। संथाल जनजाति अपनी रूढ़ी रीति-रिवाज से मार्ग दर्शित होना अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (3) एवं 244, 244ए एवं पाँचवी, छठी अनुसूची से स्पष्ट परिलक्षित होता हैं।

जनजातियों के अधिकार को लेकर भारत के संविधान में विशेष प्रावधान किए गए । जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए भी प्रदेशों में विशेष कानून का प्रावधान हैं। आदिवासियों की भूमि पर खरीद-बिक्री पर पूर्ण रोक हैं। लेकिन भूमि लूटी जा रही हैं। विस्थापन की पीड़ा सबसे अधिक इन्ही जनजातियों की गई। लेकिन शासक मौन हैं।

वन भूमि अधिकार कानून 2006 एवं रुपए पैसा कानून का अनुपालन नहीं हो रहा हैं। प्रदत संविधानिक अधिकारों का हनन हो रहा हैं। वह भी जब देश में सर्वोच्च पद पर एक जनजाति आदिवासी राष्ट्रपति हो औंर झारखंड प्रदेश में मुख्यमंत्री हो जो कि भारत देश के लिए गौरव की बात हैं। आदिवासी अधिकार से वंचित हो रहे हैं। 30-31 मई 2023 को सीसीएल क्लव भूरकुण्डा, पतरातू (रामगढ़) में 5वाँ संथालों के मरांग बैसी में जनजातियों के संविधानिक अधिकार एवं जन मुद्दों को लेकर पारित प्रस्ताव को झारखण्ड सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाता हैं।

झारखण्ड सरकार से माँग हैं। जन मुद्दों एवं संविधानिक अधिकार से संबंधित पारित-प्रस्ताव को झारखण्ड प्रदेश में लागू किया जाए। पारित प्रस्ताव में लुगू बुरू घंटाबाड़ी धोरोमगाढ़ लालपनिया, गोमिया, बोकारो जिले ( झारखण्ड प्रदेश ) भारत में अवस्थित संथाल जनजातियों का धार्मिक आस्था का केन्द्र जिसमें कार्तिक पूर्णिमा में पूरे भारत ही नहीं विश्व के संथाल जनजाति का महासंगम होता हैं। लाखों संथाल जनजाति जुटते हैं। लुगू बाबा का पूजा-अर्चना करते है। डीवीसी जो भारत सरकार का एक उपक्रम हैं। प्रस्तावित 1500 मेगावट हाईडल पवार प्रोजेक्ट से संथाल जनजातियों के धार्मिक स्थाल लुगू बुरू घंटाबाड़ी धोरोमगाढ़ प्रभावित कर समाप्त किया जा रहा हैं।

हम संथाल इसे अपने धार्मिक स्थल पर हमला के रूप में देखते हैं। भारत सरकार से माँग करते हैं कि लुगू बुरू घंटाबाड़ी जो धार्मिक केन्द्र बिन्दू हैं। संरक्षित करते हुए डीवीसी के प्रस्तावित हाईडल पवार प्रोजेक्ट को निरस्त किया जाए। इसके लिए झारखण्ड सरकार पहल करें। मरांग बुरु (परसनाथ पहाड़ ) गिरिडीह झारखण्ड में अवस्थित संथाल जनजातियों का युग जाहेर धार्मिक अस्था का केन्द्र हैं। सरकार के गजट एवं सर्वे अधिसूचना में मरांग बुरू धार्मिक स्थल के रूप में स्पष्ट उल्लेख हैं। हम संथाल जनजाति किसी भी धर्म का विरोधी नहीं हैं।

हमलोग प्राकृतिक द्वारा निर्मित सूरज, चांद जंगल, पहाड़ों, नदी-नालों को ईश्वर का स्वरूप मान कर पूजा करते हैं। परन्तु जैन समुदाय के द्वारा हमारी धार्मिक अस्था का केन्द्र मरांग बुरू युग जाहेर का अतिक्रमण का हम संथाल विरोध करते हैं। भारत सरकार एवं झारखंड सरकार से माँग हैं कि प्राकृतिक धरोहर हम संथालों के धार्मिक अस्था केन्द्र मरांग बुरू युग जाहेर को संरक्षित करते हुए हो रहे‌। जैन समुदाय के द्वारा अतिक्रमण पर पूर्ण रोक लगाया जाए। सम्पूर्ण झारखण्ड प्रदेश को संविधान के पाँचवीं अनुसूचि के तहत अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया जाए।

संविधान के अनुच्छेद 244, अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन पाँचवीं अनुसूचि के अनुबन्ध के तहत आदिवासी बहुल झारखण्ड प्रदेश को स्वशासी राज्य के लिए विधि नियम कानून शीघ्र बनाया जाए। झारखण्ड प्रदेश अनुसूचित क्षेत्र स्वशासी परिषद का गठन किया जाए। प्रत्येक स्वशासी जिलें के एक जिला परिषद का गठन किया जाए। पेसा कानून के तहत अधिकार सौंपा जाए। संविधान के पाँचवीं अनुसूचि अनुबन्ध के तहत आदिवासियों को स्वशासी अधिकार, जनजातियों क्षेत्रों का प्रशासन जिला स्वतशसित परिषद का गठन कर सौंपा जाए।

सम्पूर्ण झारखण्ड प्रदेश के आदिवासियों क्षेत्रों में तृतीय एवं चतुर्थ वर्गीय नियोजन शत-प्रतिशत आरक्षित, जनजाति सलाहकार परिषद की नियमित बैठक, जनजातियों के उन्नति औंर कल्याण से संबंधित सलाह दें। राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किये गए विषयों को सार्वजनिक किया जाए। अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार अधिनियम 1996, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधन के लिए विशेष अधिकार दिया गया।

झारखण्ड सरकार अविलंब नियमावली बनाकर लागू करें। सरना आदिवासी धर्म कोड़ हेमन्त सरकार के द्वारा झारखण्ड विधानसभा से पारित कर भारत सरकार को भेजा गया। केन्द्र सरकार सरना आदिवासी धर्म कोड़ को लागू करे। संथाली भाषा संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। झारखण्ड प्रदेश का राज्य भाषा घोषित किया जाए। संथाली भाषा का पठन-पाठन वा प्रचार-प्रसार सामग्री, पुस्ताक ओलचिकी लिपि से तैयार किया जाए। प्राथमिक विधालय से विश्व विद्यालय तक पढ़ाई अविलम्ब आरम्भ किया जाए। संथाली भाषा ओलचीकि लिपि से प्राथमिक विद्यालय से विश्वविधालयों में पढ़ाने हेतू पद सृजित करते हुए संथाली शिक्षकों की बहाली अविलम्ब किया जाए।

संथाली परम्परा,भाषा,संस्कृति का विकास एवं संरक्षण, संवर्धन हेतू संथाली आकदमी का गठन अविलम्ब किया जाए। अधिसूचित क्षेत्रों से बाहर विशेषकर उतरी छोटानागपूर प्रमंडल के हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, रामगढ़ के ग्राम प्रधान, मांझी हड़ाम, परगना हड़ाम, नयके हड़ाम, जोगवा हड़ाम, कुड़म नयके हड़ाम को अधिसूचित क्षेत्र के भांति मानदेय दिया जाए। संथाल समाज का रूढ़ीवादी व्यवस्था को सम्पूर्ण झारखण्ड में मान्यता दिया जाए। वन भूमि अधिकार कानून 2006 के तहत संथाल अदिवासियों को वन पट्टा दिया जाए।

गैर आदिवासियों लडकों के द्वारा बहला-फुसलाकर आदिवासी लडकियों के साथ शादी कर भूमि, नौकरी एवं अन्य आरक्षण राजनीतिक पद पर लाभ पर अविलम्ब रोक लगाया जाए। उससे उत्पन्न सन्तन को आदिवासी का दर्जा नहीं देने, जाहेरथान सरना स्थल चाहरदिवारी (घेराबन्दी ) करने, प्रत्येक संथाल गांव में शादी विवाह, पंचायती दोरबार वैसी के लिए समुदायिक भवन मांझी हाउस का निर्माण करने, संथाल आदिवासियों के हड़प्पी भूमि वापस करें, विकास के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित करना बन्द करने, विस्थापित हुए आदिवासियों को अधिकार देने, देश की आजादी के 75 वर्षों के बाद भी संथाल आदिवासी गांवों का विकास नहीं हुआ हैं।

प्राथमिकता के तहत आदिवासी गांवों का विकास किया जाए। संथाल आदिवासियों के भूमि को गैर आदिवासियों के द्वारा अवैध कब्जा किया गया। हमारी जंगल एवं गैरमजरूआ खास भूमि बाहरी गैर आदिवासी के नाम पैसा लेकर सरकारी पदाधिकारी के मिली भगत से बन्दोबस्त किया गया। सरकार आदिवासियों की हड़प्पी भूमि वापसी को घोषणा करने के बावजूद नहीं कर रही हैं। इसके लिए पूरजोर आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव हैं।

आदिवासी गाँवों को टोला बनाकर उपेक्षित किया गया हैं। राजस्व ग्राम घोषित करते हुए। गाँवों में समुचित विकास किया जाए। भूमि की रक्षा के लिए छोटानागपूर काश्तकारी अधिनियम एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाए। प्रस्तावित यूनिफार्म सिविल कोड़ कानून सामान्य नागरिक संहिता को वापस करने तथा वन भूमि संशोधन अधिनियम 2023 को रद्द किया जाए।

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