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मिसाल: सभ्यता विकास के साथ बढ़ती सकारात्मक सोच: परंपरागत रूढ़िवादी परंपरा से हटकर पूरे सम्मान के साथ महिला का किया गया अंतिम संस्कार . . .

सरायकेला : Sanjay

कहते हैं कि सभ्यता का विकास मानव के सकारात्मक सोच का परिणाम रहा है। बीते रविवार को गम्हरिया प्रखंड के इटागढ़ पंचायत अंतर्गत कुल्लूडीह गांव में डाॅ पीआर मार्डी के निवास पर उनकी मां स्वर्गीय देल्हो मार्डी का श्राद्ध कर्म और श्रद्धांजली कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जिसमें रुढ़िवादी प्रथा एवं परम्परा को त्यागकर प्रगतिशील सोच के साथ संताल समाज में एक नयी दिशा देने का प्रयास किया गया। संताल समाज में मृत शरीर को दफनाने या जलाने की प्रथा या रिवाज है। इस रिवाज को निभाने के क्रम में मृतक के साथ घोर अमानवीय कृत्य किया जाता रहा है

जो कानून की नजर में कहीं से भी न्याय संगत नही है, साथ ही भारतीय संविधान और मानवाधिकार की तौहीन भी है। संताल समाज में प्रायः देखा गया है कि मृतक के शरीर पर धारण किए हुए वस्त्रों को अक्सर शरीर से निकाला या खोल दिया जाता है अर्थात मृतक को नंग धड़ंग किया जाता है। गुप्तांग को लेश मात्र ही कपड़े से ढंक दिया जाता है।

रुढ़िवादी सोच संस्कार रखने वाले लोग मानवीय मूल्यों को ठेंगा दिखाते हुए तर्क देते फिरते हैं कि जन्मते समय मनुष्य नंगें थे, तो मृत शरीर का दाह संस्कार भी नंग धड़ंग ही किया जाए। यही हमारी समाज की प्रथा है, परम्परा है। यही प्रकृति का नियति है। जबकि किसी भी मृतक के साथ यह अमानवीय कृत्य है, मृतक की मान मर्यादा, मानवाधिकार का सीधा उल्लंघन है। कानून की नजर में भी गलत है। चूंकि कानून किसी भी लाश के साथ छेड़छाड़ करने की इजाजत किसी भी समाज या व्यक्ति को नहीं देती है। यह जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है। मृत शरीर लाश मात्र नहीं है। जब तक किसी भी मनुष्य का भौतिक शरीर पृथ्वी पर मौजूद है, चाहे जीवित हो या मृत। उसकी गरिमा हमेशा बनी रहती है।

गरिमा के साथ अंतिम संस्कार इनका नैतिक अधिकार है। विगत दिनों सरायकेला-खरसावां जिला के गम्हारिया प्रखंड के ईटागढ़ पंचायत अन्तर्गत कुल्हूडीह गांव में डाॅ पीआर मार्डी की मां श्रीमती देल्हो मार्डी की मृत्यु उपरांत संताल समाज की रुढ़िवादी परम्परा पर चोट करते हुए संताल समाज में प्रगतिशील सोच की एक मिसाल पेश की है। जी हां, यह वही कुल्हूडीह गांव है, जहां की नारी नागी मार्डी ने अपनी मां को मुखाग्नि देकर संताल समाज में एक भूचाल खड़ी कर दी थी।

जिस भूचाल को कुचलने के लिए संताल समाज के तथाकथित सामाजिक अगुवा, माझी परगाना महाल, सामाजिक बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, आदिवासी राजनेता जिसमें झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन को भी एक अबला नारी के खिलाफ अपनी ही मृत मां को मुखाग्नि देने से वंचित करने के लिए आवाज़ उठाने को मजबूर होना पड़ा था, तो दूसरी ओर आदिवासी सेंगेल अभियान के कद्दावर नेता, प्रगतिशील सोच वाले योद्धा पूर्व सांसद सालखन मुर्मू चट्टान की तरह नागी मार्डी के साहसिक कदम के समर्थन में खड़े हुए थे।

श्री मुर्मू ने देश में संविधान, कानून, मानवाधिकार, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक नागी मार्डी को न्याय दिलाने के लिए कदम आगे बढ़ाने की ठानी, तो संताल समाज के तथाकथित सामाजिक अगुवा, माझी परगाना व्यवस्था का दुहाई देकर समाज में धौंस जमाने वाले माझी परगाना महाल जैसे संगठन, संताल समाज के बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनेताओं तक को अपना पैर पीछे खिंचना पड़ा था।

अंततः नागी मार्डी को अपनी मां के मुखाग्नि देने का न्याय मिला। डाॅ पीआर मार्डी की मां श्रीमती देल्हो मार्डी की मृत्यु लगभग 82 वर्ष की आयु में हो गई। घर की महिलाओं ने सामाजिक परम्परा के विपरीत मृतक को भींगे कपड़े से पोंछकर साफ किया। सिर के बेरुखी बाल पर तेल लगाकर कंघी से संवारा गया। नयी साड़ी-ब्लाउज पहनाकर, नाक, कान, गले को आभूषणों से सुसज्जित किया गया।

मानो कहीं किसी त्यौहार में जाने के लिए सज धजकर तैयार हो। शव दाह संस्कार हेतु अपने अंतिम पड़ाव श्मशान घाट की ओर चल दी। मृतक को बिना निर्वस्त्र किए ही शव चिता को समर्पित कर दी गई।

चिता ने पंच तत्वों के साथ आहिस्ते-आहिस्ते उसे अपने आगोश में समा लिया। समाज में उसने अपनी स्मृतियां हमारे बीच छोड़ दी। इस तरह डॉ पीआर मार्डी के परिवार एंव उनके सगे-संबंधियों ने सदियों से चली आ रही रुढ़िवादी गलत प्रथा को समाप्त कर संताल समाज को आईना दिखाने का साहसिक कदम उठाकर लाश के साथ अमानवीय व्यवहार पर सीधा कुठाराघात करते हुए पूर्ण संवैधानिक, मानवाधिकार, मान मर्यादा सहित गौरवपूर्ण अंतिम संस्कार कर दिया गया।

इस दुःख के और ऐतिहासिक क्षण के साक्षी रहे गांव के मुटलू मार्डी माझी/प्रधान, लाल बास्के नायके, डॉ पीआर मार्डी, यादुनाथ मार्डी, रामसाई मार्डी, आम्पा हेम्ब्रोम, धुनू हेम्ब्रोम, छुटाई सोरेन, पृथ्वी मुर्मू, जर्मन हांसदा, रोमन हांसदा, रामजीत सोरेन, मेघराय हेम्ब्रोम, बिरधान हांसदा, ठोक सुराई मार्डी, सिंगराई मार्डी, गोपीनाथ सोरेन आदि उपस्थित रहे।

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