गांव वासियों के समृद्धि खुशहाली एवं सुख-शांति के लिए धूमधाम से मना परंपरागत साप्ताहिक मागे परब…
सेता आंदी पर हुआ कुत्ते या साहड़ा पेड़ के साथ बच्चों का विवाह कराकर मांगलिक दोष निवारण…
सरायकेला Sanjay। खरसावां प्रखंड के आनंदडीह गांव में आदिवासी मूल परंपरा के साथ सात दिवसीय माघे पर्व मनाया गया। 7 दिनों तक चलने वाले उक्त माघे परब की शुरुआत बीते 23 फरवरी को दिउरी पुजारी लालू तियू एवं सीम सहायक मानकी रतन और घुमा तियू उर्फ लंगड़ा द्वारा इष्ट देव सिंगबोंगा का आह्वान करते हुए किया गया। इसके पहले दिन हेए सकम मनाते हुए गांव की औरतों द्वारा जंगल में जाकर साल के पत्ते तोड़कर लाया गया। दूसरे दिन ओते गुरुई मनाते हुए दिउरी यानी पुजारी के घर के आंगन को गोबर से लिपाई पुताई कर शुद्ध किया गया।
तीसरे दिन ओते ईली तीरथ में मनाई गई। और चौथे दिन गांव के सभी स्त्री-पुरुष उपवास व्रत रखते हुए नहा धोकर शाम के समय अपने पूर्वजों का पूजा पाठ किए। पांचवें दिन मागे पोरोब मनाते हुए दिउरी और उसके सीम सहायकों द्वारा जाहेरथान में पूजा आराधना करते हुए ग्राम वासियों के सुख शांति एवं समृद्धि के लिए परंपरा अनुसार सफेद एवं काला मुर्गी की बलि अर्पण की गई। मान्यता है कि ऐसा करने से ग्राम क्षेत्र में महामारी या फिर बुरी नजर का साया नहीं होता है। छठवें दिन मंगलवार को जात्रा परंपरा का आयोजन करते हुए अखाड़े में नृत्य संगीत के सामूहिक कार्यक्रम किए गए। बुधवार को सातवें दिन हर माघे के साथ इसका समापन किया गया। इस अवसर पर गांव के गणमान्य में मुख्य रूप से गंगाराम तियू सहित दर्जनों की संख्या में ग्रामीण स्त्री पुरुष पूजा में शामिल हुए।
हर माघे पर हुआ सेता आंदी परंपरा का आयोजन :-
बच्चों में मांगलिक दोष निवारण को लेकर आदिवासी परंपरा अनुसार मागे परब के सातवें समापन दिवस पर सेता आंदी परंपरा का आयोजन किया गया। इसके तहत मांगलिक दोष वाले बच्चा और बच्ची को क्रमश: कुत्ते के पिल्ली और पिल्ला का विवाह रीति रिवाज के साथ कराया गया। कुत्ते के बच्चों के साथ विवाह नहीं कराए जाने की स्थिति में दोष निवारण के लिए दूसरे गांव की सीमा में उपजे शाहड़ा पेड़ की डाली को गांव की सीमा के बाहर गाड़ते हुए उसी के मांगलिक दोष वाले बच्चे या बच्ची विवाह संपन्न कराया गया। इसके तहत पिता गोमा तियू और माता बोर्डा तियु के बच्चे आयुष तियु के मांगलिक दोष निवारण के लिए सेता आंदी किया गया। इस अवसर पर परंपरा अनुसार सिंदूर के रूप में टूटे हुए खपरा को पीसकर सिंदूर के रूप में प्रयोग किया गया। शादी से पहले बागिया देवता का आह्वान करते हुए पुजारी दिउरी रविंद्र हाँसदा द्वारा पूजा अर्चना की गई। जिसके बाद दोनों पक्ष के लोग हंसी खुशी से नाचते गाते हुए वर वधु को अपने घर ले आए। और आदिवासी परंपरागत घरों पर उनका स्वागत किया गया। मान्यता है कि भविष्य में किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोकने के लिए उक्त सेता आंदी विवाह परंपरा का आयोजन किया जाता है।