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कास के फूलों के साथ प्रकृति भी कर रही है शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा देवी के आगमन का स्वागत, महालया के साथ मां दुर्गा के शारदीय नवरात्र का सरायकेला में हुआ शुभारंभ…..

बरषा बिगत शरद ऋतु आई, लक्षमन देखहू परम सुहाई,

फूलें कास सकल महि छाई, जनू बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई….

सरायकेला Sanjay ।  सावन की हरियाली के बुढ़ापे को दिखाती प्रकृति में चारों तरफ फैली सफेद कागज के फूल तरीके कास के फूल शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के आगमन का स्वागत करते हुए प्रतीत हो रहे हैं। वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के आगमन को दर्शाते कास के फूल इस समय नदी किनारे, बलुई सूखे इलाके, पहाड़ी इलाके सहित विभिन्न क्षेत्रों में देखें जा सकते हैं। आसमान में मंडराते सफेद बादल और धरा पर लहलहाते कास के सफेद फूल किसी कवि की कविता में आसमान और धरती की समानता और सादगी को बयां करते हुए प्रतीत हो रहे हैं।

धर्म ग्रंथ रामचरित्रमानस में तुलसीदास ने भगवान श्री राम के द्वारा लक्ष्मण को बताई गई इस अनुपम प्राकृतिक घटना पर कहा है कि “बरषा बिगत शरद ऋतु आई, लक्षमन देखहू परम सुहाई; फुलें कास सकल महि छाई, जनू बरषा कृत प्रगट बुढ़ाई।” अर्थात भगवान श्री राम कहते हैं कि हे लक्ष्मण, देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फुले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानव वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना बुढ़ापा प्रकट किया है।

इसी प्रकार महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ऋतुसंहार में शरद ऋतु का वर्णन करते हुए कहते हैं कि शरद ऋतु का पदार्पण रमणीय नववधू के समान होता है। पके हुए धान से सुंदर और झुकी बालियां तथा खिले हुए कमलों के मुख वाली शरद ऋतु कास फूल का उज्जवल वस्त्र धारण किए हुए मतवाले हंस के कलरव का नुपुर पहनकर अवतरित होती है। यहां महाकवि कालिदास ने कास के फूलों से पटी धरा को नववधू के वस्त्र परिधान के रूप में बताया है।

जहां बांग्ला संस्कार में दुर्गा पूजा और शरद ऋतु को कास के फूल के बिना अछूता माना गया है। कवि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने अपने शापमोचन नृत्य नाटिका में कास के फूलों पर बताए हैं कि यह मन की कालिमां को दूर कर शुद्धता लाती है। और भय को दूर कर शांति वार्ता वहन करती है। शुभ कार्य में कास के फूल एवं उसके पत्ते का उपयोग किया जाता है। जहां काजी नजरुल इस्लाम ने भी अपनी कविता में कहा है कि कास के फूल मन में सादगी का सिहरन जगाए, मन कहता है कितनी सुंदर प्रकृति और सृष्टि कर्ता की अपार सृष्टि। बंगाल की दुर्गा पूजा में माता की तस्वीर हो या माता की प्रतिमा या फिर मां दुर्गा के लिए रची गई रचनाएं या पुस्तक या फिर मां दुर्गा से संबंधित विज्ञापन ही क्यों ना हो, सभी में उनके साथ कास के फूल अवश्य होते हैं। यहां तक कि आयुर्वेद में घास की प्रजाति वाले का कास के फूलों का कई रोंगों के लिए औषधीय महत्त्व बताया गया है।

महालया पूजा के साथ शुरू हुई मां दुर्गा के शारदीय नवरात्र का अनुष्ठान :-

मर्जर एग्रीमेंट के तहत सरकार द्वारा सरायकेला में आयोजित होने वाली सरकारी दुर्गा पूजा के महालया के अवसर पर माता की आराधना की गई। इसके तहत सरायकेला के बस स्टैंड चौक स्थित सरकारी दुर्गा पूजा मंडप में पुजारी पंडित गोपाल कृष्ण होता द्वारा दीप जलाकर मां दुर्गा के आगमन की आराधना की गई। मौके पर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक, सेवानिवृत्त वरीय अनुदेशक विजय कुमार साहू सहित अन्य भक्त गण भी उपस्थित रहे।

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