नपं उपाध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी ने पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य
विभाग झारखंड सरकार के सचिव को ज्ञापन सौंपकर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के
रिक्त पदों पर नीति संगत बहाल करने की मांग की।
सरायकेला। सरायकेला छऊ नृत्य कला का इतिहास काफी समृद्ध एवं गौरवशाली रहा है। सरायकेला राजघराना (रियासत) से निकली छऊ नृत्य कला केवल कला ही नहीं इस क्षेत्र का एक बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। भारत के आजादी के समय देसी रियासतों की विलय संधि समझौता के अनुसार छऊ नृत्य सहित इस क्षेत्र के मंदिरों धार्मिक अनुष्ठानों के साथ क्षेत्र की परंपराओं के निर्वहन सरकार द्वारा किया जाना है। उक्त बातें कहते हुए सरायकेला नगर पंचायत उपाध्यक्ष सह राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला के सलाहकार सदस्य मनोज कुमार चौधरी ने झारखंड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग के सचिव मनोज कुमार को ज्ञापन सौंपते हुए कहा है कि सरायकेला छऊ नृत्य कला के बदौलत भारत/झारखंड का नाम विश्व में रोशन हुआ है। छऊ नृत्य कला के कलाकारों द्वारा छऊ नृत्य के उम्दा प्रदर्शन व भाव भंगिमाओं एवं विशेषताओं को देखते हुए छऊ नृत्य के कई बेहतरीन कलाकारों को भारत सरकार द्वारा देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया, यही नहीं छऊ नृत्य के उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए यूनेस्को ने छऊ नृत्य कला को विश्व की अमूर्त कलाओं की धरोहरों की सूची में शामिल किया है। सरायकेला के हर क्षेत्र में कलाकार बसते हैं। यहां के कण-कण में कला बसी हुई है। सरायकेला कलाकारों की नगरी है, इसीलिए झारखंड बनने के बाद झारखंड सरकार द्वारा सरायकेला को झारखंड की कला संस्कृति की राजधानी घोषित किया गया था। मर्जर एग्रीमेंट के अनुसार छऊ नृत्य कला एवं कलाकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्यों से निहित सन 1961 में राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र की स्थापना की गई थी। स्थापना काल से ही राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र को स्थापित करने के तौर-तरीकों पर हमेशा उंगली उठती रही, क्योंकि छऊ नृत्य कला से इस क्षेत्र की काफी बड़ी आबादी जुड़ी है। एवं इस क्षेत्र के बड़ी संख्या में छऊ नर्तक, वाद्य यंत्र बजाने वाले, पोशाक निर्माता, मास्क निर्माता इत्यादि हजारों कलाकार जुड़े हुए हैं, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इतनी लोकप्रिय कला और इतनी बड़ी आबादी के जुड़े होने के बावजूद तत्कालीन सरकारों द्वारा मर्जर एग्रीमेंट की बाध्यता या अन्य कारणों से बिना कोई नीति निर्धारण (स्थापना या पाठ्यक्रम) कर झुनझुना पकड़ाते हुए नाममात्र राजकीय छऊ कला केंद्र की स्थापना कर दी गई थी। उन्होंने कहा है कि तत्कालीन सरकारों द्वारा बिना नीति निर्धारण के राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र की स्थापना का दंश अब सबके सामने दिख रहा है। क्योंकि उस समय से पदस्थापित 8-10 लोगों से अब एक-एक करके लगभग सब सेवानिवृत्त हो रहे हैं और अभी वर्तमान में केवल एक या दो पद पर पदस्थापित नर्तक/कर्मचारी बहुत जल्द सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन्होंने बताया है कि यह एक बहुत ही गंभीर एवं चिंतनीय विषय है कि आने वाले समय में विश्व की प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला का प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र सरकारी संस्थान राजकीय नृत्य कला केंद्र बिना गुरु, नर्तक, वाद्य यंत्र बजाने वाले, पोशाक निर्माता, मास्क निर्माताओं व कर्मचारी (बिना स्थापना नीति) के कैसे चलेगा? इसलिए उन्होंने मांग की है कि विश्व की अमूर्त धरोहर, सरायकेला और झारखंड की शान छऊ नृत्य कला व कलाकारों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु जल्द से जल्द सरायकेला के राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र की स्थापना नीति बनाने हेतु आवश्यक कदम उठाने की कृपा करें ताकि हमारी संस्कृति और हमारे छऊ नृत्य से जुड़े कलाकारों का भविष्य उज्जवल होगा। मौके पर उपस्थित कलाकार भोलानाथ महंती एवं सुमित महापात्र के साथ छऊ कला एवं कला केंद्र की वर्तमान दयनीय स्थिति पर विस्तार पूर्वक चर्चा करने के साथ कला केंद्र के वर्तमान रिक्त पदों के अलावे छऊ नृत्य अकादमी कि सभी अखाड़ों में पर्याप्त संख्या में नियुक्ति के लिए आवश्यक कार्यवाही करने संबंधित मांग भी की।