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झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक

2022 के विरोध में चेंबर ऑफ कॉमर्स ने जिला

समाहरणालय के समक्ष दिया धरना; मुख्यमंत्री के नाम

सौंपा ज्ञापन….

झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक 2022 काला कानून को वापस लेने तक जारी रहेगा आंदोलन: मनोज कुमार चौधरी…..

सरायकेला। झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक 2022 के विरोध में चेंबर ऑफ कॉमर्स सरायकेला खरसावां द्वारा चलाए जा रहे चरणबद्ध आंदोलन के तहत बुधवार को जिला समाहरणालय के समक्ष धरना दिया गया। धरने के पश्चात चेंबर ऑफ कॉमर्स के महासचिव मनोज कुमार चौधरी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री के नाम उप विकास आयुक्त को ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में चेंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल, राजकुमार अग्रवाल, अरुण सेकसरिया, ललित चौधरी, उदित चौधरी एवं अंकित अग्रवाल मुख्य रूप से शामिल रहे।

सौंपा गया ज्ञापन में झारखंड विधानसभा में पारित झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक 2022 को जनहित में निरस्त करने की मांग की गई। बताया गया कि फेडरेशन ऑफ झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज रांची के निर्देशानुसार बीते 19 एवं 20 अप्रैल को काला बिल्ला लगाकर विरोध किया गया। उन्होंने बताया है कि झारखंड में कृषि उपज पर कृषि शुल्क दिए जाने पर राज्य में कृषि उपज के उत्पादन और इसके विपणन संबंधी प्रसंस्करण उद्योग एवं व्यापार में भारी कमी आएगी।

क्योंकि कृषि उपज के व्यवसाय और उद्योगों के विपणन झारखंड राज्य के निकटवर्ती राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा आदि राज्यों में हो जाएगा। जहां पर कृषि शुल्क की दर शून्य है। इससे किसानों की उपज की स्थानीय मांग घटने और उन्हें अपनी उपज की कीमत कम प्राप्त होगी। वहीं सरकार को कृषि शुल्क से प्राप्त राशि से कहीं अधिक नुकसान जीएसटी से प्राप्त होने वाले राजस्व में कमी आने से होगी। ने बताया है कि झारखंड में शुल्क समाप्त होने से काफी संख्या में कृषि उपज प्रसंस्करण के उद्योग तथा राइस मिल भी राज्य में स्थापित हुए।

झारखंड में राइस मिल की स्थापना से धान की मांग बढ़ी। और उसी अनुरूप खेती भी बढ़ गई। शुल्क समाप्त होने से राज्य में कृषि उपज की बिक्री बढ़ी। जिससे स्थानीय कृषिको में खेती के प्रति आकर्षण बना है। झारखंड मुख्य रूप से एक उपभोक्ता राज्य है। जहां अधिकतर कितनी उत्पादित वस्तुएं अन्य राज्यों से आयातित होती है। ऐसे में बाहर से आयातित होने वाले वस्तुओं पर शुल्क लगने से वर्तमान महंगाई में वस्तुएं अत्यधिक महंगी होंगी। जिसका खामियाजा आम उपभोक्ता को सहन करना पड़ेगा। मांग की गई है कि इस विधेयक को निरस्त किया जाए ताकि व्यवसाई और कृषक दोनों ही आराम से अपने कारोबार कर सकें।

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