Spread the love

झारखंड में संथाली भाषा के ओल चिकी लिपि को लागू करने को लेकर बुद्धिजीवी सम्मेलन का हुआ आयोजन…

सरायकेला:संजय मिश्रा

सरायकेला। झारखंड में संथाली भाषा के ओल चिकी लिपि को लागू करने की मांग को लेकर बुद्धिजीवी सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीतारामपुर डैम क्षेत्र के समीप आयोजित उक्त बैठक में ओल चिकी लिपि के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू के पोते भीमवार मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे। स्थानीय समाजसेवी वास्को बेसरा के साथ उन्होंने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि बाबा तिलका मांझी विद्रोह एवं संथाल विद्रोह का ऐतिहासिक परिचय होने के बावजूद भी संथाल समुदाय अपनी भाषा एवं संस्कृति का सरकारी संवर्धन करने में आज भी पीछे है। झारखंड में संथाली भाषा का ओल चिकी लिपि को अभी तक व्यवहार में नहीं लाया जा सका है। जब कोई पड़ोसी राज्यों पश्चिम बंगाल और उड़ीसा सरकार द्वारा अपने राज्यों में ओल चिकी लिपि को मान्यता दी गई है।

झारखंड में संथाल समुदाय से चार-चार बार मुख्यमंत्री होने के बाद भी संथालियों को अपने वास्तविक पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जबकि केंद्र सरकार ने इसे मान लिया है। भीमवार मुर्मू ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपनी कई सभाओं में ओल चिकी लिपि को मान्यता देने की बात कही है। उन्हें चाहिए कि कक्षा पहली से पांचवी तक के लिए ओल चिकी लिपि में किताबें छपवाकर शीघ्र भाषाई शिक्षकों की बहाली करें। ताकि स्कूलों में ओल चिकी लिपि से पढ़ाई शुरू हो सके।

संथाली भाषा आंदोलनकारी रमेश हांसदा ने कहा कि आप गांव-गांव जाकर ओल चिकी भाषा लिपि को मान्यता दिलाने के लिए सभा कर लोगों को इसकी जानकारी देंगे। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि इसे लेकर अविलंब ओल चिकी लिपि में प्राथमिक शिक्षा की किताबें छपवाकर विद्यालयों में पढ़ाई शुरू करवाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री के नाम खुला पत्र भेजा जाएगा।

सम्मेलन में चंद्र मोहन मार्डी, बायर किस्कू, सुबोध कुमार हेंब्रम, सीताराम हांसदा, गौरी शंकर टुडू, बाबूराम मार्डी, मनसा मुर्मू, वीर सिंह मुर्मू, चतुर हेंब्रम, खुदम टुडू, श्याम चरण हांसदा, सुरेंद्र हांसदा, जयपाल मुर्मू, मादलू माझी, दशरथ मुर्मू एवं भोलानाथ हांसदा सहित दर्जनों की संख्या में संथाल समाज के लोग मौजूद रहे।

Advertisements

You missed