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शिक्षा और शिक्षकों से नफ़रत है हेमंत सरकार को: कुणाल दास

सरायकेला:संजय मिश्रा

सरायकेला। राज्य के प्रारंभिक सरकारी स्कूलों में प्रस्तावित सहायक आचार्य नियुक्ति प्रक्रिया के विरुद्ध पारा शिक्षक-गैर पारा जेटेट सफल अभ्यर्थी संघ झारखण्ड प्रदेश ने तीखा आक्रोश जताया है। संघ ने इस नियुक्ति को सूबे की शिक्षा और शिक्षक समुदाय के प्रति विध्वंसकारी करार दिया है। शुक्रवार को एक प्रेसवार्ता के दौरान संघ के प्रदेश अध्यक्ष कुणाल दास ने हेमंत सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हेमंत सरकार को शिक्षा और शिक्षक शब्द से ही बेतहाशा नफ़रत है। राज्य में अब तक महज़ दो दफे जेटेट परीक्षा का आयोजन हुआ है और दोनों ही दफे परीक्षा का आयोजन झारखण्ड प्रारंभिक विद्यालय शिक्षक नियुक्ति नियमावली 2012 के तहत हुई है।

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जिसके तहत जेटेट सफल अभ्यर्थियों को मैरिट लिस्ट के आधार पर सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त किए जाने का प्रावधान है। चूंकि पुरानी नियमावली अभी भी अस्तित्व में है बावजूद इसके बाहरी अफसरों के बहकावे पर नियमों को ताक पर रखकर हेमंत सरकार सहायक आचार्य नियुक्ति का विज्ञापन जारी कर डाली है। संभवतः अफसरों को यह नहीं मालूम कि नई शिक्षा नीति के तहत अब किसी भी सरकारी स्कूलों में अलग-अलग कैडर नहीं हो सकते। लेकिन सहायक आचार्य नियुक्ति हो जाने के बाद झारखण्ड के सरकारी स्कूलों में सहायक शिक्षक, सहायक अध्यापक (पारा शिक्षक) और सहायक आचार्य तीन अलग-अलग कैडर के शिक्षक मौजूद होंगे जो पूरी तरह से नई शिक्षा नीति का उल्लंघन है।

इसके अलावा झारखण्ड में अब तक आयोजित दोनों ही जेटेट परीक्षा में सफल अभ्यर्थी सहायक शिक्षक बनने की एलिजिबिलिटी रखते हैं, न कि सहायक आचार्य की। सहायक आचार्य के लिए तो अभी तक कोई एलिजिबिलिटी टेस्ट ही आयोजित नहीं हुई है। फिर सरकार जबरन सहायक शिक्षक के लिए एलिजिबल अभ्यर्थियों को सहायक आचार्य किस आधार पर बना रही है यह समझ से परे है।

श्री दास ने कहा कि सहायक आचार्य नियुक्ति नियमावली में जिस प्रकार से सात से नौ घंटे परीक्षा का प्रावधान किया गया है ऐसा प्रारूप यूपीएससी परीक्षा में भी नहीं होता है। कहीं ना कहीं यह बाहरी अफसरों का षड्यंत्र है ताकि जितना हो सके कम संख्या में झारखण्डी छात्र क्वालिफाई कर सकें और बाक़ी सीट अधिकारी मुंहमांगी कीमत पर बाहर के स्टूडेंट्स को बेच सकें जैसा कि अबतक झारखण्ड में होता आया है।

साथ ही वेतनमान को घटाकर चपरासी रैंक का कर दिया गया है जो कि काफ़ी शर्मनाक है। भविष्य में कोई भी छात्र शिक्षक बनने में रुचि नहीं लेगा। पूरे प्रक्रम में माटी की सरकार होने का दंभ भरने वाली हेमंत सरकार जिस तरह से मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रही है उससे साफ़ पता चल रहा है कि हेमंत सरकार को शिक्षा और शिक्षकों से बेइंतहा नफ़रत है। तभी तो प्रारंभिक शिक्षा और शिक्षक समुदाय की बरबादी की कवायद में सरकार बाहरी अफसरों की ताल में ताल मिलाती नज़र आ रही है। इस त्रासदी से सरकार को आगाह करने के लिए पचासों बार संघ की ओर से मुख्यमंत्री से मिलने का प्रयास किया गया। लेकिन मुख्यमंत्री ने शिक्षक अभ्यर्थियों से बातचीत करने में कभी भी कोई रुचि नहीं दिखाई।

सुप्रीम कोर्ट का भी उत्तर प्रदेश के एक मामले में स्पष्ट डिसीजन है कि टेट परीक्षा के बाद कोई और परीक्षा नहीं ली जानी है। बल्कि मैरिट लिस्ट के आधार पर टेट सफल अभ्यर्थियों को सरकारी शिक्षक के पद पर नियुक्त करने का आदेश है। झारखण्ड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी अपमान किया है।

अब सारी चीजें हेमंत सरकार के नियंत्रण से बाहर जा चुकी हैं। इसलिए संघ ने हाईकोर्ट का रुख अख्तियार कर लिया है। बहुत जल्द इस मामले की सुनवाई भी शुरू हो जाएगी। कोर्ट का नतीज़ा भविष्य में जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि जिस तत्परता से हेमंत सरकार शिक्षा एवं शिक्षक अभ्यर्थियों का कैरियर खा जाने को आमादा है, इसका खामियाजा आने वाले चुनावों में निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दलों को भुगतना पड़ेगा।

जेटेट अभ्यर्थियों सहित तमाम बेरोजगार युवाओं को फिलहाल ऐसी एक भी वज़ह नज़र नहीं आ रही है कि भविष्य में इस सरकार को फिर से रिपीट किया जाए।जिन उम्मीदों के साथ खुलकर युवाओं ने हेमंत सरकार को समर्थन देकर सरकार बनाया था, वादाखिलाफी से अज़ीज़ झारखण्डी यूथ आनेवाले समय में इसका प्रतिशोध जरूर लेंगे। सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वक्त रहते अभी भी भूल सुधार करते हुए सहायक आचार्य नियुक्ति प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे अन्यथा इसके गंभीर राजनीतिक परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

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