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सफलता की कहानी: जीरा मछली के उत्पादन में चांडिल की राधिका महतो लिख रही सफलता की कहानी…

आभार है सरकार का और जिला प्रशासन का: राधिका महतो।

सरायकेला:संजय मिश्रा

सरायकेला। कहते हैं कि चांद छूने की चाह हो तो आसमान भी बौना लगता है। कुछ ऐसी ही सफलता की कहानी जिले के चांडिल प्रखंड की कुरली गांव निवासी राधिका महतो की है। जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में मिसाल बन रही है। मां सरस्वती जागृति महिला समिति समूह से जुड़ी राधिका महतो बताती है कि वे एक सामान्य गृहणी थी। जिसके पास अपनी आय का कोई साधन नहीं था। और छोटे-छोटे जरूरी काम के पैसे के लिए भी अपने पति पर निर्भर रहना पड़ता था। राधिका अपने खेत में पारंपरिक खेती करती थी।

जिससे बामुश्किल किसी तरह से साल भर के खाने का अनाज हो पाता था। इतना ही नहीं बच्चों के पढ़ाई लिखाई के लिए भी अक्सर पैसों की कमी होती थी। और यदि परिवार में कोई सदस्य बीमार पड़ जाए तो सही समय पर अच्छे अस्पताल में उसका इलाज कराना भी मुश्किल होता था। कुल मिलाकर पैसों को लेकर परिवार ने काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। जिसके लिए अपने घर की जरूरतों को पूरा करने को लेकर राधिका खेती के साथ-साथ मजदूरी का कार्य भी किया करती थी।

इसी दौरान कुरली आजीविका उत्पादक समूह से जुड़ने के बाद जून 2019 में राधिका जोहार परियोजना से जुड़ी। जोहार परियोजना के अंतर्गत 33 डिसमिल तालाब में वर्ष 2020 में मात्र ₹3500 खर्च कर 650000 जीरा मछली का संचयन अपने तालाब में की। 2 माह के भीतर 14 अगस्त 2020 को 119 किलोग्राम अंगुली के साइज का होकर आकर्षिनी उत्पादक कंपनी लिमिटेड, खूंचीडीह आजीविका उत्पादक समूह, रुगड़ी आजीविका उत्पादक समूह एवं अन्य मूसरीबेड़ा घोड़ानेगी में बिक्री की।

जिसमें प्रति किलोग्राम ₹300 की दर से कुल ₹35700 का आय प्राप्त हुआ। जोहार परियोजना की ओर से 33 डिसमिल तालाब के लिए सहयोग राशि के रूप में ₹10170 प्राप्त हुआ था। इन सभी पैसों का उपयोग करके राधिका ने अधिक आए कमाने का निर्णय लिया। राधिका बताती है कि जोहार परियोजना में जुड़कर मछली पालन के बारे में जानकारी भी प्राप्त हो रही है। और मछली पालन करना बहुत अच्छा लग रहा है। आगे भी राधिका मछली पालन करते रहने की इच्छा जताती है। स्वाबलंबी जीवन शैली देने के लिए राधिका सरकार, जिला प्रशासन और जोहार परियोजना का आभार जताती है।

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