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वर्ष 2025 की रथ यात्रा में नए भव्य रथ पर रथारुढ़ होकर रथ यात्रा करेंगे महाप्रभु श्री जगन्नाथ…

अलौकिक है सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ का आगमन…

सरायकेला: संजय मिश्रा जगन्नाथ धाम पुरी के तर्ज पर सोलह कलाओं की नगरी कहे जाने वाले सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के पूजे जाने का विधान रहा है। जहां परंपरा है कि प्रत्येक घर में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की तस्वीर और विश्व प्रसिद्ध छऊ कला की तस्वीर दिखती है। बताया जाता है कि सरायकेला स्टेट रहे पूर्व के राजा रजवाड़े के जमाने में महाप्रभु श्री जगन्नाथ तत्कालीन 20 फीट चौड़ी सरायकेला की सड़क पर सोलह पहियों वाले रथ पर सवार होकर वार्षिक रथ यात्रा करते थे। परंतु समय के साथ सड़के सिमटती गई। और विशेष संरक्षण के अभाव में महाप्रभु श्री जगन्नाथ का रथ भी सोलह पहियों से चार पहियों तक आकर सिमट गया। परंतु श्री जगन्नाथ सेवा समिति सरायकेला वर्ष 2007 से सभी धार्मिक संस्कारों एवं परंपराओं का निर्वहन करते हुए इसके विकास में अग्रसर रही है। इसी के तहत वर्ष 2025 में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के नए भव्य रथ निर्माण की कवायद की जा रही है।

श्री जगन्नाथ सेवा समिति की बैठक में हुआ निर्णय:-

श्री जगन्नाथ सेवा समिति सरायकेला की एक महत्वपूर्ण बैठक जगन्नाथ श्री मंदिर के सभागार में आयोजित की गई। बादल दुबे की अध्यक्षता में आयोजित उक्त बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि वर्ष 2025 में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के वार्षिक रथ यात्रा के लिए नए भव्य रथ का निर्माण किया जाएगा। बैठक में समिति के सचिव पार्थ सारथी दाश द्वारा बताया गया कि सभी की आपसी सहभागिता से रथ निर्माण का कार्य दुर्गा पूजा के बाद से ही प्रारंभ कर दिया जाएगा। और रथ निर्माण के लिए ओड़िसा से कलाकारों को आमंत्रित किया जाएगा।

महाप्रभु श्री जगन्नाथ के बनने वाले रथ में सभी धार्मिक पहलुओं का ध्यान आवश्यक रूप से रखा जाएगा। साथ ही महाप्रभु श्री जगन्नाथ का रथ काफी भव्य रूप से तैयार किया जाएगा। बैठक में समिति के चिरंजीवी महापात्र, परशुराम कवि, गणेश सतपथी, दीपेश रथ, चंद्र मोहन कर, मंदिर के पुजारी सह सेवक पंडित ब्रह्मानंद महापात्र, कर बाबू एवं राजेश मिश्र मुख्य रूप से उपस्थित रहे। बताया गया कि नये रथ निर्माण को लेकर जल्द ही समिति के अध्यक्ष राजा सिंहदेव की अध्यक्षता में बैठक कर रूपरेखा तैयार की जाएगी।

अलौकिक है सरायकेला में महाप्रभु श्री जगन्नाथ का आगमन:-

ओड़िया संस्कृति के प्रतीक महाप्रभु श्री जगन्नाथ के सरायकेला में पूजे जाने की परंपरा तकरीबन ढाई सौ साल पुरानी बताई जाती है। महाप्रभु श्री जगन्नाथ के सरायकेला आगमन के संबंध में बताया जाता है कि उड़ीसा के ढेंकानाल के पुजारी जलंधर महापात्र वह नदी में स्नान करने के क्रम में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के विग्रह का दर्शन बहते हुए हुआ था। जिसके बाद पुजारी जलंधर महापात्र ने विग्रह को घर लाकर श्रंगार आदि करते हुए पूजा अर्चना शुरू की। इसके बाद पुजारी जलंधर महापात्र महाप्रभु श्री जगन्नाथ के विग्रह को लेकर सरायकेला स्टेट पहुंचे।

और एक खपरैल घर में महाप्रभु को स्थापित कर पूजा अर्चना करने लगे। इसी दौरान युद्ध के लिए जा रहे सरायकेला के तत्कालीन महाराज अभिराम सिंह ने कुटिया से घंटी की आवाज आती सुनकर कुटिया में गए। और महाप्रभु से युद्ध विजय का आशीर्वाद मांगा। युद्ध से विजयी होकर लौट के बाद महाराज अभिराम सिंह ने पुजारी जलंधर महापात्र सहित महाप्रभु श्री जगन्नाथ को लाकर खरकई नदी के तट पर जमीन देखकर बसाया। बाद में प्रसिद्ध शिल्पकार चंद्रमोहन महापात्र के निर्देशन में टेराकोटा पद्धति से भव्य श्री मंदिर का निर्माण करवाया गया।

जिसके बाद माली परिवार द्वारा महाप्रभु श्री जगन्नाथ के अग्रज बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रहों को लाकर मंदिर में स्थापित किया गया था। बताते चलें कि महाप्रभु श्री जगन्नाथ को सरायकेला लाने वाले पुजारी जलंधर महापात्र की दसवीं पीढ़ी आज महाप्रभु की सेवा कर रही है। जिसमें मंदिर के वर्तमान पुजारी ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा प्रतिदिन की पूजा अर्चना संपन्न कराई जाती है। महाप्रभु के पूजा अर्चना सहित संस्कृति, संस्कार के संरक्षक सरायकेला के राजा पदेन होते हैं।

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