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आदिवासी गांव समाज में व्याप्त डायन कुप्रथा की रोकथाम के लिए पांच सूत्री सुझाव और सहयोग प्रार्थना के साथ आदिवासी सेंगेल अभियान ने की जन जागरूकता रैली…..

उपायुक्त को सौंपा ज्ञापन।

सरायकेला। सती प्रथा की तरह ही आदिवासी गांव समाज में व्याप्त पुरानी एवं बीमार मानसिकता की खतरनाक अमानवीय परंपरा डायन कुप्रथा की रोकथाम के लिए 5 सूत्री सुझाव के साथ सहयोग की प्रार्थना करते हुए आदिवासी सेंगेल अभियान द्वारा जिला मुख्यालय में जन जागरूकता रैली निकाली गई।

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अभियान के संयोजक विनोद बिहारी कुजुर, संयोजक लखन बांदिया, संयोजक जादूनाथ मार्डी, संयोजक कलिपद टूडू एवं माझी परगना अम्पा हेंब्रम के नेतृत्व में जन जागरूकता रैली निकालते हुए उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा गया। जिसमें 5 सूत्री सुझाव के साथ-साथ बताया गया कि अभियान के अनुसार डायन कुप्रथा का यह अंधविश्वास से ज्यादा आदिवासी गांव समाज की विकृत मानसिकता का प्रतिफल है। और आशा पुलिस प्रशासन के मार्फत सरकारों से डायन कुप्रथा काजल मूल समाप्त करने के लिए सुझाव देते हुए सहयोग की कामना करती है।

दिए गए 5 सूत्री सुझाव. :-

1. सामूहिक जुर्माना हो- जिन आदिवासी गांव में डायन कुप्रथा के नाम पर हिंसा, हत्या एवं प्रताड़ना जैसी घटना की पुष्टि होती है, उस गांव के सभी नागरिकों पर सामूहिक जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही सरकारी सहयोग में कटौती जैसी दंडात्मक प्रावधान की जा सकती है। डायन कुप्रथा के विरोध में शपथ पत्र दाखिल करने वाले व्यक्ति को इससे मुक्त रखा जा सकता है।

2. आदिवासी स्वशासन प्रमुख माझी परगाना की जिम्मेदारी तय हो- आदिवासी स्वशासन प्रमुख माझी परगाना के ऊपर डायन कुप्रथा को समाप्त करने की जिम्मेदारी देना अनिवार्य होगा।

3. डायन कुप्रथा उन्मूलन को लेकर समन्वय बैठक हो- सभी थाना क्षेत्रों में कम से कम महीने में 1 दिन समन्वय बैठक का आयोजन पुलिस प्रशासन की निगरानी में या जाना लाभकारी हो सकता है। जिसमें पंचायत प्रतिनिधि, आदिवासी स्वशासन प्रतिनिधि, मीडिया एवं संगठन के अगुवा, प्रबुद्ध नागरिक, महिला स्वयं सहायता समूह एवं स्थानीय एनजीओ को शामिल किया जा सकता है।

4. आदिवासी गांव समाज में सुधार हो- आदिवासी गांव समाज में व्याप्त बुलूग यानी नशा पान, रुमुग यानी अंधविश्वास पर आधारित झाड़-फूंक, झुपना, डंडोम यानी जुर्माना, बारोंन यानी सामाजिक बहिष्कार, चुनाव में वोट की खरीद बिक्री, महिला विरोधी मानसिकता आदि को समाप्त करने और वंश परंपरागत, अनपढ़, पियक्कड़ माझी परगना की जगह ग्रामीणों द्वारा शिक्षित, समझदार लोगों को गुणात्मक जनतांत्रिकरण प्रक्रिया से माझी परगना नियुक्त करने में सहयोग करना। और मर्यादा के साथ जीने के मौलिक अधिकार से आदिवासी गांव समाज वंचित ना हो, इसका प्रयास होना चाहिए।

5. जन जागरण हो- डायन कुप्रथा के खिलाफ बृहद जन जागरण का कार्यक्रम चलाना और गांव-गांव तक निशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराना, ताकि ग्रामीण ओझा, सोखा एवं झाड़-फूंक जैसे चक्कर में भास्कर डायन कुप्रथा को पुनर्जीवित करने का बहाना ना ढूंढ सके।

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