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परमार्थ बहुत तरीके से किया जाता है, जो दूसरों के काम आता है वही महान होता है ।

सपूत को निराश होने की जरूरत नहीं रहती है- बाबा उमाकान्त जी महाराज

रांची: अर्जुन कुमार

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राजधानी राँची के अनगड़ा प्रखंड के हेसल ज़ारा स्थित जयगुरुदेव बाबा उमाकांत जी महाराज आश्रम में त्रयोदशी के शुभ अवसर पर भव्य सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया । सत्संग के माध्यम से वक्तावों ने बाबा उमाकांत जी महाराज का मानव मात्र के लिए जो संदेश है सुनाया । बताया गया कि परमार्थ बहुत तरीके से किया जाता है, जो दूसरों के काम आता है वही महान होता है सपूत को निराश होने की जरूरत नहीं रहती है- कर्मों के विधान को और उसकी अटलता को पूरा समझने समझाने वाले, अपने भक्तों की तकलीफ को दूर करने के लिए उनके कर्मों का बोझा अपने उपर ले कर भुगतने वाले, परोपकार करने में दिन-रात व्यस्त, निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के सच्चे सपूत, आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज का कहना है कि कर्म के बारे में आपको नहीं मालूम है कि हमसे क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा हुआ।

पता नहीं चलता है। कर्म सब जमा हो जाते हैं। और कर्मों की सजा मिलती ही मिलती है। किसको? जो भी इस मनुष्य शरीर में इस धरती पर आता है, चाहे ऋषि-मुनि हो, चाहे योगी-योगेश्वर हो, चाहे वह सन्त हो। अब यह जरूर है कि सन्त इस तरह से कर्म नहीं करते हैं कि उनको सजा भोगनी पड़े लेकिन दूसरों की तकलीफ को दूर करने के लिए उसके कर्मों को वो अपने उपर ले लेते हैं तो उनको भी अपने शरीर से भोगना पड़ता है। कर्मों की वजह से ही महापुरुषों को भी तकलीफ झेलना पड़ा था। परमार्थ बहुत तरीके से किया जाता है
काम तो लोग दिखावे के लिए ही करते थे।

आज भी जिनके पास पैसा हो जाता है, वो भी। दिखावे का ही, बेफिजूल चीजें यह औरतें ले आती है, ड्राइंग रूम में सजा देती है। ताकि औरतें आवे, देखें, तारीफ करें कि बहुत बढ़िया चीज लाई। ऐसी-ऐसी चीजें घर में आ जाती कि किलो के भाव भी कबाड़े में नहीं बिकती है। और जरुरत की एक चीज की जगह चार-चार चीजें, जिनके पास पैसा आ जाता है, वह ले आती है। यह नहीं सोचते हैं कि कितनी मेहनत से लोग लाते हैं। हमको अगर मिल गया इधर-उधर से, बगैर मेहनत के तो हमको इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इस चीज को नहीं सोच पाते हैं। सोचना चाहिए। जरुरत से ज्यादा फ़ालतू की चीज जो हम लाये हैं, यह, जिसके पास नहीं है उसके पास अगर यह जाता तो उसको कितना फायदा लाभ सुख मिलता। देखो बिजली लाइट जलती रहती है, पंखा चलता रहता है, लोग ध्यान नहीं देते हैं। मान लो अगर पैसा नहीं भी देना पड़ता है तो भी बिजली बच जाएगी तो कहीं ऑपरेशन हो रहा है, कहीं कोई दुखी है, वहा लाइट नहीं है तो वहां उसे लाइट बिजली मिल जाएगी।

तो यह चीज तो सोचना चाहिए। परमार्थ तो बहुत तरीके से किया जाता है। यह नहीं होता है कि दिखावे के लिए बस तुम परमार्थ का काम कर दो।एक दूसरे के काम आओ । सौ सतसंगी हो गांव में और सौ मिलकर के एक खेत को काटोगे तो एक आदमी का एक दिन में ही सारा खेत कट जाएगा। उसकी सारी मड़ाई एक ही दिन में हो जाएगी। जो 15 दिन-एक महीने में एक आदमी काटेगा, वह एक ही दिन में कट जाएगा। आप सोचो 15 दिन में 15 आदमी काटेंगे उसको और 8 दिन में सब का कट जाएगा, सबकी मड़ाई हो जाएगी और सब साथ में जाकर के प्रचार कर सकते हो। यह नहीं कहने को रहेगा कि खेत खड़ा है, बरसात औले पत्थर गिरा तो सब नाश हो जाएगा, अभी हम प्रचार में नहीं जा सकते हैं, अभी हम परमार्थी काम नहीं कर सकते हैं। जब आप सुमिरन, ध्यान के लिए बैठे तो मन तो वहां खेत काटने, मड़ाई, जुताई, रखवाली में लगा है। अरे जिसके पास ट्रैक्टर है, तेल का खर्चा ले लो और सबकी जुताई कर दो। अब जिसके खेत की जुताई हो, वह भी किसी का कर्जा न रखे। आपके लायक कोई काम हो, आप भी उसका कर दो। सिंचाई, जुताई, मड़ाई, कटाई करवा दो। एक-दूसरे का कर्जा मत रखो। करके देखो। सुनने से नहीं होता है, करने से होता है। निराश होने की जरूरत नहीं रहती है ।

जो सपूत होते हैं, उस मालिक पर भरोसा और विश्वास करके आगे निकल पड़ते हैं। तो कहा गया है, अच्छे लोगों का, धर्मनिष्ठों का, महापुरुषों का, पवन और पानी सब साथ देते हैं। गोस्वामी जी ने लिखा है, जहां जहां चरण पड़े रघुराया, तहां तहां मेघ करे नभ छाया। जहां-जहां वह आगे बढ़ते गये, वहां अगर छाया की जरूरत पड़ी तो छाया उनको मिलती रहेगी। धूप गर्मी यह जो प्रकृति है, यह महापुरुष के हाथ में होती है। महापुरुषों के अनुसार चलती है। महापुरुषों के अनुसार ही होता है। गुरु महाराज के जीवन में बड़ा संघर्ष आया लेकिन संघर्ष को झेलते हुए आगे बढ़ते चले गए। रुके नहीं। और जीवों पर बहुत बड़ा उपकार किया।

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