कोरोना के इस संकटकाल में पुलिस कहीं फ्रेंडली तो कहीं अमानवीय अनफ्रेंडली भी दिख रहे है ..
सरायकेला-खरसवाॅ (संजय मिश्रा / विकास कुमार) हर पद और गरिमा से ऊपर उठकर जरूरतमंद मानव की सेवा करने को ही परम धर्म और मानवता कहा गया है। लेकिन जब मानव जाति पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हो और सहायता करने वाले हाथ सहयोग करने की बजाय प्रताड़ित करने लगे तो इसे क्या कहा जाए? और जब प्रताड़ित करने वाले हाथ भी पुलिस के हाथों प्रताड़ित होने वाला शख्स शिकायत करने भी जाए तो किसके पास? बताते चलें कि लंबे संघर्ष के बाद अलग अपना झारखंड राज्य बनने के बाद से ही तथाकथित क्रूर भूमिका में माने जाने वाले पुलिस की छवि में काफी बदलाव आया है। और मानव सेवा को लेकर अब पुलिस को सोशल फ्रेंडली के रूप में देखा जा रहा है। परंतु इसी बीच में कुछ एक घटनाएं ऐसी छाप छोड़ जाती है जिसे अमानवीय अनफ्रेंडली पुलिस के रूप में पहचान बन जाती है। कुछ ऐसा ही वाकया सोमवार को सरायकेला के गैरेज चौक में देखा गया। जहां जमशेदपुर से ट्राईसाइकिल चलाते हुए सरायकेला गैरेज चौक पहुंचे एक 32 वर्षीय दिव्यांग युवक घनश्याम पात्रो के दर्द फूट पड़े। साफ शब्दों में जब बेहद परेशान और तंगहाल घनश्याम ने गैरेज चौक पर पानी पीने की गुहार लगाई। तो दो घुट पानी पीते ही फफक फफक कर रो पड़े। कहा कि उनके पास कुछ भी नहीं है। और उन्हें अभी इसी हाल में ट्राईसाइकिल से ही अकेले 700 किलोमीटर की आगे यात्रा करनी है।
दर्द जो दिल पर घाव कर दें:-
घनश्याम उड़ीसा के कालाहांडी जिले के केसिंगा गांव के रहने वाले हैं। और अपने दोनों पैरों से पूरी तरह से दिव्यांग हैं। करीब 10 साल पहले उनके माता-पिता का देहांत हो जाने के बाद घनश्याम अपना गांव छोड़कर जमशेदपुर चले आए थे। और पिछले 6 सालों से जमशेदपुर के साकची गोलचक्कर के आसपास भीख मांग कर अपना भरण पोषण किया करते थे। इसी दौरान कुछ स्थानीय पुलिस के ही उत्साहवर्धन के बाद घनश्याम बीते 6 महीने से अपने कमाए हुए रोजगार से मास्क और सेनीटाइजर खरीदकर अपने ट्राईसाइकिल पर उन्हें दुकान की तरह सजाते हुए साकची गोल चक्कर के आसपास ही लोगों को कोरोना से सुरक्षा के लिए मास्क और सेनीटाइजर बेच रहे थे। इसी दौरान बीते एक सप्ताह से पुलिस द्वारा ही उन्हें दुकान नहीं लगाने और सामान नहीं बेचने को लेकर लगातार लाठी के बल पर चेतावनी दी जाती रही। जिससे पूरी तरह से परेशान हुए घनश्याम ने अपने मास्क और सेनीटाइजर बेचकर कमाए हुए ₹80 के साथ अपने गांव की सफर शुरू की। प्रातः 4:00 साकची जमशेदपुर से चले घनश्याम करीब 10:00 बजे सरायकेला गैरेज चौक पहुंचे। और बताया कि अपने गांव पहुंचने में उन्हें 15 से 20 दिन और लग जाएंगे।
गैरेज चौक सरायकेला पर दिखी सहृदयता जिंदादिली:
– गैरेज चौक पहुंचे घनश्याम के दर्द को सुनकर आसपास जूटे लोगों की आंखें भी डबडबा गई। इसी दौरान सभी ने घनश्याम की सहायता करने की ठानी। और एक दूसरे से सहयोग राशि कलेक्शन करते हुए घनश्याम को यात्रा के लिए ₹1000 के साथ-साथ खाने-पीने की सामग्री देकर रवाना किया गया। बहरहाल पूरे मामले में घनश्याम आमजन में कोई भी व्यक्ति हो सकता है। और कोरोना जैसे महामारी के इस संकट काल में सहायता नहीं कर सकते तो मनोबल तोड़ना भी उचित नहीं बताया जा रहा है।