Spread the love

चुआड़ विद्रोह के महानायक विशेष लेख (21मार्च 2023 को प्रकाशित हेतु समर्पित)

चुआड़ विद्रोह के महानायक व स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम क्रांतिवीर  वीर शहीद रघुनाथ महतो के 285 वीं जन्म जयंती दिवस …

जन्म : 21 मार्च 1738

सरायकेला Sanjay । हमारे देश में आज आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इतिहास के पन्नों से वीरों की गाथा हमारे भावी पीढ़ियों को पढ़ाया जा रहा है। ऐसे ही वीरों एवं पराक्रमियों की धरती झाड़खंड में जन्मे असंख्य योद्धाओं में क्रांतिवीर वीर शहीद रघुनाथ महतो की वीरता एवं पराक्रमियों की वृत्तांत को दर्शाते हुए हमें गौरव महसूस हो रहा है। वृतांत हैं स्वतंत्रता के लिए सबसे पहले आवाज बुलंद करने वाले वर्तमान झाड़खंड के अमर शहीद रघुनाथ महतो का संक्षिप्त वीर गाथा। तत्कालीन जमीन का सर्वे का अर्थ था जमीन का मालिकाना हक ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में जाना, साथ में विभिन्न करों का भी भुगतान करना। इसके साथ कंपनी का स्थानीय स्वशासन में हस्तक्षेप भी करना था। अंग्रेजों का यह कार्यशैली स्थानीय व संवेदनशील जमींदारों को नागवार लगा क्योंकि मुगल जमाने तक इनके स्वशासन व जमीन के मालिकाना हक पर कोई हस्तक्षेप या आघात नहीं हुआ था। इन सारे बहुतेरे कारणों से इस क्षेत्र में (झाड़खंड) अंग्रेजों का सर्वप्रथम सशक्त विरोध क्रांतिवीर रघुनाथ महतो के नेतृत्व में सन् 1769 में हुआ। इतिहासकारों को माने तो यह प्रथम “चुआड़ विद्रोह” कहा गया।

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ

यह “चुआड़ विद्रोह” जमीन के मालिकों व स्वतंत्र स्वशासन में रहने वाले कोल ,कुड़मी, भूमिज, सरदार, संथाल, आदि आदिम निवासियों का समन्वित विद्रोह था। अब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इस भयंकर आग को विराट व्यापक सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता थी। क्रांतिवीर रघुनाथ महतो इस आंदोलन को सशक्त व व्यापक नेतृत्व करने में सक्षम थे। क्रांतिवीर विशाल प्रतिभा के धनी थे, वे बलिष्ठ व लठैत होने के साथ-साथ दुश्मनों की कूटनीतिक चाल व षड्यंत्र को समझने परखने की क्षमता रखते थे एवं भविष्य की पीढ़ी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसके विषय पर भी दूर दृष्टि रखते थे। अतः पूरे आंदोलन का कुशल नेतृत्व देने में इनका विशेष योगदान था।

क्रांतिवीर रघुनाथ महतो के पिताश्री 12 मौजा के  परगनैत थे :

क्रांतिवीर रघुनाथ महतो का जन्म (21मार्च) फाल्गुन पूर्णिमा 1738 को नीमडीह थानांतर्गत घुंटियाडीह ग्राम, वर्तमान में जिला सरायकेला-खरसावां झाड़खण्ड में हुआ था। इनके पिताश्री स्व० काशीनाथ महतो (हिंदइआर), माताजी करमी महतो थे। मालूम हो कि क्रांतिवीर रघुनाथ महतो के पिताश्री 12 मौजा के जमींदार अर्थात परगनैत थे। बचपन से ही क्रांतिवीर अन्याय, शोषण, दमन आदि के सख्त खिलाफ थे। एक बार अंग्रेजों के बंगाली चकलादार यानी तहसीलदार, किसी मसले पर क्रांतिवीर रघुनाथ महतो के पिताश्री के साथ उलझ पड़े थे और उन्हें बेज्जती भी किया था। रघुनाथ महतो को सहन नहीं हुआ और तत्काल उन्होंने उन तहसीलदारों को मारते- पीटते घसीटते हुए गांव से बाहर निकाला।

क्रांतिवीर रघुनाथ महतो किसानों को संगठित करने :

अंग्रेजों को जब यह खबर मिलीं तो उन्होंने उनको पकड़ने के लिए अंग्रेजी सिपाही को भेजा। मगर उन्हें सफलता नहीं मिली उल्टे उन्हें ही मार खाना पड़ा। अंग्रेजी हुकूमत ने तब उन्हें पकड़वाने के लिए सहायता करने वालों को इनाम की घोषणा की एवं उस एरिया में पुलिस कैंप लगा दिया। क्रांतिवीर काफी सचेत हुए और उन्हें सबक सिखाने के लिए योजनाएं बनाने लगे। जब दिन पर दिन ब्रिटिश हुकूमतों के चकलादारों, तहसीलदारों का अत्याचार बढ़ने लगा तो 1968 को खेती पैदावार खेत से उठने के पश्चात क्रांतिवीर रघुनाथ महतो किसानों को संगठित करने लगे। उनकी “स्ट्रेटजी” गुरिल्ला तंत्र की तरह थी।

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कांति का बिगुल फूंक : 

वे चुपचाप रात में मीटिंग करते, नौजवानों को अंग्रेजी जुल्मों की जानकारी देते और जोर जुल्म के विरोध में संघर्ष करने की मानसिकता तैयार करते थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चोट देने के निमित्त मालगुजारी नहीं देने की घोषणा करने लगे। विद्रोह का स्वर दिन-ब-दिन मजबूत होने लगा। सन् 1769 में अपने जन्मदिन फाल्गुन पूर्णिमा को केतुंगा- नीमडीह के पश्चिम में एक विशाल मैदान में एक विशाल जनसभा बुलाई और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कांति का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने नारा बुलंद किया-

“आपन गांव आपन राइज धुर खेदा ब्रिटिश राइज ।”

अर्थात अपना गांव अपना राज दूर भगाओ ब्रिटिश राज की बुलंद आवाज से उस समय देखते ही देखते-देखते करीबन 1000 से अधिक नौजवान विद्रोही जोश खरोश व उमंग के साथ इनके साथ खड़े हुए । आज वही सभा स्थल रघुनाथपुर के नाम से परिचित है। इस अंचल में चुआड़ विद्रोह के शुरुआती दौर में लगभग तीन साल तक आदिवासी कुड़मि मोर्चा संभाले हुए थे। फिर संथाल,भूमिज,कोल, मुंडा आदि धीरे-धीरे इस मुहिम में जुड़ने लगे। क्रांतिवीर रघुनाथ महतो की सेना में लगभग पांच हजार लोग शामिल थे।

यह सेना तीर-धनुष, टांगी, फरसा, तलवार, बल्लम्, घुंइचा आदि से सुसज्जित था। तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने विद्रोह थमता नहीं देख, छोटानागपुर खास, जंगल महल और रामगढ़ के कमिश्नरों से रघुनाथ महतो और विद्रोहीयों से बातचीत कर समस्या का समाधान करने का आदेश दिया कि उन पर किसी तरह का दमनात्मक कारवाई ना हो। लेकिन जमींदारों ने गवर्नर जनरल की नहीं मानने के लिए कमिश्नर पर दबाव बनाया। ध्यातव्य है कि विद्रोह के बढ़ने के साथ ही कुछ जमींदार अपने स्वार्थ सिद्धि व शासनाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजों के पिट्ठू बन गए। विद्रोहियों के खिलाफ गुप्तचरी के लिए एक तंत्र स्थापित हुई।

रघुनाथ महतो ने लोटा के “गड़तैतेइर” नामक गुप्त स्थल पर विद्रोहियों की एक गुप्त बैठक बुलाई :

5 अप्रैल 1778 चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर रघुनाथ महतो और उनके सहयोगियों के लिए दुर्भाग्य का दिन साबित हुआ । इस तिथि को रघुनाथ महतो ने लोटा के “गड़तैतेइर” नामक गुप्त स्थल पर विद्रोहियों की एक गुप्त बैठक बुलाई। यहां चुनिंदे विद्रोहियों को साथ लेकर रामगढ़ पुलिस बैरक में हमला करने के लिए प्रस्थान करने वाले थे, और वहां बंदूक लूटने की योजना थी। परंतु गुप्त चोरों के माध्यम से इस योजना का भनक अंग्रेजों को मिल गई। अंग्रेजों के सिपाही पूरी तैयारी के साथ घेर लिया और विद्रोहियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी। इसका मुकाबला बल्लम्, तलवार, तीर धनुष, फरसा आदि से किया जाने लगा। करीब एक दर्जन लोग शहीद हुए, सैकड़ों घायल हुए तथा कुछ लोगों को गिरफ्तार कर ले गए। उस दिन की घटना में क्रांतिवीर अपनी सहयोगियों के साथ शहीद हो गए । इस घटना ने लोटा-किता गांव को पावन तो किया ही बल्कि इतिहास में यह धरती स्वर्ण अक्षरों में आंकी गई । घमासान अब भी साक्षी है कि वर्तमान किता शिव मंदिर के करीब 15 मीटर दक्षिण- पश्चिम में दो पत्थर शहीदों की स्मृति में है और अन्य दो पत्थर किता जाहेरथान के पश्चिम में है।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुड़मी जाति की एक प्रमुख भूमिका रही है ।

कुल चार शीलस्मृति शहीदों के नाम पर किता के सीमाना में हैं। दो पत्थर जो शिव मंदिर के समीप अवस्थित हैं उनमें से एक ऊंचा तथा एक उससे छोटा है, उस गांवों के बुजुर्गो की माने तो सबसे ऊंचा पत्थर स्मृति क्रांतिवीर रघुनाथ महतो एवं छोटा उनके सहयोगी बुली महतो का स्मृति चिन्ह है। यदि इतिहासकार एक मत हो तो चुआड़ विद्रोह भारतीय स्वतंत्र संग्राम का पहला संगठित विद्रोह कहा जा सकता है। अंतिम वाक्य यह कि हमारे विद्रोहियों को जायज लड़ाई के लिए चुआड़ कहा गया व नीच दिखाने के लिए तथा अपमानित करने के लिए यह कहा गया था। परन्तु आज इन क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का अपार श्रद्धा बढ़ी है और दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। सभी वर्गों, जातियों एवं मजहबों आदि से ऊपर होते हैं ऐसे क्रांतिकारी शहीदों की जीवनादर्श । वास्तविकता तो यह है कि सत्य और तथ्य को अधिक दिनों तक दबाकर नहीं रखा जा सकता है।आज देर ही सही सब लोग सच्चाई को सम्मान दे रहे हैं। कलम एवं आन्दोलन के सहारे समाज जाग उठी है। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुड़मी जाति की एक प्रमुख भूमिका रही है ।

परंतु शुरू से ही इन तथ्यों को इतिहास में दबाया गया है ।अब प्रबुद्ध एवं विद्वज्जन को लग रहा है कि अब समय आ गया है कि हमें उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देना चाहिए जिनके त्याग और बलिदान से वर्षों की पराधीनता की बेड़ी काटकर हमें मुक्त किया गया है।अतः इनके प्रति हमारी अनंत कोटि श्रद्धा सुमन अर्पित है ।

 

लेखक  : गुणधाम मुतरुआर
(भूगोल शिक्षक)
अनुग्रह नारायण +2 उच्च विद्यालय,

पिलीद, सरायकेला खरसावां, झाड़खण्ड।

Advertisements

You missed