सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा) जगन्नाथ धाम पुरी के तर्ज पर सरायकेला में आयोजित होने वाले महाप्रभु श्री जगन्नाथ के पूजा आराधना के तहत बृहस्पतिवार को सरायकेला स्थित प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर में देवस्नान पूर्णिमा मनाया गया। कोविड-19 संक्रमण काल को देखते हुए पूरी तरह सादगी के साथ गाइडलाइन का पालन करते हुए देवस्नान पूर्णिमा मनाया गया।
इस अवसर पर श्री मंदिर के पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा मंत्रोच्चार के बीच महाप्रभु की आराधना की गई। जिसके बाद जगन्नाथ भक्तों एवं समिति के बादल दुबे, सुशांत महापात्र, चिरंजीवी महापात्र, अहलाद महंती एवं काशीनाथ कर की उपस्थिति में खरकई नदी से लाए गए 108 कलशों के पवित्र जल में सुगंधित द्रव्य और औषधीय पदार्थ मिलाकर महाप्रभु श्री जगन्नाथ का देवस्नान करवाया गया। इसके पश्चात नए वस्त्र और नए मुकुट के साथ महाप्रभु श्री जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को श्री मंदिर स्थित सिंहासन पर विराजमान किया गया। जहां भक्तों ने महाप्रभु के नयनाभिराम रूप का दर्शन करते हुए उनकी आराधना की। इस अवसर पर महाप्रभु को भोग प्रसाद के रूप में श्री मंदिर के पाकशाला में पकाए गए खीर खिचड़ी के साथ खट्टे आमड़े की सब्जी का चढ़ावा चढ़ाया गया। जिसके बाद धार्मिक मान्यता के अनुसार महाप्रभु ज्वर से पीड़ित हुए। इसके पश्चात महाप्रभु को स्वास्थ्य लाभ के लिए श्री मंदिर स्थित अन्नसर गृह में विश्राम के लिए ले जाया गया।
अगले 15 दिनों तक महाप्रभु करेंगे विश्राम; भक्तों को नहीं देंगे दर्शन:- इसके साथ ही महाप्रभु श्री जगन्नाथ अगले 15 दिनों तक के लिए अपने भक्तों से दूर रहकर स्वास्थ्य लाभ करेंगे। इस दौरान सिर्फ श्री मंदिर के पुजारी सह सेवक पंडित ब्रह्मानंद महापात्र महाप्रभु की देखभाल करेंगे। इन 15 दिनों में महाप्रभु को चिवडा का भोग चढ़ाया जाएगा। साथ ही इलाज के लिए दो चरणों में माली परिवार द्वारा विशेष रूप से तैयार की गई आयुर्वेदिक औषधि दवाइयां दी जाएंगी। जिसमें 5 दिनों के पश्चात यानी आगामी 29 जून को महाप्रभु को पंचमूलारिस्ट औषधि दी जाएगी। और उसके 10 दिनों के बाद यानी 9 जुलाई को दूसरी खुराक के रूप में दशमूलारिष्ट औषधि दी जाएगी। जिससे स्वस्थ होकर महाप्रभु 10 जुलाई को नेत्र उत्सव पर अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
जाने जगन्नाथ संस्कृति को:-
1. ईश्वर होते हुए भी आम जीवन से जुड़े घटनाओं का धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
2. कलियुग में टूट रहे रिश्ते नातों को जोड़ने का संदेश देते हुए महाप्रभु अपने भाई और बहन के साथ होते हैं।
3. एकमात्र देव जो अपने भक्तों से मिलने के लिए साल में एक बार रथ यात्रा कर श्री मंदिर से बाहर भक्तों के बीच पहुंचते हैं।