सिंदूर टीका नाट्यशास्त्र का ललाट तिलकम तो फरिखंडा का प्रणाम भी यम, नियम और प्राणायाम का लय योग।
सरायकेला- खरसावां (संजय कुमार मिश्रा) भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय की स्वायत्त संस्था संगीत नाटक एकेडमी के तत्वाधान मनाया जा रहे आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर साप्ताहिक योग पर्व का आयोजन 21 से 27 जून तक किया जा रहा है। इसके तहत देशभर के नेशनल अवॉर्डी कलाकारों एवं कला गुरुओं द्वारा प्रतिदिन 120 सत्र में ऑनलाइन कार्यशाला, व्याख्यान और प्रस्तुति प्रदर्शन के माध्यम से योग और प्रदर्शन कलाओं के संदर्भ में जानकारियां दी जा रही है। योगा फॉर वेल बीइंग के तहत योग पर्व के समापन दिवस यानी रविवार को अपराहन 4:00 बजे के सत्र में राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक द्वारा सरायकेला छऊ में योग को लेकर 25 मिनट का प्रदर्शन के साथ योग क्रिया की जानकारी दिए। जिसका संगीत नाटक एकेडमी के फेसबुक पर https://www.facebook.com/sangeetnatak/ यूट्यूब पर https://www.youtube.com/sangeetnatak/ एवं टि्वटर पर https://twitter.com/sangeetnatak लाइव प्रसारण देखा गया।
कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ने और इम्यूनिटी डेवलपमेंट के लिए श्रेष्ठ है छऊ नृत्य के साथ योग:- गुरु तपन कुमार पटनायक बताते हैं कि कोविड-19 महामारी के संकट काल में स्वांस और इम्यूनिटी की समस्या प्रमुखता से सामने आई। प्राचीन काल से योग के साथ चले आ रहे छऊ नृत्य कला का 90% क्रिया योग से जुड़ा हुआ है। जिसमें मुखौटा यानी छऊ धारण कर नृत्य करने वाले कलाकार अपने सांसों पर बेहतर तरीके से कंट्रोल करते हैं।
छऊ नृत्य में अष्टांग नियम का पालन कलाकार की इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है। जिसमें योग के लिए तांडव और लास्य का लय स्पष्ट होता है। शिव और शक्ति को समर्पित छऊ नृत्य कला में भाव और भंगिमा के साथ पद और चाली जैसे क्रियाएं पूरी तरह योग आधारित होती हैं। नटराज स्वरूप शिव को समर्पित छऊ नृत्य कला के लिए शिव ही योगी हैं और शिव ही नटराज हैं, के आध्यात्मिक क्रियाओं के साथ विभिन्न नृत्यों में साधना और आराधना का भी योग देखा जाता है। प्रदर्शन के माध्यम से उन्होंने बताया कि नृत्य मानव जीवन की सरस अभिव्यक्ति है। जिसमें विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य की प्रत्येक भाव भंगिमा योग से सराबोर है। फरिखंडा सामरिक नृत्य में प्रणाम की मुद्रा यम और नियम के साथ प्राणायाम को सिद्ध करता है। जिसमें भूमि और गुरु जन को प्रणाम के तरीके निहित है।
नृत्य में सिंदूर टीका नाट्यशास्त्र के ललाट तिलकम की बखूबी योग अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार झाड़ू दिया, गोबर कुढ़ा और पसरी हांड़ा जैसे नृत्यों में भाव भंगिमा से लेकर अंग एवं पद चालन योग की क्रियाओं को दर्शाते हैं। इसलिए प्राचीन छऊ नृत्य कला का नियमित अभ्यास एवं प्रदर्शन संपूर्ण और सर्वांगीण योग के साथ संबंध रखता है।