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नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ व्रत; आज होगा खरना…

सरायकेला:संजय मिश्रा

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सरायकेला। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले आस्था के महापर्व छठ व्रत के धार्मिक अनुष्ठानों का शुक्रवार से नहाय-खाय के साथ शुभारंभ किया गया। चार दिवसीय धार्मिक अनुष्ठानों वाले इस त्यौहार के नहाय-खाय के अवसर पर छठ व्रतियों ने पवित्र स्नान कर शुद्धता से घी के साथ कद्दू की सब्जी, चना दाल का दाल और अरवा चावल का भात पकाए।

जिसके बाद भगवान सूर्य देव की विधि विधान के साथ आराधना करते हुए पकाए गए कद्दू की सब्जी, चना दाल का दाल और अरवा चावल का भात का सेवन किया। इस दौरान घरों की भी साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखा गया। छठ व्रती के कद्दू की सब्जी, दाल और भात सेवन करने के पश्चात प्रसाद स्वरूप परिवार और परिजनों द्वारा भी उसका सेवन किया गया।

व्रत अनुष्ठान के दूसरे दिन यानी शनिवार को खरना पूजा और उसके साथ ही छठ व्रतियों द्वारा निर्जला उपवास व्रत का शुभारंभ किया जाएगा।
संतान प्राप्ति की कामना, संतान की कुशलता और उसके दीर्घायु होने की कामना, नौकरी रोजगार सहित सुख शांति एवं समृद्धि की कामना को लेकर किए जाने वाले कठिन तप के छठ व्रत को लेकर सरायकेला के कुदरसाई स्थित छठ घाट, शमशान काली मंदिर स्थित छठ घाट जगन्नाथ मंदिर स्थित छठ घाट विशेष रूप से साफ सफाई और छठ घाट बनाने की तैयारी जोरो पर है। इसके साथ ही सीनी में मुख्य रूप से चीनी रेलवे पम्पु तालाब, सीनी बांधगोड़ा स्थित राजा तालाब एवं सीनी मोहितपुर सोना नाला को भी छठ पूजा के लिए तैयार किया जा रहा है।

कठिन तप व्रत वाले छठ पर्व के विषय में मान्यता रही है कि सूर्योपासना का या अनुपम लोक पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश भर में विभिन्न स्थानों पर और नेपाल की तराई क्षेत्र में मनाया जाता है। इसके पीछे धार्मिक कथा प्रचलित रही है कि प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवताओं की हार हुई थी, तब देवमाता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब छठी मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र प्राप्त होने का वरदान दिया था। जिसके बाद अदिति के त्रिदेव रूप आदित्य भगवान पुत्र हुए। जिन्होंने असुरों पर देवताओं की विजय दिलाई। कहा जाता है कि उसी समय से देवसेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ पर्व का चलन शुरू हुआ।

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