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पटना : बिहार एनडीए में सीएम फेस नीतीश, पर सीट शेयरिंग में भारी पेंच

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

बिहार में आगामी चुनाव को लेकर बीजेपी के बिहार चुनाव प्रभारी मनोहर लाल खट्टर के इस घोषणा के बाद कि बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लडेगी और नीतीश के ही अगुआई में सरकार बनेगी से एनडीए में सीएम फेस की गुत्थी सुलझ गई है, पर नये पार्टनर लोजपा (रा) और आरएलएम को सीटों में जगह देने के साथ साथ सीट शेयरिंग आसानी से हो जायेगा, ये कह पाना थोड़ी जल्दबाजी होगी। एनडीए में शामिल सभी पार्टियां अंदरखाने अपनी – अपनी सूची बना रही है और अंतिम स्वरूप चुनाव के पहले ही सामने आ पायेंगे।

अक्टूबर – नवंबर में होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में सीएम फेस को लेकर छायी धुंध बीजेपी चुनाव प्रभारी मनोहर लाल खट्टर के घोषणा के बाद भले ही छंट गयी हो। हालांकि एनडीए में सीएम फेस को लेकर कोई घमासान तो नहीं मचा था, पर नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात तो बीजेपी कर रही थी। लेकिन नितीश कुमार ही नये सरकार की अगुआई करेंगे, ये खुलकर बोलने से बीजेपी भी बचती नजर आ रही थी। इससे एक ओर जहां विपक्षी पार्टियां हमलावर थी, वहीं जदयू में भी इसे लेकर सवाल उठने शुरू हो गये थे। खुद सीएम नीतीश कुमार के पुत्र निशांत भी मुख्यमंत्री फेस के लिए नितीश कुमार की नाम की सार्वजनिक घोषणा की मांग कर चुके थे।

बीजेपी ने डाक्टर दिलीप जायसवाल के प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के साथ ही बिहार बीजेपी चुनाव प्रभारी मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की कि बिहार में एनडीए ना सिर्फ नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लडेगी, बल्कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार के अगुआई में ही सरकार बनायेगी। इस घोषणा के साथ ही एक ओर विपक्षी पार्टियों को इसे लेकर सवाल उठाने का अवसर खत्म हो गया, वहीं एनडीए में भी इसे लेकर एकमत होने का संदेश गया। दरअसल, पीएम मोदी ने बिहार के भागलपुर में एक विशाल जनसभा में नितीश कुमार को लाडले मुख्यमंत्री बोलकर भले ही कुछ ऐसा ही संदेश दे दिया था, पर राजनीतिक चर्चाओं में एकनाथ शिंदे की तरह कहीं नीतीश कुमार का हाल ना हो पर भी बहस होती रही है।

दरअसल, नीतीश कुमार का साथ होना बीजेपी के लिए जितनी जरूरी है, उतनी ही नीतीश कुमार को बीजेपी की जरूरत है। कुछ समय को अगर छोड़ दें तो नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ बीस बर्ष से ज्यादा का तालमेल रहा है। बीच में कुछ समय के लिए नितीश कुमार ने राजद के साथ मिलकर सरकार चलायी है। हालांकि, अब नीतीश कुमार लगभग हर सार्वजनिक समारोह में बोलते नजर आ रहें हैं कि अब वो इधर उधर नहीं जाने वाले। केंद्र में भी जदयू बीजेपी के साथ सरकार में है, और अच्छी निभ भी रही है।

सीएम फेस तो एनडीए ने तय कर ही लिया, जो स्वाभाविक ही है। पर बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग इतना आसानी से हो पायेगा, यह कह पाना थोड़ी मुश्किल है। सीट शेयरिंग को लेकर कुछ फार्मूले पर एनडीए काम कर रही है। इससे पहले एनडीए के घटक दलों की बात कर लें तो समझ पाना आसान होगा। बिहार एनडीए में अभी बीजेपी, जदयू, एलजेपी (आर), हम और आरएलएम पांच पार्टियां हैं‌। इसमें से चिराग पासवान की एलजेपी (आर) और उपेंद्र कुशवाहा के आरएलएम नये सहयोगी है और इनके विधानसभा में वर्तमान में कोई भी विधायक नहीं है। वर्तमान में बीजेपी के 80 विधायक, जदयू के 45 विधायक और हम के 04 विधायक हैं। और अगर सांसद की बात करें तो बीजेपी के 12, जदयू के 12, लोजपा (आर) के पांच और हम के एक सांसद के साथ एनडीए यहां 40 संसद सीटों में से 30 पर जीत हासिल की है।

अगर, विधानसभा चुनाव 2020 की बात करें तो एनडीए में तब चार ही दल बीजेपी, जदयू, हम और भीआईपी थें। जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा तो भाजपा ने अपने 110 उम्मीदवार उतारे थे। सीटों के बंटवारे में तब एनडीए के साथ रही विकासशील इंसान पार्टी (भीआईपी) को 11 सीटें मिली थीं, इस बार भीआईपी एनडीए से पाला बदलकर महागठबंधन के साथ है। हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के हिस्से में 7 सीटें गई थीं‌। नये साथी चिराग पासवान की लोजपा (आर) तब एनडीए से अलग चुनाव लडकर कहा जाता है कि जदयू का खेल बिगाड़ा था। इस तरह, आगामी चुनाव के लिए एनडीए के दो सहयोगी साथी लोजपा (आर) और आरएलएम नये हैं और इन्हें सीट शेयरिंग में जगह देना है। इसमें लोजपा (आर) 40 सीटों पर दावा कर रही है, जबकि हम 20 सीटों पर अपना दावा ठोंक रहे हैं।

बीजेपी और जदयू अबतक अपने पत्ते नही खोलें हैं। पर बीजेपी बडे़ भाई के भुमिका में इसबार ज्यादा सीटों पर चुनाव लडना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक सीट ज्यादा पर चुनाव लडकर ऐसा संदेश दे चुकी है। इधर जदयू 2020 के विधानसभा चुनाव के रिजल्ट पर सीट शेयरिंग नहीं चाहती। बताया जा रहा है कि जदयू 120 सीटों की लिस्ट बनाकर समझौता के लिए रख घूम रही है। इसमें कम से कम 20 सीट ऐसी बतायी जा रही है, जिसपर बीजेपी या तो जीत दर्ज की हुई है या फिर दूसरे नंबर पर रही है। इसलिए ये बीजेपी को कतई मंजूर नही होगा।

एनडीए में सीट बंटवारे के कई तरह के फार्मूलों की तैयारी की चर्चा है। पहला फार्मूला यह है कि 243 सीटों में भाजपा 122 तो जेडीयू 121 सीटें बांट लें, और फिर दोनों अपने-अपने हिस्से से सहयोगियों को मनाते हुए सीटें दें। दूसरा फार्मूला यह कि भाजपा-जेडीयू 100-100 सीटों पर लड़ें और बची हुई 43 सीटों में सहयोगी साथी दलों को मनाकर सीटों का बंटवारा करे। वैसे बिहार में सांसदों की संख्या के आधार पर भी सीट शेयरिंग का प्रचलन रहा है। सामान्यतः सहयोगी पार्टियों को एक सांसद – पांच विधानसभा सीट पर मनायी जाती रही है। इस आधार पर लोजपा (आर) को पांच सांसद सीट के आधार पर 30 विधानसभा सीट, हम को एक लोकसभा सीट के आधार पर पांच विधानसभा सीट या फिर पिछले चुनाव की तरह 6-7 सीट देकर मनायी जा सकती है। उपेंद्र कुशवाहा के आरएलएम को 4-5 सीट देकर बाकी सीटों पर आधे आधे पर बीजेपी और जदयू चुनाव लड़ सकती है।

बीजेपी खेमे में पिछली बार के चुनाव में जीती गयी सीटों के आधार पर सीटों के बंटवारे को लेकर भी खूब चर्चा है। पर जदयू इसपर कभी तैयार नहीं होगी। क्योंकि, इससे जदयू के बीजेपी के लगभग आधे ही सीट हाथ आयेगी। क्योंकि, बीजेपी के पास अभी जहां 80 विधायक हैं, वहीं जदयू के पास सिर्फ 45 विधायक हैं। जदयू को चिराग पासवान के कारण ही कम सीटें आयी थी। क्योंकि, जहां-जहां जदयू के उम्मीदवार थे, वहां-वहां चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार खड़े कर दिये थे। इसलिए, इस आधार पर सीटों का बंटवारा जदयू को कभी स्वीकार्य नहीं होगी। वैसे भी केंद्र में समर्थन की कीमत भी जदयू वसूल करेगी ही। बहुत ही कम सीटों के ही अंतर पर ही सही बडे़ भाई की भूमिका बीजेपी को मिलती है या फिर जदयू को, यह भी देखना दिलचस्प होगा।

फिलहाल तो एनडीए, नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने और फिर नीतीश कुमार के अगुआई में ही सरकार बनाने को लेकर सहमत दिख रही है। नीतीश सरकार फिलहाल अपने किये वादों को पुरा करने में लगी हुई है। सीएम नीतीश कुमार अपने प्रगति यात्रा के दौरान किये हर वादों को चुनाव के पहले पुरा करना चाह रहे हैं। पर अंदरखाने सभी एनडीए घटक दल अपनी अपनी लिस्ट तैयारी करने में भी जुटी है। सबों के महत्वाकांक्षा को पुरा करने की जब बारी आयेगी तो सीट शेयरिंग इतना आसान भी नहीं होगा। वैसे एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर ज्यादा घमासान खासकर मिडिया के सुर्खियों में नहीं बनता। अब देखना होगा कि कितने आसानी से इस पेचिदगी को सुलझाने में एनडीए नेतृत्व सक्षम हो पाता है।

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