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वर्ष 2020 के लिए पद्मश्री सम्मान से राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किए गए छऊ गुरु शशधर आचार्य…

सरायकेला। सोमवार को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों सरायकेला के छऊ गुरु शशधर आचार्य को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

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उन्हें यह सम्मान वर्ष 2020 में पद्मश्री के लिए चयनित होने पर मिला। बताते चलें कि कोरोना काल होने के कारण बीते वर्ष इसे लेकर सम्मान समारोह नहीं आयोजित हो पाया था। छऊ गुरु शशधर आचार्य को पद्मश्री सम्मान प्राप्त होने के साथ ही प्रदेश और जिला दोनों ही गौरवान्वित हो उठे।

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होने के पश्चात गुरु शशधर आचार्य ने इस सम्मान को छऊ कला को समर्पित करते हुए कहा है कि इसके उत्थान और विकास के लिए उनका पूरा जीवन सदैव समर्पित रहेगा। इस अवसर पर उनके साथ रहे आचार्या छऊ नृत्य बिचित्रा के उपनिदेशक रंजीत आचार्य ने इस संबंध में विशेष जानकारी दी है।

गुरु शशधर आचार्य के कला जीवन का पद्मश्री सम्मान तक का सफर

गुरु शशधर आचार्य का जन्म 5 मई 1960 को परंपरागत सरायकेला छऊ डांस के विकास में योगदान दे रहे कलाकार परिवार में पांचवी पीढ़ी के रूप में हुआ था। जिन्होंने छऊ नृत्य की अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता गुरु लिंगराज आचार्य से प्राप्त की थी। जिसके बाद पद्मश्री एसएन सिंहदेव, पद्मश्री केदारनाथ साहू, विक्रम कुंभकार एवं नटशेखर वन बिहारी पटनायक से छऊ नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया। और छऊ कला के एक्स्पोनेंट एवं प्रशिक्षक बनकर उभरे। टीचिंग मेथाडोलॉजी इन सरायकेला छऊ, रिदमिक स्ट्रक्चर एंड मेलोडीज इन सरायकेला छऊ, अखाड़ा सिस्टम इन सरायकेला छऊ, द इवैल्यूएशन एंड यूसेज ऑफ मास्कस इन सरायकेला छऊ पर गहरा रिसर्च प्रस्तुत किया।

छऊ नृत्य कला प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण को लेकर इन्होंने 1988 में यूएसएसआर में फेस्टिवल ऑफ इंडिया, 1990 में फेस्टिवल ऑफ सिंगापुर थिएटर बॉक्स, 1992 में फेस्टिवल ऑफ जर्मनी, 2005 में जापान में फेस्टिवल ऑफ इंडिया और 2007 में जापान डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर में प्रदर्शन किया। 1997 में जापान में 50 इयर्स इंडियन इंडिपेंडेंस कार्यक्रम में, 1996 में यूनेस्को थिएटर इंस्टिट्यूट द्वारा आयोजित वर्कशॉप परफॉर्मेंस के तहत इटली के मिलानो एवं रोमानिया में प्रदर्शन किया। इसी प्रकार 1997 में कनाडा में डांस फेस्टिवल एंड वर्कशॉप, 1998 में इंटरनेशनल डांस फेस्टिवल इन कोरिया, नेपाल में जर्मनी के फ्लाइंग फिश फीड कंपनी के लिए परफॉर्मेंस एंड वर्कशॉप, 2007 में नाट्य कला मंदिर वियतनाम के वियना सहित 2009 में जापान, चाइना, व्लाडीवोस्टक, 2009 में ही स्वीटजरलैंड, 2010 में बहरीन, 2011 में साउथ अफ्रीका, 2012 में ताइवान, 2012 में साउथ कोरिया सियोल, 2013 में इंडिया फेस्टिवल जापान, 2014 में सिंगापुर, 2015 में इंडोनेशिया एवं देश भर में विभिन्न स्थानों पर लगातार छऊ नृत्य कला का प्रदर्शन एवं वर्कशॉप करते रहे हैं।

इन्होंने डॉ सोनल मानसिंह के साथ भी प्रदर्शन किया है। और देश के विभिन्न कला संस्थानों में छऊ नृत्य कला का प्रशिक्षण दे रहे हैं। वर्तमान में त्रिवेणी कला संगम नई दिल्ली में छात्रों को नृत्य के साथ साथ पिछले 15 वर्षों से थिएटर का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। सरायकेला स्थित अपने आचार्य छऊ नृत्य बिचित्रा में इन्होंने पहला म्यूजियम और लाइब्रेरी की स्थापना की है। इसके अलावा सरायकेला छऊ पर कई डॉक्युमेंट्रीज और फिल्मों में भी काम कर चुके हैं।

इन्हें 2004 में राष्ट्रपति से संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड, 2005 में मुख्यमंत्री से झारखंड राजकीय सम्मान, 2013 में उड़ीसा सरकार से गुरुदेव प्रसाद सम्मान, 2015 में झारखंड सरकार से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2016 में उड़ीसा में श्रीहरि सम्मान, 2016 में ही ओडिशा में नाट्य ग्राम सम्मान, 2016 में उड़ीसा में देवधारा सम्मान, 2017 में मुख्यमंत्री से झारखंड स्टेट सम्मान, 2018 में फिक्की लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2018 में गणेश नाट्यालय न्यू दिल्ली द्वारा नटराज अवार्ड एवं 2019 में उत्सव कल्चर सोसायटी न्यू दिल्ली द्वारा उत्सव सम्मान से नवाजा जा चुका है।
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