पुरे भारत देश को मजबूत बनाने के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आंतरिक मोर्चे पर सामाजिक-आर्थिक मजबूती की कोशिश में लगे हुए थे। पड़ोसी पाकिस्तान देश से संबंधों में तो शुरुआत से ही खटास थी। लेकिन चीन से रिश्ते मधुर थे।
हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के बीच भ्रम के दोस्ताना, 20 अक्तुबर1962 को चीन ने किया था भारत पर हमला…
रामगढ़ ब्यूरो : इन्द्रजीत कुमार
सन 20 अक्टूबर 1962 ईस्वी को चीन के 80,000 सैनिकों लगभग ने तिब्बत के पास बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों पर भारी मशीन गणों और अत्याधुनिक हथियारों से हमला कर दिया गया था। सैकड़ो सालों की अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए। भारत देश को महज 15 साल बीते थे। भारी गरीबी औंर अशिक्षा से जूझ रहे। पुरे भारत देश को मजबूत बनाने के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आंतरिक मोर्चे पर सामाजिक-आर्थिक मजबूती की कोशिश में लगे हुए थे। पड़ोसी पाकिस्तान देश से संबंधों में तो शुरुआत से ही खटास थी। लेकिन चीन से रिश्ते मधुर थे।
हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगाने वाले जवाहरलाल नेहरू को सन् 1962 ईस्वी की एक सुबह तब तगड़ा झटका लगा। जब उन्हें भारत से सटी चीन की सीमा पर मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों पर चीनी फौज के सुनियोजित हमले की खबर मिली। चीन ने पूरे लाव-लश्कर के साथ लद्दाख औंर मैकमोहन रेखा को पार कर मुट्ठी भर भारतीय सैनिक टुकड़ी पर तब के अत्याधुनिक मशीन गनों और अन्य भारी हथियारों से हमले शुरू कर दिए गए थे। जब भारतीय सेना के पास चीनी सेना के मुकाबले बहुत कम क्षमता वाली बंदूकें औंर गोले बारूद थे।
चीन ने किया था सुनियोजित हमला :
दुर्गम औंर बर्फ से ढकी पहाड़ियों का क्षेत्र होने के कारण बहुत कम सैनिक ही तैनात किए गए थे। जिन पर सुनियोजित तरीके से चीनी सैनिकों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई। हिंदी-चीनी भाई-भाई के भ्रम के बीच दोस्ताना रिश्ते में विश्वासघात करने की चीन की इस चाल से भारत को जो जख्म मिला। उसकी तारीख साल 1962 की 20 अक्टूबर ही थी। युद्ध के लिहाज से भारतीय सेना के लिए एक टीस बनकर रहने वाली यह तारीख भले ही संबंधों को तार-तार करने वाली कुटिल चाल से जुड़ी हैं। आज के मजबूत भारत के लिए एक सीख बनकर आई थी। इसकी बदौलत आज भारतीय सेना ने चीन से सटी सीमा पर कदम-कदम पर चीनी सैनिकों की घेराबंदी की गई। उसके बाद किसी भी मोर्चे पर चीनी सेना के सामने कमजोर हुई। हमारे सैनिक भारी पड़ रहे हैं। आज 20 अक्टूबर की उसी तारीख पर चीन के हमले से जुड़े इतिहास की जानकारी हम आपको देते हैं।
भारत ने चीन के लिए सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता :
भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। महज 2 सालों के भीतर 1949 में चीन भी रिपब्लिक बन चुका था। शुरुआत में दोनों देशों के रिश्ते दोस्ताना रहे। कहा जाता हैं कि भारत ने चीन की खातिर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता अस्वीकृत दी गई थी। हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा देकर जवाहरलाल नेहरू ने पड़ोसी से अच्छे संबंध की शानदार मिसाल पेश की गई। लेकिन दोनों देशों में तनाव 1959 में बढ़ने शुरू हो गए। यह तब का वक्त था जब चीन की मौजूदा कम्युनिस्ट सरकार ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया गया। तब तिब्बती विद्रोह के बाद भारत ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को शरण दी गई। इसे लेकर ही चीन ने भारत के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया गया। इसी की परिणीति सन 20 अक्टूबर 1962 ईस्वी की लड़ाई थी।
चीन के 80 हजार सैनिकों ने किया था हमला :
उस समय भारत को आजाद हुए महज डेढ़ दशक बीते थे।आंतरिक मजबूती के लिए ही देश संघर्ष कर रहा था। तब लद्दाख औंर मैकमोहन रेखा को पार कर चीन के 80 हजार सैनिक भारत में घुस आए। यहां पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात 10 से 20 हजार सैनिकों पर हमले कर दिए गए। दोस्ती में दगा देने वाले चीन के इस हमले के बाद 1 महीने तक लड़ाई चली थी। सन 21 नवंबर 1962 ईस्वी को सीजफायर घोषित हुई। इस जंग में भारत की शिकस्त हुई थी।
चीन से हार के बाद बुरी तरह टूट गए थे पुर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल :
कहते हैं कि इस जंग की हार ने जवाहरलाल नेहरू को इस कदर तोड़ दिया था कि आखिरकार महज 2 सालों बाद ही 27 मई 1964 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया गया। 20 अक्टूबर को जिस दिन चीन ने भारत पर हमला किया था। उसी दिन पुर्व प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने देशवासियों को संबोधित किया था। उसके बाद एक महीने तक वह भारत वासियों से संवाद नहीं कर सके। हालांकि दोबारा 20 नवंबर 1962 को जब वह देशवासियों से रूबरू हुए। उन्होंने स्वीकार की कि चीन ने दोहरी चाल चली हैं। एक तरफ चीन के नेता शांति की बात करते हैं। दूसरी ओर लगातार हमले हो रहे हैं।
अपने ही देश की कम्युनिस्ट पार्टी पर नियंत्रण के लिए चीन ने किया था हमला :
वैसे भारत चीन के इस युद्ध के लिए हमेशा से चीन की दोहरी नीति की आलोचना होती रही है। 2012 में चीन के एक टॉप रणनीतिकार वांग जीसी ने दावा किया था कि उस समय चीन के बड़े नेता माओत्से तुंग ने ग्रेट लीप फॉरवार्ड आंदोलन की असफलता के बाद सत्ता में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी पर नियंत्रण कायम करने के लिए रणनीति बनाई थी। भारत पर सुनियोजित हमले किए गए थे। चीन की तरफ से ही युद्ध छेड़ा गया था। जिसकी पूरी दुनिया में आलोचना हुई थी।
महज 5 वर्षों में भारत ने ले लिया था बदला, चीन को चटाई थी धूल :
हालांकि 1962 की जंग से बौखलाई भारतीय सेना ने महज 5 वर्षों के भीतर चीन से इसका बदला ले लिया गया था। सन 1962 ईस्वी की जंग के बाद चीन ने 1967 में फिर वैसी ही हिमाकत करने की कोशिश की गई। भारतीय सेना ने चीन को धूल चटा दी गई थी। सन 11 सितंबर 1967 ईस्वी को चीन की पीएलए के सैनिकों ने नाथू ला में भारतीय सेना की चौकियों पर हमला कर दिया गया था। इंडियन आर्मी ने इसका करारा जवाब दिया गया। तोप से हमले हुए। तिब्बत के करीब 400 चीनी सैनिकों की लाशों का अंबार लग गया था। भारतीय सेना ने चीन को 20 किलोमीटर पीछे धकेल दिया गया था।
महज 65 जवानों की शहादत हुई थी। भारत ने नाथू ला बॉर्डर को हासिल करने में सफलता हासिल की गई। उस समय इंडियन आर्मी के जांबाज जनरल सगत सिंह राठौर ने भारत सरकार के उस आदेश को मानने से ही इनकार कर दिया गया था। जिसमें कहा गया था कि नाथुला बॉर्डर हैं। जनरल का कहना था कि नाथुला भारत का हिस्सा रहा हैं। बॉर्डर उससे काफी आगे चीन के अंदर हैं।