Spread the love

चांडिल : वट वृक्ष में रक्षासूत्र बांधकर महिलाओं ने मांगी पति की लंबी आयु व सुखद दांपत्य…

वट सावित्री पूजा के मौके पर ईचागढ़ में महिलाओं ने अपने पति की लंबी आयु की कामना की. इस मौके पर बरगद के पेड़ के नीचे सुहागिन महिलाओं का हुजूम रहा. आज का दिन सुहागिन महिलाओं के लिए काफी खास है.

गुरुवार को सुहागिनों ने अपने पति के दीर्घायु व अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ वट सावित्री का त्योहार मनाया। पारंपरिक श्रृंगार के साथ सुहागिन महिलाएं बांस की डलिया में पूजन सामग्री लेकर विधि-विधान के साथ वट सावित्री की पूजा की..

डेस्क (सुदेश कुमार) चांडिल अनुमण्डल के चारो प्रखंडों में चांडिल,नीमडीह,ईचागढ़, कुकडू सहित विभिन्न गांवों में स्थित वटवृक्ष के नीचे महिलाएं पूजा अर्चना कीं। सुहागिन महिलाएं विशेष शृंगार के साथ वटवृक्ष के पास पहुंची और वट पेड़ में कच्चा सूता का रक्षासूत्र बांधने के बाद परिक्रमा किया। मौके पर महिलाओं ने सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनी। मान्यता है कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन वट वृक्ष की पूजा का बड़ा महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थाई धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ है और इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की।

चांडिल प्रखंडो में महिलाओं ने वट सावित्री का व्रत का विधिवत् पूजा अर्जना किया

चांडिल के हाईस्कुल निकट 100 वर्ष से अधिक पुराना वट वृक्ष में महिलाओं ने वट सावित्री का व्रत का विधिवत् पूजा अर्जना किया और बरगद के पेड़ की प्रदक्षिणा करते हुए पति की दीर्घायु होने की कामना की। चांडिल अनुमण्डल के चारो प्रखंडों में चांडिल,नीमडीह,ईचागढ़, कुकडू सहित विभिन्न गांवों पर स्थित बरगद के पेड़ की महिलाओं ने समूह में पूजा-अर्चना की और प्रदक्षिणा कर पेड़ से पीला धागा लपेटा। चांडिल अनुमण्डल के चारो प्रखंडों में चांडिल,नीमडीह,ईचागढ़, कुकडू सहित विभिन्न गांवों में वट वृक्ष पर पूजा करने वाली महिलाओं की भीड़ नजर आई। यह व्रत विशेषतौर पर विवाहित महिलाएं ही करतीं हैं। पुराणों के अनुसार सावित्री ने अपने पतिव्रत के बल पर यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस मांग लिया था और पति को नया जीवन मिलने साथ ही उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वरदान मिला था। चांडिल हाईस्कुल के समीप स्थित सौ वर्ष पुराने बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना की गई।

लोक मान्यता है कि शाखाओं और शिराओं से की थी सत्यवान की रक्षा

कहा जाता है कि वट पूजन के दिन सुनी जाने वाली सावित्री -सत्यवान कथा के अनुसार वट वृक्ष ने सत्यवान को अपनी शाखाओं और शिराओं से घेरकर रखा था और जंगली पशुओं से उनकी रक्षा की थी। इसी दिन से ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन वट की पूजा का किए जाने का प्रचलन शुरू हुआ और इस तिथि को वट सावित्री कहा जाने लगा।

हिंदू धर्म के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा सुहागिन स्त्रियों के लिए बेहद पवित्र और फलदायी माना गया है। वट सावित्री पूजा के दिन बट वृक्ष के जड़ मे  ब्रम्हा, तने मे भगवान विष्णु और पत्तों में भगवान भोले नाथ का बास होता है। आज महिलाओं ने बरगद के पेड़ की पूजा अर्चना किया। इस दौरान तार का पंखा ,चना का अकुरी, बतासा, कुमकुम तथा पांच प्रकार के फल के साध अराधना की गई।

वट सावित्री के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अलावा सावित्री और यमराज का वास होता है। इस दिन वट की पूजा करने से जीवन में आने वाले संकट दूर होते हैं।

विधि-विधान से की पति की लंबी आयु के लिए पूजा

कहा जाता है कि सौभाग्यवती महिलाएं ने अपने पति की दीर्घायु के लिए वटवृक्ष की पूजा की। वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा बीच में शिव भगवान स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में विराजमान रहती हैं। सुबह से ही सौभाग्यवती महिलाएं स्नान-ध्यान कर गांव में लगे वटवृक्ष के समीप आकर पति की लंबी आयु के लिए वट बृक्ष की पूजा शुरू कर दी।

Advertisements

You missed