दिल्ली तो बस एक झांकी है, बिहार तो अभी बाकी है
✍️ संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
राजधानी में बीजेपी की जीत से हम सुप्रिमो पुर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी इतने गदगद हो गये कि यहाँ तक कह दिया कि दिल्ली तो झांकी है, बिहार बाकी है “। हम सुप्रिमो के इस वयान के बाद दिल्ली के चुनावी नतीजों का बिहार विधानसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा, इस पर चर्चा प्रारंभ हो गयी है। इसी साल अक्टूबर- नवंबर राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है और पक्ष और विपक्षी पार्टियां इसे लेकर उत्साहित दिख रहे हैं।
एनडीए के नेता दावा कर रहे हैं कि दिल्ली के नतीजे बिहार के चुनावी भविष्य के संकेत दे रहे हैं। इस बीच केंद्रीय मंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के सुप्रीमो जीतनराम मांझी की अहम प्रतिक्रिया सामने आई है। दिल्ली में एनडीए की सरकार पर खुशी जताते हुए कहा है कि बिहार में भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनेगी। दिल्ली चुनाव परिणाम से उत्साहित एनडीए नेताओं ने तो अपना लक्ष्य 200 पार का बना लिया है और इसे लेकर 225 विधानसभा सीटों पर महीनों पहले तैयारी शुरू भी कर दिया गया है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत पर वहीं आरजेडी की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि बिहार का चुनाव पर दिल्ली चुनाव परिणाम का कोई असर नहीं पडने वाला, बल्कि यहाँ झारखंड चुनाव परिणाम का असर पडेगा। आरजेडी प्रवक्ता
मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में इस बार लोग बदलाव के लिए वोट करेंगे और जिस तरीके के परिणाम झारखंड में आए थे उसका असर बिहार में देखने को मिलेगा। दिल्ली चुनाव परिणाम का बिहार पर कोई असर नहीं होगा।
इधर, अगर दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम पर गौर करें तो 35 पूर्वांचली बहुल सीटों में से 25 सीटों पर भाजपा की जीत यह दर्शाती है कि पुर्वांचलियों का झुकाव भाजपा (एनडीए) की ओर बढा है। तीन दर्जन से अधिक बिहार के एनडीए नेताओं को इस जीत हासिल करने के लिए दिल्ली चुनाव में लगाया गया था। हरियाणा और उत्तर प्रदेश से लगे 22 विधानसभा सीटों में से 15 सीटों पर विजय हासिल करने के लिए भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। दिल्ली चुनाव में एनडीए जहाँ एकजुट दिखी, वहीं आप को इंडी गठबंधन से अलग अकेले चुनाव लड़ने पर काग्रेस के कारण कम से कम 15 सीटों पर नुकसान की बात सामने आ रही है।
बिहार में जहाँ नेतृत्व को लेकर एनडीए में कोई समस्या नहीं दिख रही, वहीं इंडी गठबंधन दलों में इसे लेकर कोई सहमति नहीं दिख रही है। कांग्रेस अपने वोटबैंक को बचाने के लिए दिल्ली के तर्ज पर अगर एकला चोलो रे का नारा बुलंद कर चुनाव लडे तो कोई हैरानी नहीं होगी। राहुल गाँधी लगातार दो बार मात्र 20 दिनों में बिहार दौरा कर काग्रेंस के कार्यक्रम में शामिल होकर पार्टी को मजबूत बनाने में लग चुके हैं। इंडी गठबंधन में राहुल के नेतृत्व को लेकर सपा, तृणमूल और राजद का विरोध जगजाहिर हो ही चुका है। दिल्ली चुनाव में लडकर इंडी गठबंधन के ही आप पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए भी काग्रेस से इन दलों की नराजगी है, क्योंकि ये पार्टियां दिल्ली चुनाव में आप पार्टी के साथ खडी थी।
हाल ही में नीतीश के गढ़ नालंदा में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने लोगों से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को सीएम बनाने की अपील की है। लालू यादव ने कहा है, ‘न कहीं किसी के सामने सिर नहीं झुकाना है। न मैंने किसी के सामने सिर झुकाया है। हम सभी को मिलकर काम करना है, और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना है और सरकार बनी तो फ्री बिजली देने का वादा भी किया है। राजद सुप्रिमो के इस वयान से भी स्पष्ट है कि सीट शेयरिंग का मामला इतनी आसानी से सुलझने वाला नहीं है। सीट शेयरिंग के पहले सभी दल अपनी शक्ति प्रर्दशन करती रही है। इसी कड़ी में पटना का गांधी मैदान इस शक्ति प्रर्दशन का गवाह बनने की शुरुआत जल्द करने जा रहा है। इंडी गठबंधन के भाकपा माले की ही नहीं एनडीए के चिराग
पासवान की लोजपा और जीतनराम मांझी की हम भी जल्द शक्ति प्रर्दशन की तैयारी में जुटी हुई है।
अभी चुनाव में सात- आठ महीने की समय है। सभी पार्टियों ने इसे लेकर तैयारियां शुरू कर दी है। राजनीति गलियारों में दिल्ली चुनाव परिणाम को लेकर जोर शोर से चर्चा चल रही है। पर हरियाणा से शुरू होकर, महाराष्ट्र और फिर दिल्ली तक भाजपा का अश्वमेध घोड़ा बिहार में आकर थमेगा या फिर आगे बढेगा, इतना पहले इसका अनुमान लगाया जाना सही नहीं होगा। पर, दिल्ली चुनाव परिणाम का बिहार में असर होना तय माना जा रहा है।