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Mahalaya (Durga Puja) History and Significance |

कहते है कि महालया के दिन मां पार्वती सपरिवार पृथ्वी पर आती हॅै । इसी दिन मां दुर्गा के प्रतिमा का निराकार रूप दिया जाता है ।

 

महालया के दिन ही पितरों को विदाई और माता का धरती पर स्वागत किया जाता है…

रांची डेस्क (सुदेश कुमार)

महालया हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक शुभ दिन है. जो यह पितृ पक्ष के अंतिम दिन पड़ता है. पितृ पक्ष 16 दिनों की चंद्र अवधि होती है, जिसमें हिंदू अपने पूर्वजों को सम्मान देते हैं. महालया देवी दुर्गा के आगमन का प्रतीक माना जाता है लोक धरना है कि इस दिन, देवी दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर अपने मायके तक की अपनी यात्रा शुरू करती हैं – जहां वह अपने पति भगवान शिव के साथ रहती हैं.. यह दुर्गा पूजा त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है.

कहा जाता है कि देवी महात्म्य (देवी की महिमा) की एक किंवदंती पर आधारित है, जो एक प्राचीन संस्कृत पाठ है जो मार्कंडेय पुराण का एक हिस्सा है। यह पाठ देवी दुर्गा की कहानी और राक्षस महिषासुर के खिलाफ उनकी लड़ाई का वर्णन किया गया है जो एक भैंसा राक्षस था जिसने स्वर्ग और पृथ्वी को आतंकित किया था।

महिषासुर, जिसने भगवान ब्रह्मा से अजेयता का वरदान प्राप्त किया था, उत्पात मचा रहा था और देवताओं को अपने अधीन कर रहा था। उसे हराने में असमर्थ देवताओं ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा का निर्माण किया, जो असाधारण शक्ति और हथियारों से संपन्न थी। महिषासुर और दुर्गा के बीच नौ दिनों और रातों तक युद्ध चला, अंततः दसवें दिन राक्षस की हार हुई, जिसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।

                                                       महालया का महत्व

यह देवी पक्ष या देवी के युग की शुरुआत का प्रतीक है., यह पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है.
यह सत्य और साहस की शक्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत को उजागर करने के लिए मनाया जाता है.इस दिन दुर्गा मां के आगमन से पहले उनकी मूर्ति को अंतिम और निर्णायक रूप देने के लिए भी मनाया जाता है. आमतौर पर भाद्र माह के अंधेरे पखवाड़े के आखिरी दिन यानी आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है. इस साल यह 14 अक्टूबर से प्रारंभ होगी । महालया को भारतीय उपमहाद्वीप, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, भारत और बांग्लादेश में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है.

                                                   

                                                           पृथ्वी पर आती हैं माता पार्वती :

मान्यता है कि नवरात्र में देवी पार्वती अपनी शक्तियों और 9 रूपों में साक्षात धरती पर आती हैं. इनके साथ इनकी सहचर योगनियां और पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय भी पृथ्वी पर पधारते हैं. पृथ्वी को देवी पार्वती का माइका कहा जाता है. माता अपने माइके में आती हैं और नवरात्र के 9 दिनों में पृथ्वी पर वास करते हुए आसुरी शक्तियों का भी नाश करती हैं.

 

मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार:

हिंदू शास्त्रों के अनुसार महालया और पितृ पक्ष अमावस्या एक ही दिन मनाई जाती है. कि महालया के दिन ही हर मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करता है. इसके बाद से मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है. दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की प्रतिमा का विशेष महत्व है और यही प्रतिमाएं पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.

                                                            बंगालियों में है खास महत्व:

महालया का महत्व बंगाली समुदायों में कुछ खास ही है. वहां इसे धूमधाम से मनाया जाता है. मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग इस दिन का लगातार इंतजार करते हैं और महालय के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत करते हैं. महालया नवरात्रि और दुर्गा पूजा के शुरुआत का दिन है. कहा जाता है कि महालया के दिन ही पितरों को विदाई दी जाती है और माता का धरती पर स्वागत किया जाता है.

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