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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे,तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे 

दर्द में हंसना सिखा रहें हैं प्रीतम भाटिया…

(अभिजीत सेन, सोशल मीडिया प्रभारी,झारखंड  AISMJWA)

झारखंड ऑब्जर्वर के स्वामी व संपादक,पत्रकार साथियों के आंदोलनरत AISMJWA के प्रदेश प्रभारी,समाजसेवी पत्रकार और साईभक्त प्रीतम सिंह भाटिया की हालत फिर से बिगड़ रही है.अब उन्हें चिकित्सकों ने किडनी में भी इंफेक्शन की हो जाने की आशंका जतायी है.शायद दूसरे ही राज्य में जाकर उनका बेहतर ईलाज संभव हो और अगले सप्ताह उनके हैदराबाद जाने की चर्चा भी है.इतना बीमार होने के बावजूद वे रोजाना घर पर लोगों से मिलते-जुलते हैं और खुद बीमार होते हुए भी जरूरतमंद लोगों को ईलाज,अन्याय,अत्याचार,कानूनी मामलों और अन्य आवश्यक सेवाओं में मदद करने में लगे रहते हैं.

झारखंड ही नहीं दूसरे राज्यों में भी विभिन्न मंदिर,मजार,चर्च और गुरूद्वारे में उनके दोस्त,रिशकतेदार और चाहने वालों ने प्रार्थनाएं करनी शुरू कर दी है.इतना होने के बावजूद उन्होने अब तक राज्य सरकार की बीमा योजना का लाभ लेने का निर्णय सिर्फ इसलिए नहीं लिया कि वे सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग पर अडे़ हुए हैं.पिछले डेढ़ सालों से सोरियासिस,प्रोस्टेंट,किडनी स्टोन,हाईड्रोसिल,यूरिन और ब्लड इंफेक्शन जैसी गंभीर बिमारियों से लड़ते हुए भी मानवसेवा के कार्यों के साथ ही पत्रकार साथियों की स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए लगातार आंदोलन,चिंतन और मंथन करते नजर आ रहें हैं

श्री भाटिया.वे अपनी बीमारी के कारण अक्सर दिल्ली,मुंबई,कोलकाता,हिमाचल प्रदेश और पंजाब का चक्कर काट चुके हैं.गाँव की कहावत है घर का मुखिया अगर बिस्तर पकड़ ले तो खजाना भी खाली हो जाता है बस इस दौरान उन्हें आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा है फिर भी वे पत्रकार साथियों की लड़ाई में विभिन्न जिलों का दौरा करते नजर आ रहे हैं.इसी बीच ऐसोसिएशन के प्रदेश सह सचिव शंकर गुप्ता ने उन्हें ऐसोसिएशन के इमरजेंसी फंड से 1 लाख उधार देने की भी पेशकश की थी जिसे उन्होने यह कहते हुए मना कर दिया कि इन पैसों को इससे भी ज्यादा इमरजेंसी के लिए संभाल कर रखा जाए इस पर सभी साथियों का हक है.इतनी तकलीफ में भी उनसे बातें करने पर वे बड़ी मुस्कुराहट और जिंदादिली से जीने का फंडा बताते हैं.

पत्रकार साथियों के लिए शुरू किए आंदोलन के कारण उनके समर्मण की भावना को इसी से समझा जा सकता है कि सरकार का ऐसा विरोध किया कि अपनी पत्रिका ” झारखंड ऑब्जर्वर हिंदी मासिक पत्रिका के सरकारी विज्ञापन को भी लेना बंद कर दिया.ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकार साथियों को एक्रिडेशन का लाभ मिलता देख उन्होने इसका भी लाभ लेना उचित न समझा.इस पर पूछने पर वे बोले सरकारी लाभ लेकर सरकार का विरोध करना दोगले नेताओं का काम है जो चंदाखोरी के लिए महशूर हैं और पत्रकारों को रोज मूर्ख बनाकर ठेकेदार बन बैठे हैं.

जो लोग उन्हें करीब से जानते वे बताते हैं कि जीवन में लाभ के बड़े-बड़े अवसर वे इसलिए छोड़ दिया करते हैं कि उन्हें साई बाबा को अंत जवाब देना होगा.साई पर उनकी आस्था का इसी से पता चलता है कि वे प्रत्येक वर्ष अपने 10-12 दोस्तों से आर्थिक सहयोग लेकर मार्च महिने में साई ज्योत महोत्सव करवाते हैं जिसका आकर्षण और शादी-विवाह की पार्टी जैसी प्रसाद वितरण प्रणाली पूरे झारखंड में चर्चा का विषय बनी हुई है.इस कार्यक्रम में विभिन्न जिलों से आए साई मंदिर कमेटियों को कभी प्रतीक चिन्ह कभी चाँदी के तोहफे और कभी नगदी बाँटकर उन्होने साई मानवसेवा ट्रस्ट को मात्र 5 सालों में ही चर्चा का विषय बना दिया.5 सालों में ही उन्होने दर्जनों जरूरतमंद मरीजों का ईलाज,गरीब लड़कियों की शादी,बच्चों की स्कूल फीस, किताबें, वस्त्रदान,अन्नदान और रोजगारपरक योजनाएं चलाकर संस्था का नाम सुर्खियों में ला दिया.इस वर्ष उनकी बीमारी के कारण हुई परेशानी से ज्योत महोत्सव नहीं हो पाया.

वे अक्सर कहते हैं हमारे 10 गुरूओं और मेरे आराध्य साई बाबा जैसे संतों ने अपना जीवन केवल कल्याणकारी कार्यों में बिताया और अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया.हमें अपनों के लिए कम और दूसरों के लिए ज्यादा जीना चाहिए.इसी सोच के कारण कभी-कभी वे अपने विरोधियों की भी मदद करते नजर आते हैं.आज कल वे अक्सर कहने लगे हैं कि मेरे पास समय कम और जिम्मेदारियाँ ज्यादा हैं.आईये हम उनकी मदद को एक कदम आगे बढ़ते हैं जिनका जीवन ही त्याग और बलिदान से भरा हुआ है उन्हें बचाने में अहम भूमिका निभाने का समय आ गया है.

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