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महाराष्ट्र : औरगंजेब के यार, आजमी पर एफ आई आर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

औरगंजेब के यार, आजमी पर एफआईआर

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

अखिलेश यादव के करीबी महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने औरगंजेब का गुणगान कर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी हलचल बढ़ा दी थी। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और एफआईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी महज 24 घंटे में ही घुटने टेकते हुए अपने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। इससे हिंदू संस्कृति, सम्मान को बचाने को लेकर कार्य कर रही राजनीतिक दल और संगठन ने संतोष की सांस ली है, वहीं अबू आजमी के वयान को सही बताने वाली पार्टियां बैकफुट पर नजर आ रही है।

दरअसल, सोमवार (3 मार्च) को अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान और बर्मा (म्यांमार) तक थीं। उस वक्त भारत का जीडीपी 24 फीसदी था और देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। आजमी ने कहा था, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए। वाराणसी में, उन्होंने एक हिंदू बच्ची को एक पुजारी से बचाया, जिसकी उस पर बुरी नजर थी। उसने पुजारी को हाथियों से कुचलवा दिया था।’ अपने रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानता। उस दौर में सत्ता संघर्ष राजनीतिक थे, धार्मिक नहीं। औरंगजेब की सेना में कई हिंदू थे, जैसे छत्रपति शिवाजी की सेना में कई मुस्लिम थे।’

हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म देखकर आक्रोशित लोगों का यह मानना था कि औरंगजेब संभाजी महाराज की क्रूर 40-दिवसीय यातना और फांसी के लिए जिम्मेदार था। इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को तोड़ मरोड़ कर रखा और इसे ही पढाया जाता रहा। इसी इतिहासकारों के ओट लेकर अबू आजमी ने वयान वापस लेते हुए माफी मांग ली है। अबू आज़मी का कहना था कि “मैंने वही कहा है जो इतिहासकारों ने बताया है। मेरा उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। अगर किसी को मेरे शब्दों से चोट पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं।” उनका यह बयान राज्य विधानसभा में विवाद उत्पन्न होने के बाद आया, जहां विपक्षी दलों ने उनके बयान को लेकर हंगामा किया था, जिसके कारण विधानसभा का कार्यवाही कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी थी।

दरअसल, छावा मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले निर्मित, एक पीरियड ड्रामा है जो विक्की कौशल द्वारा अभिनीत छत्रपति संभाजी महाराज की पौराणिक कहानी को चित्रित करता है। फिल्म में साहसी मराठा शासक के 1681 में उनके राज्याभिषेक से शुरू हुए पौराणिक शासनकाल को दर्शाया गया है। फिल्म में रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना भी हैं। ‘छावा’ को “एक साहसी योद्धा की प्रेरक कहानी बताया जाता है, जिसका 1681 में इसी दिन राज्याभिषेक हुआ और जिसने एक महान शासनकाल स्थापित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस फिल्म की तारीफ की है और ये फिल्म महाराष्ट्र सहित पुरे देश में धूम मचाई हुई है।

अगर हम भारत के इतिहास को खंगालते हैं तो पाते हैं कि लार्ड मैकाले ने 12 अक्टूबर1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में कहा था कि हम भारत पर पूरी तरह से तभी शासन कर पायेंगे जब इन्हें हम इनकी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति से दूर कर सकेंगे। आज हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास पढते हैं और अपने गौरवान्वित इतिहास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसलिए आज स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी प्राचीन भारतीय गौरव के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसीलिए भारतीय कला, इतिहास एवं संस्कृति का उपहास करते हैं एवं पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। वहीं हम जब अपनी गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जान पाते हैं, तो सही गलत इतिहास की समझ रखते हैं और मुखर हो विरोध करते हैं।

अबू आज़मी इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों की ओट लेकर माफी तो मांग ली और आजमी ने कहा कि अगर उनके बयान से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह अपना बयान वापस लेते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका बयान किसी व्यक्तिगत विचार या टिप्पणी का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिफल था जो इतिहासकारों ने पेश किए हैं। प्रश्न यहीं से खड़ा होता है कि भारतीय इतिहास को सर्वमान्य तरीके से क्यों नहीं संशोधित किया जाता है।

फिलहाल तो सपा नेता विधायक अबू आज़मी चतुर्दिक विरोध का सामना कर ही रहे हैं। इसके अलावे विधानसभा से निलंबन का भी दबाब झेल रहे हैं। और इधर भाजपा सांसद नरेश गणपत म्हस्के और शिवसेना नेताओं ने ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज भी कराई है। शिकायत में कहा गया है कि अज़मी ने औरंगजेब के शासनकाल की तारीफ की। औरंगजेब के अत्याचारों को उन्होंने कम करके बताया। यह बात लोगों को नागवार गुजरी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत दर्ज किया गया है। इसमें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 299), धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने (धारा 302) और मानहानि (धारा 356(1) और 356(2)) से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

अबू आज़मी ने औरगंजेब का गुणगान कर पुरे देश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। इन टिप्पणियों ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज़मी के खिलाफ मोर्चा संभाला है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस टिप्पणी को देशविरोधी बताया है। शिंदे तो ऐसी बयानबाजी के लिए अबू आजमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की बात कर रहे हैं। सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव मौन है, पर उनके ही दूलारे सांसद अवधेश प्रसाद ने अबू आजमी के वयान को सही ठहराया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ने इसे सपा का चरित्र बताया है और निंदा की है।

इतिहासकारों के ओट लेकर माफी मांग चुके अबू आजमी भले ही कानूनी प्रणाली से बच जायें। भले ही विधानसभा से माफी के बाद निलंबन की कारवाई ना हो। पर 24 घंटे के अंदर घुटने टेकने को मजबूर कर देने वाली हिंदू वादी राजनीतिक दल और संगठन अब किसी के भी ऐसे वयानों पर चुप नहीं बैठने वाली ऐसा प्रतीत होता है। अबू आजमी के माफी मांग लेने के बाद उन्हें समर्थन करने वाले बैकफुट पर होंगे। पर समाजिक समरसता बनाये रखने के लिए यह जरूरी दिखता है कि सरकार इतिहास को एकबार सर्वमान्य तरीके से संशोधित करे।

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