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“मणिपुर : इस्तीफा से लौटेगी भाजपा की साख”

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

मणिपुर में हिंसा के बीच अपने ही पार्टी के विधायकों के असंतोष से शुरू विवाद के कारण मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का इस्तीफा से अविश्वास प्रस्ताव जैसे हलचल से भाजपा बच निकल तो गयी है। जल्द ही सर्वमान्य मुख्यमंत्री मणिपुर को मिल भी जायेगा, पर लगातार हिंसा के आरोपों को लेकर भाजपा की पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि वो जल्द से जल्द शांति बहाल कर अपनी खोई साख हासिल करे और एक अच्छा शासन दे सके। एन बीरेन सिंह पर घोटालों का कोई दाग नही है, पर जातिय हिंसा में एक पक्ष का कथित साथ देने का आरोप है।

मणिपुर में हिंसा लंबे समय से एक गंभीर राजनैतिक मुद्दा बना हुआ है, सूबे में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से जमीन, आरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर विवाद है। इन समुदाय के बीच हिंसक झडपों में सैकड़ों जान जा चुकी है और हजारों लोगों को अपने घर छोडने को मजबूर होना पड़ा है। मणिपुर के हिंसा को लेकर विपक्षी पार्टियां विरोध में उतरकर सड़क से लेकर संसद तक सरकार को घेरने का काम करते रहें हैं। संसद के सदनों की कार्यवाही लगातार कयी कयी दिनों तक रोका भी गया है। सरकार मणिपुर हिंसा को लेकर बैकफुट पर रही है और विपक्षी पार्टियों को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिलता रहा है।

मणिपुर हिंसा की आंकड़ों की अगर बात करें तो ये दिल दहला देने वाली है। लगभग 30 लाख की आबादी वाले इस छोटे से राज्य में हिंसा के 5995 मामले में 250 लोगों की मौत, 60000 के बेघर होने, 4786 घर जलाये जाने, 386 धर्मस्थल तोडे जाने की अधिकारिक सूचना है। इसके अलावे मंत्रियों और विधायकों के घरों को भी जलाये जाने की खबर है और इन मामलों में 6745 से अधिक लोग जेलों में बंद हैं।

60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 31 है और बीजेपी के पास खुद के 32 विधायक हैं। 2022 में विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद, जेडीयू के 6 में से 5 विधायक औपचारिक रूप से बीजेपी पार्टी में शामिल हो गए, जिससे सदन में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 37 हो गई। इस प्रकार मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पास अपने दम पर बहुमत है, पर एनपीपी के 7 विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने और भाजपा के ही 19 विधायकों के असंतोष के बाद सरकार पर खतरा मंडरा रहा था। जारी लगातार जातिय हिंसा से ये 19 विधायक क्षुब्ध थे।इन विधायकों में विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम सत्यव्रत सिंह, मंत्री थोंगम विश्वजीत सिंह और युमनाम खेमचंद सिंह का नाम भी शामिल हैं। ये सभी राज्य में शांति बहाली को लेकर चिंतित थे और जल्द समाधान चाहते थे।

राज्य में जातीय हिंसा को लेकर बीरेन सिंह के खिलाफ कड़ा रोष था। नाराज विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम खेमचंद सिंह के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर स्थिति से अवगत भी कराया था। पर महाराष्ट्र चुनाव को लेकर मामला टल गया था। बीरेन सिंह पर किसी प्रकार के कोई घोटाले का आरोप कभी नहीं रहा , बेदाग काम रहा उनका। पर एक कथित आडियो लीक होने, जिसमें वो किसी समुदाय के पक्ष में बात करते हुए सुने गये। इस आडियो क्लिप की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी करवाया जा रहा है। हलांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है। और दुसरा बजट सत्र में उन पर अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने की संभावना कारण बना। अविश्वास प्रस्ताव का साथ भाजपा के 19 विधायकों द्वारा भी दिये जाने की संभावना थी। 60 सदस्यीय विधानसभा में कुल 33 विधायकों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का साथ दिये जाने की संभावना थी और ये सभी विधायक एक थर्ड फ्रंट बनाकर सरकार चलाते।

मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्षी पार्टियां भाजपा को शुरू से ही घेरती आ रही है। अपने ही पार्टी विधायकों द्वारा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने से पार्टी में टूट की संभावना भी दिख रही थी। राज्य में हिंसा को लेकर भाजपा की साख काफी गिर चुकी है और फिर दिल्ली में प्रचंड जीत के बाद मणिपुर में पार्टी में टूट से किरकिरी होना तय था। अमित शाह ने एन बीरेन सिंह को मनाकर इस्तीफा दिलवाकर सरकार के विरुद्ध असंतोष को जरूर कम किया है। अब मणिपुर में नयी सर्वमान्य सरकार बनाने और उससे भी कहीं ज्यादा राज्य में शांति बहाल कर भाजपा की साख को बचाना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।