सरदार बल्लभ भाई पटेल के बारे में 10 ऐसी बातें, जो उन्हे बनाती हैं लौहपुरुष…
रामगढ़: इन्द्रजीत कुमार
महान देशभक्त लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता हैं। गुजरात प्रदेश में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने की वजह से सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान पाया हैं। यह संसार भर की सबसे ऊंची प्रतिमा हैं। इसी प्रतिमा का नाम एकता की मूर्ति (स्टेच्यू ऑफ यूनिटी) हैं।
महान देशभक्त सरदार बल्लभ भाई पटेल के बारे में 10 बातें:-
01.महान देश भक्त सरदार पटेल का जन्म सन 31 अक्टूबर 1875 ईस्वी को गुजरात के नडियाद में हुआ। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई औंर लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। सन 1897 ईस्वी में 22 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की गई थी। भारत देश के सच्चे हृदय से सपुत तथा महान देशभक्त सरदार बल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई। पटेल जब सिर्फ 33 वर्ष के थे। तब उनकी पत्नी का निधन हो गया।
02.सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी गई थी। नडियाद में उनके स्कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदे।
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इसका विरोध किया गया। छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया गया। परिणामस्वरूप अध्यापकों औंर विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।
03.सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 आयु की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की गई। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था। लेकिन उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सके।
उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार ली गई। अपने घर पर पढ़ाई-लिखाई शुरू कर दी गई।
04.बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की गई। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क औंर लौहपुरुष भी कहा जाता हैं। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।
05.इंग्लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख रुपए पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे औंर अहमदाबाद शहर में अपनी वकालत शुरू की गई। अतिशीघ्र ही वे बहुत ही लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा। उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।
06.सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की गई। ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया गया। महात्मा गांधी ने किसानों का मुद्दा उठाया गया। वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे। इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे। जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इसी समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए औंर संघर्ष का नेतृत्व किया गया।
07.गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया गया। केवल हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का लौहपुरुष के रूप में जाना जाता हैं। सरदार पटेल की महानतम देन थी।
562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। सन 5 जुलाई 1947 ईस्वी को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।
08.सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए। इसी पद से पीछे हट गए। पुर्व प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। भारत देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया गया।
09.सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद शहर में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई शहर में जब उनका निधन हुआ। तब उनके बैंक खाते में मात्र 260 रुपए पैसे ही मौजूद थे।
10.आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया गया था। लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया गया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल सन 12 नवंबर 1947 ईस्वी को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए गए। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया गया।
जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया। जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया गया। किंतु कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए। इस मामले को अपने पास रख लिया गया।