गांव, कस्बे, मोहल्ले यहां तक शहरों की कई लड़कियों के ख्वाब रवायतों के दस्तूर के
आगे घर की चौखट पर ही ओझल हो जाते है….
प्यार के 35 टुकड़े और फ़िजा में तैरते सवाल
रांची ब्यूरो : गांव, कस्बे, मोहल्ले यहां तक शहरों की कई लड़कियों के ख्वाब रवायतों के दस्तूर के आगे घर की चौखट पर ही ओझल हो जाते है, उनकी आजादी, उनके ख्याल, पसंद -नापसंद समाज की बेडियों के सामने घुटने टेक जाते हैं. आजाद ख्याल का मिजाज सीने में ही दफ़न हो जाती है. क्योंकि, आज भी लड़कियां पाबंदिया ओर पर्दे में ही रहने की चीज मानी जाती हैं.दिल्ली में श्रद्धा के 35 टुकड़े, उसके प्रेमी आफताब के करने के बाद, अब और सवाल उठने लगे हैं. अगर वो आफताब के साथ न जाती तो ऐसा नहीं होता. उसे इतनी बेरहम मौत नहीं मिलती.यहां गौर से समझने ओर दिमाग़ में उतारनेवाली बात हैं. अगर श्रद्धा को मानसिक तौर पर मदद मिलती, तो शायद ये ख़ौफ़नाक दास्ता नहीं होती. शायद श्रद्धा को कोई मददगार नहीं मिला, उसे सही से समझा न सका की, इस घुटन भरे रिश्ते से निकलना ही समझदारी भरा कदम होगा. शायद, कोई उसे पढ़ न सका, उसके दर्द पर मरहम लगाने की कोशिश नहीं की गई. अगर, सचमुच ऐसा होता तो एक हंसती-खेलती, हसमुख लड़की की जिंदगी यू ख़त्म नहीं होती.
अगर इस खौफनाक वारदात को समझे तो, कहानी प्यार से शुरू होती है , श्रद्धा को आफताब में प्यार दिखा, माँ-बाप से बगावत कर उसके साथ चली गई, वो तो प्यार के खातिर गई थी, उसने न मजहब देखा, न दुनिया-दारी की परवाह की. वो तो आफताब में अपना पवित्र प्रेम देखी, वह उसके दामन में बैठी कालिख को नहीं देखी थी, उसमे उसकी गलती नहीं थी. वो तो दरिंदा ओर राक्षस आफताब था, जो प्यार को बदनाम किया, उसकी नज़र में तो किसी के अरमानों को कुचलना, जिस्म ओर ज़िंदगी से खेलना था. उसने वही किया, जो उसका इरादा दफ़न था. ऐसा भेड़ियों, वहशियों को पहचानना मुश्किल है. जो ऊपर से कुछ और अंदर से कुछ ओर होते हैं
इस वारदात से देश -दुनिया सिहर गई है. लेकिन, ये कहानी एक श्रद्धा की नहीं हैं, इसकी तादाद बहुत है, हंगामा और हड़कंप अभी मचा है, लेकिन, आज भी देश के सुदूर इलाकों में लोग श्रद्धा जैसी लड़कियों की अस्मत से खेल रहें हैं, जिस्म को नोच रहें हैं, मौत की नींद सुला रहें हैं. अनेकों आफताब बेखौफ अपने काम को अंजाम दे रहा हैं. हमें इसे समझना होगा और ये बताना होगा की, ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए, जो प्यार को हथियार बनाकर अपने फायदे के खातिर बदनाम कर रहें हैं. मजहब और इंसानियत का मज़ाक उड़ा रहें हैं.
आफताब ने श्रद्धा के साथ, जो किया वो एक सबक हैं,जिसे सीखने की जरुरत हैं.हमें अपनी खामोशी तोड़नी होगी. क्योंकि, ऐसा नहीं हैं की मोहब्बत के नाम पर ये रोंगटे खड़े करने वाली वारदाते नहीं होंगी. ये होगी, लेकिन अगर हम श्रद्धा के साथ जो हुआ, अगर उसे जेहन में रखेंगे, तो हमे एक राह मिलेगी ओर सावधान हो सकते हैं.
शिवपूजन ………