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ग्राम सभा के पहले महिला सभा अभियान की शुरुआत झारखंड से हो  :  सुधीर पाल

रांची ब्यूरो Sudesh Kumar रांची प्रेस कल्ब के सभागार में राष्ट्रीय पंचायत दिवस के अवसर पर पंचायत में महिला सुरक्षा अभियान के तहत् प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में जागोरी, नई दिल्ली से जयश्री जमशेदपुर से पूर्वी पाल और रांची से सुधीर पाल उपस्थित थे । वही प्रेस वार्त्ता में बताया की राघ्ट्रीय पंचायत दिवस पर महिलाओं सुरक्षा के स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की प्रभाव और निर्णायक भागीदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।

जिसके लिए हर ग्राम सभा के पहले झारखंड में महिला सभा का अभियान की शुरूवात किया जाना चहिए । वही प्रेस वार्त्ता में सुधीर पाल ने वताया की 73वें संवैधानिक संशोधन ने स्थानिय स्वाशासन की व्यवस्था में महिलाओं के लिए राजनीतिक न्रतिनिधित्व का अवसर उपलब्ध कराया गया है । तीस वर्ष के बाद भी वर्तमान में महिलाओं को ग्राम सभा के बैंठकों में अधिकार सुनिश्चित नहीं किया जा सका है । राष्ट्रीय पंचायत दिवस पर 73 वें संशोधन के अधार पर झारखंड में भी ग्राम सभा से पहले महिला सभा अनिवार्य करने की कानूनी प्रावधान केे लिए अभियान की शुरूवाआत की जाना चाहिए ।

‘ग्राम सभा से पहले हो महिला सभा हो :

‘जब देश के दो राज्यों ने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करके महिला सभा को अधिनियम का हिस्सा बनाया है और सात राज्यों ने सर्कुलर जारी करके, ग्राम सभा से पहले महिला सभा के आयोजन को अनिवार्य बनाया है तो फिर झारखण्ड’ पीछे क्यों?’

‘झारखण्ड पंचायत राज विधेयक 2001/30 मार्च 2001 में विधान सभा में पारित हो कर लागू हुआ। अघिनियम के चौथे संशोधन के 2010 के अध्यादेश ने सभी वर्ग में सभी स्तर पर महिलाआंे के लिए आरक्षण की बात कही है। झारखण्ड राज्य ने पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी को 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया है, और 2022 के पंचायत चुनावों में अच्छी ख़ासी संख्या में निर्वाचित हो कर महिलाएं इस स्थानीय शासन व्यवस्था का हिस्सा भी बनी हैं। लेकिन क्या सही मायने में ये सभी महिलाएं चाहे वे पंचायत की निर्वाचित प्रतिनिधि हों या आम महिलाएं हों, अपने नागरिक अधिकारों का इस्तेमाल कर पा रही हैं? क्या गांव के विकास के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी बराबर की हो रही है? क्या पंचायतों में ऐसी कोई व्यवस्था है जहां महिलाएं अपनी समस्याओं, अपनी जरूरतों को रख पा रही हैं? या जिसके माध्यम से उनकी समस्याएं और जरूरतें ग्राम सभा तक पहुंच पा रही हैं और जीपीडीपी का हिस्सा बन पा रही हैं?

पंचायती राज अधिनियम के 73वेे संशोधन के बाद आज भी ग्राम सभा की बैठकों में महिलाओं की भागीदारी सहज नहीं हो पाई है। महिलाओं की ज़ि़ंदगी को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों पर स्वभाविक चर्चा का माहौल नहीं है। गांव के विकास के लिए बनाई जा रही योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम है। महिलाओं को एक ऐसे मंच की जरूरत है जहां वे अपनी समस्याओं को खुल कर रख सकें, विकास संबंधी जरूरतों को तय करें और उन्हें गांव की विकास योजना में, ग्राम सभा और पंचायत स्तर पर शामिल करा सकें -महिला सभा एक ऐसा ही मंच है। महिला सभा महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और लोकतंत्र को ज़मीनी स्तर पर मजबूत करने का एक महत्त्वपूर्ण टूल है, जिसका इस्तेमाल कई राज्यों द्वारा सफलतापूर्वक किया भी जा रहा है।

महिला सभा महिलाओं की ग्राम स्तर की बैठक होती है, जिसमें संबंधित ग्राम पंचायत की किसी भी वर्ग,आयु,जाति,धर्म, की वयस्क महिला भागीदारी कर सकती है। वैसे तो छोटे छोटे स्तर पर महिला समूहों की बैठकें पंचायतों में होती हैं, लेकिन ‘महिला सभा’ इन बैठकों को नहीं कहा जा सकता है। पंचायती राज व्यवस्था में महिला सभा की अपना एक राजनीतिक महत्त्व है। इसके आयोजन के लिए भी वही प्रक्रिया अपनाई जाती है जो ग्राम सभा के लिए की जाती है-इसके आयोजन के लिए सर्कुलर, आयोजन का प्रचार, बैठक के मिनट्स, शामिल सदस्यों के हस्ताक्षर आदि। महिला सभा में लिए गए प्रस्तावों को ‘ग्राम सभा’ की कार्यवाही में शामिल किया जाना जरूरी होता है।

महिला सभा की पूरी प्रक्रिया महिलाओं को स्थानीय शासन में समान राजनीतिक भागीदारी के लिए तैयार करेगी-महिलाआंे का अपने विकास संबंधित जरूरतों को सम्मिलित रूप से पहचान करना उसे ग्राम सभा के सामने रखना और ग्राम सभा की पूरी कार्यवाही में बराबर से हिस्सेदारी करना। अन्य राज्यों के उदाहरण बताते हैं कि महिला सभा निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को गांव के विकास में अपनी सार्थक भूमिका निभाने में भी मदद कर रहे हैं।

महिला सभा महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को स्थापित करने केेेेे लिए जरूरी है वहीं महिला हिंसा की रोकथाम में भी उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ज़मीनी स्तर के अनुभव व अध्ययन बताते हैं कि महिला हिंसा से संबधित मुद्दे अक्सर घरों की चारदिवारी में ही रह जाते या पंचायत स्तर पर आते भी हैं, तो उनकी सुनवाई में पितृसत्तात्मक नजरिया हावी रहता है। महिला सभा का मंच महिला हिंसा के खि़लाफ माहौल और सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं को सुरक्षित बनाने की दिशा में सशक्त पहल है।

महिलाओं की बराबर की भागीदारी :

महिला सभा की जरूरत को पहचानते हुए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि हर ग्राम सभा से पहले महिला सभा का आयोजन हो, और महिला सभा के प्रस्तावों को ग्राम सभा में रखा जाए ताकि जीपीडीपी में महिलाओं की बराबर की भागीदारी बन सके। और यह सुनिश्चित तभी किया जा सकेगा जब यह झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम का अनिवार्य हिस्सा बनेगा। आज पंचायती राज दिवस के विशेष अवसर पर हम झारखण्ड सरकार से, ‘ग्राम सभा से पहले, अनिवार्य महिला सभा’ की मांग करते हैं। महिला सभा के अनिवार्य आयोजन से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को व्यहवारिक स्तर पर बल मिलेगा, और राज्य सरकार का यह कदम, स्थानीय शासन व्यवस्था और लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में महत्तवपूर्ण पहल साबित होगा।

पंचायतों में महिला सुरक्षा(एम एस पी) कोर समूह स्वयंसेवी संस्थाओं व निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का वह समूह है जो झारखण्ड के विभिन्न ज़िलों में पंचायत स्तर पर काम करता हैं। इस समूह के ज़मीनी अनुभवों ने ‘महिला सभा की जरूरत को पहचाना है और यह समूह झारखण्ड पंचायती राज व्यवस्था में अनिवार्य महिला सभा की मांग को लेकर अभियान के शुरूआत की घोषणा करता है।

ग्राम सभा से पहले महिला सभा क्यों ?

1 गांव की सभी महिलाएं-युवा, बुजुर्ग, विकलांग, एकल, किसी भी जाति या धर्म की-एक
मंच पर आकर अपनी जरूरतों पर चर्चा करें और सर्वसम्मति से तय किए गए मांगों को
ग्राम सभा के सामने रखे।
2 महिला सुरक्षा- हिंसा की रोकथाम, सड़कों पर लाइट की व्यवस्था, शौचालय, स्वास्थ्य
सेवाएं, योजना, रोजगार आदि मुद्दों पर बहस हो।
3 गांव की महिलाएं और निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का आपसी संवाद बढ़े।
4 निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का नेतृत्व सशक्त हो।

वह ग्रामीण विकास योजना कैसी जिसमें आधी आबादी की रायशुमारी ही नहीं…

 

 

 

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