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स्पेशल स्टोरी ऑफ संजय मि़श्रा…..

इससे तो अच्छा लॉकडाउन ही था; जिसमें कम से कम पक्षियों

की चहचहाहट तो सुनी जा रही थी…..

सरायकेला। कोरोना की दहशत और उसके प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर कहीं से अच्छा तो कहीं से प्रताड़ित करने वाला और रोजगार एवं रोजी-रोटी छीनने वाला कयास लगता रहा। एक प्रकार से लॉकडाउन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था सहित समुचा देश थम सा गया लगा।

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यहां तक की शहरों और गांव के थमने के साथ-साथ एक प्रकार से जंगल का जीवन भी थमा सा लगा। उसके बाद कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी आने के साथ ही देश हुआ अनलॉक। और फिर से शुरू हुई शोर, प्रदूषण, दुर्घटना और अपराध की फिर से वही सफर। इन दोनों ही परिस्थितियों की तुलना में यदि अर्थव्यवस्था का किनारा किया जाए तो बुद्धिजीवियों की नजर में लॉकडाउन ही बढ़िया था। जहां स्वच्छ पर्यावरण की सुबह कम से कम पक्षियों के कलरव सुने जा रहे थे। जो एक बार फिर से अब शोर की भेंट चढ़ चुके हैं।

बढ़ी है प्रदूषण की मात्रा :-

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के क्षेत्रीय पदाधिकारी जितेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि लॉकडाउन के समय पैरामीटर पर प्रदूषण की मात्रा 75 से कम रही। जबकि वर्तमान में यह 120 तक पहुंच चुकी है। जहां इसकी आदर्श दशा 100 से कम रहनी चाहिए। इस प्रकार वाहनों के लगातार हो रहे परिचालन और फैक्ट्रियों से निकल रहे धुंआ के माध्यम से वातावरण में सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स की मात्रा बढ़ी है। जो जीवन प्रत्याशा को कम करने के कारक बनते हैं। इसी प्रकार शोर के कारण ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ा है। और लॉकडाउन की अपेक्षा लोगों में तरह-तरह की बीमारियां भी बढ़ी हुई देखी जा रही हैं।

सड़क दुर्घटना और अपराध बढ़े हैं :-

 

लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर वाहनों का परिचालन नहीं होने के कारण सड़क दुर्घटना की गति थम सी गई थी। अनलॉक होते ही सड़क दुर्घटनाओ़ की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होने के साथ-साथ जिले में सड़क दुर्घटना में मरने और घायल होने वालों की संख्या भी बढ़ी है। इसके साथ ही लॉकडाउन के दौरान जहां अपराध शून्य हो गए थे। अनलॉक होते ही अपराध और अपराधिक गतिविधियां भी तेजी से बढ़ी है।

जंगलों में भी थी शांति :-

लॉकडाउन के दौरान जंगलों में भी शांति का आलम था। फॉरेस्टर शुभम पंडा बताते हैं कि इस दौरान वन क्षेत्र में मोर सहित अन्य वन्यजीवों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई। जंगली क्षेत्र में मानव का प्रभाव कम होने के कारण इस दौरान वन क्षेत्र में पेड़ और हरियाली भी बढ़े। साथ ही मानव और वन्यजीवों का वर्चस्व संघर्ष नहीं रहा।

जंगली गजराजों के संबंध में बीते 6 साल के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016-17 में जंगली हाथियों के हमले में 5 लोगों की मृत्यु और 4 लोग घायल हुए थे। जबकि जंगली हाथियों द्वारा नुकसान पहुंचाने के 1491 मामले सामने आए थे। इसी प्रकार वर्ष 2017-18 में दो जंगली हाथियों की मौत और हमले में 3 लोगों की मौत के साथ 15 लोग घायल हुए थे। जबकि नुकसान के 823 मामले सामने आए थे। वर्ष 2018-19 में एक जंगली हाथी की मौत के साथ हमले में 6 लोगों की मौत और 15 लोग घायल हुए थे। जबकि नुकसान पहुंचाने के 1862 मामले सामने आए थे। वर्ष 2019-20 में एक जंगल की हाथी की मौत के साथ हमले में तीन लोगों की मौत और 5 लोग घायल हुए थे।

जबकि नुकसान पहुंचाने के 1145 मामले सामने आए थे। वर्ष 2020-21 में दो जंगली हाथी की मौत के साथ हमले में 11 लोगों की मौत और 18 लोग घायल हुए थे। जबकि नुकसान पहुंचाने के 1520 मामले सामने आए थे। इसी प्रकार वर्ष 2021 से लेकर वर्तमान तक एक जंगली हाथी की मौत के साथ 6 लोगों की मौत और हमले में 8 लोग घायल हुए हैं। और नुकसान पहुंचाने के 1037 मामले सामने आए हैं।

लॉकडाउन था प्रेम और सौहार्द का अनमोल समय :-

बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान सहयोग करने वाले हाथ बड़ी संख्या में सामने आए। जिसमें सब्जी से लेकर राशन तक भी दुकानदारों ने फोन की एक आवाज पर घर पर डिलीवरी की। वहीं घरों में बंद जिंदगानी का समय भी अपने परिवारों के बीच और फोन पर अपने रिश्तेदारों और साथियों के साथ बीतता रहा। जिसमें ना किसी प्रकार का लोभ या लालच रहा। सिर्फ एक दूसरे की खैरियत जानते और बीते हुए अच्छे समय को याद करते हुए लॉकडाउन गुजरता रहा। परंतु अनलॉक होते ही एक बार फिर से परस्पर संबंधों में सहयोग की भावना दूर होकर लोभ और लालच ने घर कर लिया।

देश के नाम दिखी थी बेमिसाल एकता और अखंडता :-

लॉकडाउन के दौरान राष्ट्र की एक आवाज पर कोरोना वारियर्स के लिए कभी तालियां बजी तो कभी थालियां पिटे गए। तो घरों के सामने कभी दीप जलाकर राष्ट्रीय अखंडता का संदेश दिया गया। जबकि अनलॉक होते ही राष्ट्रीयता दर्शाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने पड़ रहे हैं।
कुल मिलाकर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग वातावरण की शुद्धता और प्रेम एवं सौहार्द भरे समाज के लिए लॉकडाउन जैसी व्यवस्था की पैरवी करते हुए बेचे जा रहे हैं। हालांकि कोरोना जैसी भयावह महामारी के आने वाली संभावित लहरों को लेकर के भी चिंता की लकीरें जानकारों की पेशानी पर देखी जा रही है।

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