शापोद्धार का महामंत्र है भगवत अनुसरण…
सरायकेला: सरायकेला प्रखंड अंतर्गत जगन्नाथपुर गांव में चल रहे श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठम दिवस पर कथा करते हुए कथावाचक बसंत प्रधान एंव कथावाचक नागेश्वर प्रधान ने राजा परिक्षित व शुकदेव महाराज की कथा सुनाये। राजा परीक्षित गंगा के तट पर पहुंचे। वहां जितने भी संत महात्मा थे सबसे पूछा कि जिसकी मृत्यु सातवें दिन है। उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो, इससे अच्छा क्या होगा, सब अलग अलग उपाय बता रहे है। तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे। जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज, जो सबसे बड़े वैरागी व चूड़ामणि हैं। उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि, हे गुरुदेव! जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो, उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये…अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा कि हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। जो गोविंद दे दें वहीं स्वीकार कर लो। यही श्रेष्ठ है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय हैं जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्रदान करें और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें। कथा सुनने के लिए आस पास से काफी संख्या में महिलाएं, पुरूष व बच्चे भागवत प्रेमी पहूंचे। कथा स्थानीय उडिया भाषा में सुनाया जा रहा है, जिससे कारण सभी लोगों को समझने में भी सहुलियत हो रही है। प्रात: कालीन भगवान की आरती के साथ 7 बजे से कथा प्रारंभ होती है जो देर रात तक चलती रहती है। कार्यक्रम के सफल आयोजन में पंचानन महतो, सहदेव सरदार, दिनेश प्रधान, रामकुमार ग्वाला आदि भक्तों की सराहनीय योगदान रहा।