विश्व गौरैया दिवस पर खास:
अब तो गौरैया की चहचहाट के बिना ही लोगों की हो जा रही है भोर…
सरायकेला Sanjay । कुछ साल पहले तक हर किसी की नींद गौरैया की चहचहाहट के साथ ही खुला करती थी। जब हर किसी के घरों के मुंडेर पर गौरैया दिन भर चूं चीं कर झुंड के साथ मंडराया करती थी और हमारे घरों में वह जरूर घोंसला बनाती है। मानो वे परिवार का हिस्सा हो और सभी के दिनचर्या में उनकी भागीदारी भी हुआ करती थी। बहुधा उसे लक्ष्मी का रूप में माना जाता था। लेकिन बढ़ते शहरीकरण, आधुनिकीकरण और मानवीय सोच के कारण धीरे-धीरे गौरैया चिड़िया आज हमसे और हमारे घर से दूर होता चला जा रहा है।
संचार माध्यमों के बढ़ते प्रभाव के बीच दूरियों को समेटने की कोशिश में हर दिल अजीज गौरैया आज हमारी जिंदगी से दूर होते जा रहे है। आज गौरैया की चहचहाहट की जगह गाड़ियों की कर्कश आवाज के साथ ही प्रायः आंखों की नींद खुल रही है। मानो गौरैया को भूल ही गए और वे जिंदगी से दूर हो चली है। विश्व गौरैया दिवस के मौके पर अचानक उस प्यारे से गौरैया की याद आ रही थी। यह याद केवल जेहन तथा बचपन की स्मृतियां भर ही सीमित है। आज आंखें गौरैया को मुंडेर पर ढूंढ रही हैं।
गौरैया को देखने को मन व्याकुल है। पर हर तरफ ऊंची ऊंची इमारत और मोबाइल टावर ही दिख रहे है। अपनी इस व्यथा के लिए मानव आज खुद ही जिम्मेदार है। गौरैया जैसी कई चीजें जो कल तक मानव जीवन का अहम हिस्सा हुआ करती थी आज दूर होती जा रही है। इस बदलाव का परिणाम भी कई भीषण संकट के रूप में देखा जा रहा है। अगर अब भी मानव समुदाय नहीं चेते तो उनके आंसू पोछने वाला भी कोई नहीं होगा।
विश्व गौरैया दिवस पर एनवायरमेंट प्रोटक्शन फोरम के प्रमुख पर्यावरणविद सुबोध शरण बताते हैं कि बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण, ऊंची इमारतों के कारण घरों में दीवार का अभाव, कीटनाशकों का अनियमित उपयोग जैसे कारकों के कारण गौरैया जैसे फ्रेंडली पक्षी का आस्तित्व खतरे में पहुंच गया है। जिसे सभी की सहभागिता के साथ मानवीय जीवन से जुड़े गौरैया पक्षी को संरक्षण देने की आवश्यकता है। एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन फोरम इस दिशा में पूर्व से ही जागरूकता के कार्य कर रहा है। गौरैया पक्षी के संरक्षण को लेकर वर्ष 2011 से स्पैरो अवार्ड की घोषणा की गई है। जिसके लिए सभी संस्थाओं और बुद्धिजीवियों को इस ओर कदम बढ़ाना होगा।