खरसावां के मां आकर्षिणी मंदिर की आखान यात्रा का है खास
महत्व, इसके साथ ही शुरू होता है नव वर्ष, देवी अपने आकर्षण
शक्ति से भक्तों को हाजिरी लगाने के लिए करती है मजबुर….
(15 जनवरी मां आकर्षिणी आखान यात्रा पर विशेष)
सरायकेला Sanjay । यज्ञों में जो महत्व अश्वमेघ का है। पर्वतों में जो महत्व हिमालय का है, उसी तरह यात्राओं में आखान यात्रा को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानते हुए नव वर्ष की शुरूआत की जाती है। खरसावां के आकर्षिणी पहाडी पर्यटन स्थल के साथ-साथ एक धार्मिक आस्था केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुका है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण इस देवी स्थल पर मान्यता के अनुसार मांगी गई हर मुरादे पूरी होती है। भक्तों का विश्वास है कि यह ग्राम देवी अपने आकर्षण शक्ति से न केवल भक्तों को अपने दरबार में हाजिरी लगाने के लिए मजबुर करती है। बल्कि दूर दराज के बादलों को भी आकृष्ट कर बर्षा कराने में सफल होती है। संभवत इस शक्ति के कारण इस देवी स्थल का नाम आकर्षिणी पड़ा है। स्थानीय मान्यता के अनुसार आकर्षिणी माता की सात बहने अलग अलग जगहों में स्थापित होकर पूजी जाती है। देवी खिचींग उडीसा में, मां रंकिणी जादुगोड़ा के कापाड़गादी में, द्वारर्षिणी खरसावां के हुडांगदा में, मुमुक दोरह विषेईगोड़ा खरसावां में, केरा देवी चक्रधरपुर में, देवी कंसरा कंसरा में, तथा देवह नेडी दोरह देवी मां आकर्षिणी की बहने है। क्षेत्रवार माता आकर्षिणी सहित इन बहनों का भी अत्यधिक महत्व है।
विभिन्न स्थानो में होती है पाठ :-
खरसावां के चिलकू गांव में मदरू पाठ व जठिया पाठ, बीटापुर में बिटठा पाठ, सीनी में गांरगाडिया पाठ, जमशेदपुर के दलमा में दलमा पाठ, पोटका में हरना पाठ, एवं सरायकेला में भुरसा पाठ के रूप में जाने जाते है।
चार पूजा परंम्पराओं का होता है आयोजन :-
आकर्षिणी माता के मंदिर में चार पूजा परंम्पराओं का अयोजन होता है। जांताल पूजा सावन माह के दसवीं को आयोजित की जाती है। इस तिथि में देवी आकर्षिणी को स्नान कराया जाता है। जांताल पूजा में 112 मौजा के किसान इस पूजा में भाग लेते है। इसका उदेश्य यह है कि धान की खेती के लिए बर्षा की कमी न हो। सृष्टि के लिए की जाने वाली इस पूजा में आदिवासी युवक व युवती एक साथ नृत्य करते है। मकर संक्राति 14 जनवरी के दिन सुबह से भक्तों का तांता लगा रहता है। जबकि 15 जनवरी को आखान यात्रा में भी देवी से आशीर्वाद लेकर नव वर्ष का शुभारंभ करते है।