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डायन के कलंक से मुक्ति दिलाने और पुनर्वास के लिए पद्मश्री छुटनी महतो का सफर जारी…..

बीते वर्ष डायन प्रताड़ना की शिकार हुई महिला के पुत्र के नामांकन के लिए सरायकेला पहुंची…

सरायकेला Sanjay । कहते हैं कि काम का जुनून यदि आत्मविश्वास से भी आगे बढ़ जाए तो बढ़ती उम्र भी मायने नहीं रखती है। कुछ ऐसा ही वाक्या पद्मश्री छुटनी महतो के साथ देखा जा रहा है। 65 वर्ष के उम्र में आज भी पद्मश्री छुटनी महतो का जज्बा समान रूप से कायम है। समाज में आज भी कहीं डायन कुप्रथा के प्रचलन की बात हो या फिर डायन पीड़ित के पुनर्वास का मामला हो, पद्मश्री छुटनी महतो के कदम बरबस सहयोग के लिए उस ओर बढ़ चलते हैं।

एक ऐसा ही मामला बुधवार को सामने आया। जब पद्मश्री छुटनी महतो ने डायन प्रताड़ना की शिकार महिला के पुत्र के नामांकन के लिए सरायकेला पहुंची। और विभाग से नामांकन संबंधी जानकारी हासिल की। मामले के संबंध में उन्होंने बताया कि खरसावां थाना क्षेत्र के दीरीगोड़ा गांव की रहने वाली जोबा मांझी पर बीते 4 जुलाई को डायन होने का कलंक लगा था। जिसके बाद जोबा मांझी ने पुलिस अधीक्षक को इसकी सूचना देते हुए पद्मश्री छुटनी महतो के बीरबांस स्थित परिवार परामर्श केंद्र शाखा कार्यालय में शरण ली थी।

जिसके बाद पद्मश्री छुटनी महतो और पुलिस प्रशासन के सहयोग से मामले को सुलझाया गया। पीड़ित जोबा मांझी के परिवार का जीवन एक बार फिर से पटरी पर लौटा। और उसका पति दुखु माझी कामकाज कर परिवार चलाने लगा। परंतु पूरे मामले में पीड़ित जोबा मांझी के बेटे की पढ़ाई बाधित हो गई। जिसकी जानकारी पद्मश्री छुटनी महतो को मिलने के बाद उन्होंने दोनों पति पत्नी के साथ सरायकेला पहुंचकर अनुसूचित जनजाति बालक आवासीय विद्यालय संजय में नामांकन लेने की प्रक्रिया की जानकारी हासिल की।

बताया गया कि आवेदन की तिथि प्रकाशित होने के पश्चात ही आवेदन के माध्यम से नामांकन की प्रक्रिया हो सकेगी। पद्मश्री छुटनी महतो ने कहा कि आज चांद पर कॉलोनी बनाने की सोच रहे हाईटेक दुनिया में डायन कुप्रथा का प्रचलन समाज के लिए शर्मनाक है। और इसके उन्मूलन के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा।

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