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रोहिण के साथ शुरू हुआ परंपरागत वार्षिक कृषि कार्य…

विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर खेतों में चला हल….

सरायकेला। परंपरागत कृषि पद्धति में रोहिण का विशेष महत्व है। शुक्रवार से शुरू हुए रोहिण के साथ परंपरागत कृषि कार्य का शुभारंभ किया गया। इसके तहत गौशाला को गोबर से लिप कर शुद्ध करते हुए साफ सफाई की गई। जिसके बाद हल को धोकर साफ किया गया। और बैलों को नहला कर तैयार किया गया।

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जिसके बाद हल और बैल की पूजा की गई। परंपरा अनुसार घर की बुजुर्ग सधवा महिला द्वारा हल बैल की पूजा करते हुए बैलों का चुमावन किया गया। जिसमें बैल के सिंग पर तेल और सिंदूर लगाए गए। और बैलों को विशेष रूप से तैयार किए गए खीर का मीठा पकवान खिलाया गया। इसके बाद किसान हल और बैल को लेकर खेतों में गए। जहां इष्ट देव की आराधना करते हुए खेत की जुताई की गई। मौके पर धान के बीज की छिंटाई भी खेतों में की गई। इस अवसर पर घरों में विशेष रूप से शुद्धता के साथ खीर और नीम पत्ता देकर बैगन का भाजा पकाया गया। जिसे पूरा परिवार द्वारा सामूहिक रूप से भोजन कर ग्रहण किया गया।

क्या है मान्यता :-

परंपरागत कृषि कार्य में 7 दिनों की रोहिण उसके बाद 7 दिनों का डाहा और उसके बाद 2 दिनों की आम डाल नीम डाल की परंपरा है। किसान मनोज महत्व बताते हैं कि रोहिण में धान के बीज की छिंटाई नहीं कर पाने पर किसान डाहा में खेतों में धान के बीज की छिंटाई करते हैं। हालांकि खेतों में हल चलाने की शुरुआत अक्षय तृतीया से ही हो जाती है। परंतु मान्यता रही है कि रोहिण से पूजा आराधना के साथ खेतों की जुताई और धन की छिंटाई करने से वार्षिक कृषि कार्य सफल और अच्छा होता है।

शुभ संयोग रहा रोहिण का :-

रोहिण के शुरुआत के साथ ही शुक्रवार की सुबह हल्का बूंदाबांदी होने से किसान इसे अति शुभ संयोग मान रहे हैं। किसानों का मानना है कि रोहिण में बारिश का होना अच्छे कृषि कार्य के लिए शुभ संकेत है। शुक्रवार की सुबह हुई हल्की बूंदाबांदी से परंपरागत कृषि कार्य की शुरुआत कर रहे किसानों में खुशी की लहर देखी गई। बताया गया कि मानसून की स्थिति यदि इस वर्ष ठीक ठाक रही तो बेहतर कृषि उपज प्राप्त होने की संभावना है।

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