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जगन्नाथ रथ यात्रा:

नेत्र उत्सव पर 15 दिनों बाद महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने नवयौवन रूप में अपने भक्तों को दिए दर्शन, हुई विधि विधान के साथ पूजा अर्चना…

सरायकेला – संजय कुमार मिश्रा

सरायकेला। जगत के नाथ महाप्रभु श्री जगन्नाथ कलियुग में जीवंत देव के रूप में पूजे जाने वाले देव हैं। जगन्नाथ संस्कार और संस्कृति के विषय में मान्यता रही है कि महाप्रभु के सभी धार्मिक अनुष्ठान जीवन से जुड़े हुए हैं। जिसमें देवस्नान पूर्णिमा पर बीते 4 जून को शाही औषधीय सहस्त्रस्नान के पश्चात चढ़ावे की भोग प्रसाद में खीर खिचड़ी के साथ खट्टे आमड़े की सब्जी का सेवन कर महाप्रभु ज्वर से पीड़ित होकर बीमार हो गए थे।

जिसके बाद श्री मंदिर के अन्नसर गृह में स्वास्थ्य लाभ करते हुए इलाजरत थे। यहां श्री मंदिर के पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा उनकी सेवा की जा रही थी। और इस दौरान महाप्रभु को प्रतिदिन भोग के रूप में सिर्फ चूड़ा का सेवन कराया जा रहा था। औषधीय इलाज के रूप में परंपरा अनुसार माली परिवार द्वारा बीमार होने के 5 दिनों पश्चात पंचमूल औषधि तैयार कर सेवन कराया गया। और उसके 10 दिनों बाद महाप्रभु को 18 जून को दशमूल औषधि का सेवन कराया गया। जिसके पश्चात महाप्रभु श्री जगन्नाथ स्वस्थ होकर आगामी 19 जून को नेत्र उत्सव के अवसर पर नवयौवन रुप में अपने भक्तों को 15 दिनों बाद दर्शन दिये।

महाप्रभु के लिए तैयार हुआ राजमुकुट:- स्वस्थ होने के पश्चात 19 जून को महाप्रभु श्री जगन्नाथ के नवयौवन रूप की सज्जा के लिए राजमुकुट तैयार हुआ। परंपरानुसार सरायकेला के माली परिवार के मुकुट घर में शिवरंजन मालाकार द्वारा महाप्रभु श्री जगन्नाथ सहित माता सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के लिए मुकुट तैयार कर श्री मंदिर लाया गया। इसके साथ ही माली परिवार द्वारा परंपरा के तहत महाप्रभु श्री जगन्नाथ के लिए तुलसी, माता सुभद्रा के लिए लाल और सफेद फूल एवं बड़े भाई बलभद्र के लिए बेलपत्र लाया गया। जिससे पुजारियों द्वारा विधि विधान के साथ मंत्रोच्चार के बीच पूजा अर्चना की गई।

नेत्र उत्सव पर महाप्रभु श्री जगन्नाथ में अपने भक्तों को नवयौवन में दिया दर्शन:-

15 दिनों की अस्वस्थता के पश्चात स्वस्थ होकर महाप्रभु श्री जगन्नाथ बुधवार को अन्नसर गृह से बाहर आए। इसके पश्चात महाप्रभु जगन्नाथ को विधिवत स्नान कराकर नए वस्त्र और नए मुकुट धारण कराकर श्री मंदिर स्थित सिंहासन पर बहन माता सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ विराजमान कराया गया। जहां श्री मंदिर के पुजारी सह सेवक पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते हुए खीर खिचड़ी का भोग का चढ़ावा चढ़ाया गया। जिसके बाद जगन्नाथ सेवा समिति की उपस्थिति में खीर खिचड़ी के प्रसाद को जगन्नाथ भक्तों के बीच वितरण किया गया। इस अवसर पर जगन्नाथ भक्तों ने महाप्रभु श्री जगन्नाथ के नवयौवन रूप का दर्शन करते हुए पूजा अर्चना किए। और सुख समृद्धि की मंगल कामना की। बताते चलें कि मंगलवार को महाप्रभु श्री जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ हवा खोरी के लिए मौसी बाड़ी जाने की रथ यात्रा करेंगे।

महाप्रभु आज करेंगे रथ यात्रा; सरायकेला राजा करेंगे छैंरा-पौंरा:-

जगन्नाथ धाम पुरी के तर्ज पर सरायकेला में आयोजित होने वाली परंपरागत रथ यात्रा के तहत महाप्रभु श्री जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ मंगलवार को मौसी बाड़ी गुंडिचा मंदिर जाने के लिए रथ यात्रा करेंगे। इस अवसर पर परंपरा के तहत महाप्रभु श्री जगन्नाथ के रथारुढ़ होने के क्रम में आने वाले मार्ग पर महाप्रभु के आगे चलते हुए सरायकेला राजा प्रतापादित्य सिंहदेव कुछ मिश्रित जल से मार्ग में छिड़काव करते हुए कुश के झाड़ू से मार्ग को बुहारेंगे। प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा को छैंरा-पौंरा कहा जाता है। इसके साथ ही सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव विशेष पूजा अर्चना कर महाप्रभु श्री जगन्नाथ सहित बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को रथारुढ़ कराते हुए मौसी बाड़ी गुंडिचा मंदिर प्रस्थान के लिए विदा करेंगे।

जाने जगन्नाथ संस्कृति को:-

1. ईश्वर होते हुए भी आम जीवन से जुड़े घटनाओं का धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
2. कलियुग में टूट रहे रिश्ते नाते को जोड़ने का संदेश देते हुए महाप्रभु अपने बड़े भाई और बहन के साथ होते हैं। और रथ यात्रा करते हैं।
3. एकमात्र देव जो अपने भक्तों से मिलने के लिए साल में एक बार रथ यात्रा कर श्री मंदिर के बाहर भक्तों के बीच पहुंचते हैं।

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