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इंडिया को भारत में बदलने की सोच से 68 एकड़ बंजर जमीन में तैयार हो रहा है,

मैन्युफैक्चरिंग ऑफ़ हैप्पीनेस, व्हेयर यू आर विद व्हाट यू हैव।

सरायकेला। कहते हैं कि खुशियां यदि किसी फैक्ट्री में बनती तो हर पैसे वाला आदमी खुशहाल होता। परंतु अकाट्य सत्य है कि पैसों से कभी खुशियां नहीं खरीदी जा सकती। लेकिन दलमा वन्य जीव अभयारण्य की खूबसूरत वादियों के बीचो बीच खुशियों को बनाने की फैक्ट्री डाली जा रही है। जहां खुशियां इस प्रकार मिलेंगी कि आप जो भी हैं के साथ आप जहां भी हैं, आपके लिए खुशियां बनेगी। देश के मिसाइल मैन स्वर्गीय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की प्रेरणा से ऐसे ही मैन्युफैक्चरिंग हैप्पीनेस को लेकर प्रोफेसर संतोष शर्मा कार्य कर रहे हैं।

जिन्होंने 68 एकड़ बंजर जमीन पर दलमा वन्य जीव आश्रयणि के बीचो बीच मैन्युफैक्चरिंग हैप्पीनेस शुरू की है। जिसका उद्देश्य वर्तमान में इंडिया और भारत के बीच बने गैप के लिए पुल का निर्माण करना है। प्रोफेसर शर्मा बताते हैं कि अपने 120 एंट्रोप्रेन्योरवस के साथ वे देश के अलग-अलग 120 शहरों में ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। जिसमें शहर से सटकर ग्रामीण परिवेश में सुकून भरे समय का एहसास दिलाया जा रहा है। प्रोफेसर शर्मा बताते हैं कि उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक डिजोल्भ दि बॉक्स को देखने के लिए जब स्वर्गीय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें बुलाया था तब ऐसी खुशियों पर काफी कुछ प्रेरणा उनसे मिली है। वे बताते हैं कि डिजोल्भ दि बॉक्स पुस्तक के माध्यम से मनुष्य के शरीर के मस्तिष्क के अंतर्शक्ति को जगा कर अपने अंदर खुशियां तलाशने का प्रयास किया गया है। इसे लेकर कुल 28 बिंदुओं पर काम करते हो लोगों को जागरूक किया जा रहा है।

68 एकड़ में बन रहा है मैन्युफैक्चरिंग हैप्पीनेस व्हेयर यू आर विद व्हाट यू हैव : –

यहां 68 एकड़ भूमि पर ऑर्गेनिक फार्म, फार्म टूरिज्म एवं डेयरी फार्म का विकास किया जा रहा है। जिसके प्रथम चरण में डेयरी फार्म में एक सौ गायों का पालन पूरी तरह से देसी तरीके से किया जा रहा है। वर्तमान में फार्म के लिए लगभग 160 महिला एवं पुरुष मजदूर स्वैच्छिक माहौल में उक्त फार्म से जुड़े हुए हैं। जिसे आगे चलकर युवाओं को उक्त चित्र से जोड़कर स्मार्ट फार्म के रूप में विकसित किए जाने की योजना है।

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यहां कामगारों को मिलता है अद्भुत मेहनताना : –

फार्म से जुड़े प्रत्येक मजदूर को प्रतिदिन आधा लीटर दूध पीने के लिए दी जाती है। साथ ही पुरुष मजदूर के मजदूरी के पैसे उस मजदूर के पत्नी के हाथों में दी जाती है। ताकि पुरुष मजदूर पैसों का दुरुपयोग नशा पान के लिए ना कर सकें।

इंडिया को भारत में बदलने की सोच :-

प्रोफेसर संतोष शर्मा ने बताया कि एक अंतरिक्ष शोध बताती है कि शहरों की तुलना में कहीं अधिक खुशियां गांवो में देखी जाती है। जिसका तात्पर्य है कि खुशियों से दौलत का कोई संबंध नहीं है। सुकून भरी जीवन के कुछ पल देने का प्रयास मैन्युफैक्चरिंग हैप्पीनेस व्हेयर यू आर विद व्हाट यू हैव के माध्यम से किया जा रहा है। पूरी तरह से नैसर्गिक और ऑर्गेनिक माहौल में टूरिज्म का विकास कर युवाओं को इससे जोड़ने की योजना है। ताकि युवाओं में गैर संस्कारी आधुनिकता के भटकावपन को रोका जा सके। तब नव भारत की कल्पणा किया जा सकता है ।

 

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