यहां लगता है विश्व का एकमात्र महिला मेला, बाबा गर्भेश्वर
महादेव की आराधना के साथ महिलाएं मनाती है पिकनिक….
सरायकेला। महिला सशक्तिकरण की बात की जाए तो सरायकेला की प्राचीन काल से चली आ रही अनूठी महिला मेला इसका श्रेष्ठ उदाहरण रहा है। यहां के खरकाई नदी के बीचो बीच चट्टानों की चादर से बिछी मिरगी चिंगड़ा स्थल पर विश्व का एकमात्र महिला मेला का आयोजन किया जाता है।
आखान जात्रा 15 जनवरी के बाद आने वाले पहले शनिवार को यहां महिला मेला के आयोजन की परंपरा रही है। जहां महिलाएं और युवतियां नंगे पांव चलकर मिरगी चिंगड़ा पहुंचती हैं। और चट्टानों के बीचो बीच स्थित बाबा गर्भेश्वर महादेव की आराधना भक्ति भाव से करती हैं। मान्यता रही है कि आखान जात्रा के बाद आने वाले पहले शनिवार को श्रद्धा भाव के साथ मिरगी चिंगड़ा स्थित बाबा गर्भेश्वर महादेव की आराधना से नि:संतान महिला को संतान की प्राप्ति होती है। तथा घर में सुख शांति एवं समृद्धि का आगमन होता है। इसके अलावा युवतियों को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
ऐसे होता है महिला मेला :-
प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा के तहत शनिवार आगामी 15 जनवरी को ही मिरगी चिंगड़ा में परंपरागत महिला मेला का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर गर्भेश्वर महादेव बाबा के पुजारी पंडित बालक दास द्वारा मंत्रोच्चार के बीच बाबा गर्भेश्वर महादेव की पूजा संपन्न कराई जाएगी। पूजा आराधना के पश्चात महिलाओं द्वारा अपने साथ लाए गए खाद्य सामग्रियों से भोजन पकवान तैयार किया जाता है। जिसके बाद सामूहिक रूप से बैठकर भोजन का आनंद लिया जाता है। इस अवसर पर मिरगीचिंगड़ा क्षेत्र में सौंदर्य प्रसाधन और खानपान के स्टॉल भी लगाए जाते हैं। जिसमें मेला पहुंची महिलाओं द्वारा खरीददारियां भी की जाती है।
परंपरा जो बदल रहा है :-
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि उक्त महिला मेला में पुरुषों का प्रवेश हमेशा से वर्जित रहा है। और इस दिन पुरुष घरों पर आते हुए घर का काम कर भोजन पकाने और परिवार को संभालने का काम किया करते हैं। परंतु वर्तमान के समय में इसमें खासा परिवर्तन आया हुआ देखा जा रहा है। महिला मेला में इन दिनों परंपरा के विरुद्ध पुरुष भी पहुंचते हुए देखे जा रहे हैं।
पांडवों के अज्ञातवास का प्रतीक रहा है मिरगीचिंगडा स्थल :-
जानकार बताते हैं कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र से होकर गुजरे थे। जिनके प्रमाण चिन्ह मिरगीचिंगड़ा के चट्टानों पर वर्षों तक चांद तारा और पद चिन्हों के रूप में देखी जाती रही है। परंतु बाद के दिनों में चट्टानों के अवैध उत्खनन के कारण ऐसे प्रमाण चिन्ह अब लुप्त हो चुके हैं। मान्यता रही है कि चट्टानों के गर्भ में स्थित बाबा गर्भेश्वर महादेव की आराधना अज्ञातवास के दौरान यहां से गुजरते हुए पांडवों ने की थी।