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सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा)  वैश्विक महामारी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए सरायकेला,खरसावां,सीनी,गम्हरिया,आदित्यपुर,कांड्रा,चांडिल,नीमडीह व राजनगर के सभी आनन्दमार्गी अपने अपने घरों में रहकर वेब टेलीकास्ट से कौशिकी दिवस मनाये। इस दौरान साधकों ने कौशिकी नृत्य का अभ्यास किया। आनंद मार्ग के प्रवर्तक श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने आज ही के दिन 6 सितंबर 1978 को कौशिकी नृत्य का प्रवर्तन किया था। कौशिकी नृत्य की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य सत्याश्रयानन्द अवधूत ने कहा कि भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी कौशिकी नृत्य के जन्मदाता हैं। यह नृत्य शारीरिक और मानसिक रोगों की औषधि है। विशेषकर महिला जनित रोगों के लिए रामबाण है। इस नृत्य के अभ्यास से 22 रोग दूर होते हैं। सिर से पैर तक अंग- प्रत्यंग और ग्रंथियों का व्यायाम होता है। मनुष्य दीर्घायु होता है ।यह नृत्य महिलाओं के सु प्रसव में सहायक है। मेरुदंड के लचीलेपन की रक्षा करता है ।मेरुदंड, कंधे ,कमर, हाथ और अन्य संधि स्थलों का वात रोग दूर होता है। मन की दृढ़ता और प्रखरता में वृद्धि होती है । महिलाओं के अनियमित ऋतुस्राव जनित त्रुटियां दूर करता है। ब्लाडर और मूत्र नली में के रोगों को दूर करता है। देह के अंग-प्रत्यंगों पर अधिकतर नियंत्रण आता है। कौशिकी नृत्य त्वचा पर परी झुर्रियों को ठीक करता है। आलस्य दूर भगाता है। नींद की कमी के रोग को ठीक करता है। हिस्टीरिया रोग को ठीक करता है। भय की भावना को दूर कर के मन में साहस जगाता है। निराशा को दूर करता है। अपनी अभिव्यंजना क्षमता और दक्षता वृद्धि में सहायक है। रीड में दर्द, अर्श, हर्निया, हाइड्रोसील ,स्नायु यंत्रणा और स्नायु दुर्बलता को दूर करता है। किडनी, गालब्लैडर, गैस्ट्राइटिस, डिस्पेप्सिया, एसिडिटी ,डिसेंट्री ,सिफलिस, स्थूलता ,कृशता और लीवर की त्रुटियों को दूर करने में सहायता प्रदान करता है। 75 से 80 वर्ष की उम्र तक शरीर की कार्य दक्षता को बनाए रखता है।

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