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नुआखिया जाताल के अवसर पर क्षेत्र के ईष्ट देवी मां पाउड़ी को चढ़ा नए अनाज का पहला भोग

एसडीओ ने माता के दरबार में मत्था टेकते हुए क्षेत्र की खुशहाली की मंगलकामना की

सरायकेला-खरसावां (संजय मिश्रा)  अंग्रेजों के जमाने में प्रिंसली स्टेट रहे सरायकेला के देश की आजादी के बाद हुए सरकार के साथ मर्जर एग्रीमेंट के तहत राज्य सरकार द्वारा सरायकेला के सभी स्थानीय पूजा संस्कारों का निर्वहन किया जाता है। इसके तहत मां दुर्गा की वार्षिक पूजन उत्सव के साथ-साथ अन्य सभी पूजा परंपराएं और विशेष रूप से चैत्र पर्व का आयोजन किया जाता है। इसी क्रम में क्षेत्र की परंपरागत नूआखिया जाताल पूजा का आयोजन शनिवार को किया गया। जिसमें सरायकेला के पाउड़ी मेल स्थित पाउड़ी स्थान में क्षेत्र की ईष्ट देवी मां पाउड़ी की विधि विधान के साथ आह्वान करते हुए पूजा अर्चना की गई। परंपरानुसार राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला के पदेन सचिव सरायकेला अनुमंडलाधिकारी राम कृष्ण कुमार बतौर यजमान केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक के साथ मां पाउड़ी की पूजा अर्चना किए।

मौके पर उन्होंने माता के दरबार में मत्था टेकते हुए क्षेत्र के सुख शांति एवं समृद्धि खुशहाली की मंगल कामना की। इस अवसर पर मां पाउड़ी को खेतों से आए पहले अनाज का अन्न भोग खीर खिचड़ी का चढ़ावा चढ़ाया गया। पूरी तरह से कोविड-19 गाइडलाइन का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ संपन्न हुई उक्त पूजन कार्यक्रम के अवसर पर केंद्र के पूर्व अनुदेशक विजय साहू एवं कलाकार सुशांत महापात्र सहित अन्य सभी भक्त मौजूद रहे।

मां पाउड़ी के पूजन के पश्चात सरायकेला स्थित झुमकेस्वरी स्थल में गुरु तपन कुमार पटनायक द्वारा मां झुमकेस्वरी की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की गई। केंद्र के समस्त कलाकारों की उपस्थिति में इस अवसर पर सामूहिक प्रार्थना करते हुए क्षेत्र के सुख शांति एवं समृद्धि की मंगल कामना के साथ साथ देश और विश्व की कोरोना से मुक्ति के लिए प्रार्थना की गई। इसके बाद सामूहिक रूप से माता को चढ़ाए गए प्रथम अनाज के अन्न भोग का प्रसाद स्वरूप सामूहिक सेवन किया गया।

नुआखिया जाताल पूजा :-

क्षेत्र की धार्मिक परंपरा के अनुसार खेतों से आए पहले अनाज का अन्न भोग क्षेत्र की इष्ट देवी मां पाउड़ी को अर्पण करने के पश्चात ही घरों में नए अनाज के पकाए जाने की परंपरा है। जिसे नुआखिआ जाताल पूजा के रूप में मनाया जाता है। जिसमें माता के दर्शन के साथ साथ खेतों से आए प्रथम अनाज के भोग के रूप में चढ़ावा चढ़ाया जाता है।

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