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यहां तांत्रिक मत से होती है मां दुर्गा के शक्ति स्वरूप की आराधना, 345 वर्ष पुरानी है मां दुर्गा का पूजनोत्सव

सरायकेला खरसावां (संजय मिश्रा)  जिले के शारदीय नवरात्र के आगमन को लेकर क्षेत्र में मां दुर्गा के वार्षिक पूजन उत्सव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। इसी के तहत सरायकेला के सबसे प्राचीन पब्लिक दुर्गा पूजा कमेटी की बैठक कर सर्वसम्मति से पूजन उत्सव संचालन को लेकर नई कमेटी का पुनर्गठन किया गया। इसे लेकर पब्लिक दुर्गा पूजा मंडप प्रांगण में सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव की अध्यक्षता में बैठक की गई।

जिसमें आगामी दुर्गा पूजा के सभी परंपरागत पूजा संस्कारों सहित आयोजन को लेकर विचार विमर्श करते हुए सर्वसम्मति से कमेटी का पुनर्गठन किया गया। जिसमें राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव को अध्यक्ष, श्रीधर सिंहदेव एवं त्रिविक्रम सिंहदेव को उपाध्यक्ष, भोला महंती को सचिव, सुदीप पटनायक और पवन कवि को सह सचिव, पप्पू सामंत को कोषाध्यक्ष, शंभू पटनायक एवं सरोज कुमार कर को सह कोषाध्यक्ष, रजत पटनायक को कला सचिव, मनोरंजन साहू को सह कला सचिव, सनत सामल, सीताराम साहू, लिपू महंती, तारक महापात्र, बड़ाबाबू सिंहदेव को मेला कंट्रोलर बनाया गया। बैठक में पूर्व कोषाध्यक्ष दीपेश रथ द्वारा पूर्व के पूजन उत्सव के आय-व्यय का ब्यौरा दिया गया। और सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि मां दुर्गा वार्षिक पूजन उत्सव को लेकर सरकार द्वारा जारी होने वाले गाइडलाइन का पालन करते हुए परंपरागत पूजा संस्कारों के साथ मां दुर्गा का वार्षिक पूजन उत्सव मनाया जाएगा। इस अवसर पर सनज साहू, देविप्रसन्न सारंगी, सुशांत आचार्य, नीलमाधव भोल, राजेश महंती, अनंत आचार्य, दशरथी परीक्षा, परेश महंती, अनिल महंती, काशीनाथ कर, दिनेश साथुआ, सहदेव कर, दयाशंकर सारंगी, बबलू गुप्ता, राकेश कवि, धीरू सारंगी, आकाश कर, शंकर सतपथी, दिनेश रथ, नरसिंग सुतार, मुन्ना दाश, अमित दाश, शुभम कर, आकाश कर, मुन्ना महंती, पापुन रथ, मिंटू कार्जी, दिपुन रथ, मुन्ना महाराणा सहित दर्जनों की संख्या में गणमान्य उपस्थित रहे।

इतिहास के झरोखे में पब्लिक दुर्गा पूजा:-

पब्लिक दुर्गा पूजा कमिटी सरायकेला के तत्वाधान तांत्रिक मत से मां दुर्गा की आराधना का इतिहास तकरीबन 345 वर्ष पुराना रहा है। जानकार बताते हैं कि सरायकेला रजवाड़े के समय से ही तत्कालीन शासक राजा अर्जुन सिंह ने अपनी प्रजा के लिए दुर्गा पूजा के सार्वजनिक आयोजन को लेकर वर्ष 1676 ईस्वी में कमेटी स्थापित कर पूजा का शुभारंभ आया था। राजमहल परिसर से बाहर आम जनता के लिए किए जाने वाले इस पूजन में जनता द्वारा दिए जाने वाले चंदे से विशेष व्यवस्था की जाती थी। तब से लेकर आज तक इस कमेटी के पदेन अध्यक्ष सरायकेला के परंपरागत राजा होते हैं। परंतु आयोजन में आम जनता की सहभागिता के कारण कमेटी का नाम पब्लिक दुर्गा पूजा कमेटी रखा गया है।

महासंधि पूजा पर है खास विधान:-

तांत्रिक मत से पूजन उत्सव के तहत यहां महाष्टमी और महानवमी की मध्य रात्रि को महासंधि पूजा का आयोजन किया जाता है। जिसमें माता की प्रसन्नता के लिए उनके चरणों में भैंसे की बलि दिए जाने की परंपरा है। रजवाड़ी के जमाने के समय के विषय में बताया जाता है कि उस जमाने में तोप की आवाज के साथ बलि दी जाती थी। इसके तहत तत्कालीन पोड़ाहाट राज्य अंतर्गत सबसे पहले चक्रधरपुर स्थित मां केड़ा मंदिर में बलि के पश्चात तोप दागा जाता था। जिसकी आवाज को सुनकर सरायकेला स्थित पब्लिक दुर्गा पूजा मंडप में बलि दी जाती थी। यहां से तोप दागे जाने के पश्चात उसकी आवाज सुनकर दुगनी, बांकसाई और ईचा गढ़ों में भी तोप दाग कर माता की प्रसन्नता के लिए बलि अर्पण की जाती थी। मां दुर्गा की तांत्रिक मत से पूजा की परंपरा आज भी जीवित है। हालांकि तोप की आवाज का साथ अब छुट चुका है।

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