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डायन कुप्रथा के संघर्ष की गाथा छुटनी महतो को मिला संघर्ष का परिणाम, पद्मश्री सम्मान….

सरायकेला खरसावां जिले में लगातार दूसरे दिन भी पद्मश्री की खुशियां मिली है। कहते हैं कि अपनों के दिए दर्द लोगों को संघर्षशील बनाते हैं। कुछ इसी कहावत की मिसाल बन कर जिले सहित राज्य भर में डायन कुप्रथा के विरोध में संघर्ष का अलख जगा रही सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत एक छोटे से कस्बे बीरबांस की रहने वाली 63 वर्षीय छुटनी महतो को उनके लंबे संघर्ष का सम्मान पद्मश्री के रूप में मिला।

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मंगलवार को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा छुटनी महतो को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। जिसे लेकर छुटनी महतो के परिवार और स्थानीय जनों सहित जिले को मिले सम्मान को लेकर जिले भर में हर्ष देखा जा रहा है। छुटनी देवी ने इसे संघर्ष का सम्मान बताते हुए रूढ़िवादी समाज से डायन कुप्रथा के उन्मूलन को लेकर संघर्ष जारी रखने की बात कही है।

अपनों से मिले दर्द से मजबूत हुई छुटनी :-

वर्ष 1979 में छुटनी देवी की शादी गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत महताईनडीह गांव निवासी स्वर्गीय धनंजय महतो के साथ हुई थी। इस दौरान उन दोनों के 3 पुत्र और एक पुत्री का जन्म भी हुआ। शादी के लगभग 12 साल तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। वर्ष 1991 से छुटनी महतो के लिए शुरू हुआ संघर्ष का दौर। जब उनके अपनों ने ही उन पर डायन होने का आरोप लगा दिया। और घर में ही शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जाने लगी। इसे लेकर लोगों का रवैया बदल चुका था। और गांव में भी उन्हें नफरत की नजर से देखा जाने लगा। ऐसे में छुटनी देवी का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। और कई दिनों तक भूखे प्यासे रहना पड़ा था। उस समय के अपने दर्द को बताती हुई छुटनी कहती हैं कि वे अपनों से ही हार गई थी।

खुद को खड़ा करते हुए शुरू की संघर्ष का सफर :-

डायन प्रताड़ना से बच बचाकर छुटनी ने बीरबांस आकर एक झोपड़ी में अपने बच्चों के साथ नए जीवन की शुरुआत की। खुद अनपढ़ रहते हुए भी अपने बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। साथ ही खुद डायन के आरोप में प्रताड़ना झेल चुकी छुटनी ने समाज में डायन कुप्रथा से प्रताड़ित महिलाओं को कलंक भरी जिंदगी से उबारने का संकल्प लिया। और फिर डायन जैसी कुप्रथा को खत्म करने के अभियान में वर्ष 1992 से जुट गई। इसी दौरान डायन प्रथा के खिलाफ काम कर रही संस्था फ्री लीगल एड कमिटी फ्लैक से जुड़कर पीड़ित महिलाओं को समाज में सम्मान दिलाने और राह दिखाने का कार्य करने लगी। और तब से लेकर आज तक के संघर्ष भरे अपने इस सफर में अब तक कुल 127 पीड़ितों को डायन कुप्रथा से मुक्ति दिलाते हुए समाज में सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करने के अवसर प्रदान करने का काम किए हैं।

मिला है सम्मान भी :-

छुटनी देवी के संघर्ष सफर के क्रम में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंचों से सम्मान प्राप्त हुआ है। जिसमें इंटरनेशनल वूमेन डे की सोवेनियर में अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं की सूची में छुटनी देवी को छठवां स्थान मिला था।

” भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान के लिए हृदय से आभार है। डायन कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक मेरी जंग जारी रहेगी। इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त कानून बने और सख्ती से उसका अनुपालन हो। ताकि समाज में सभी सम्मान के साथ जीवन बसर कर सकें।”
छुटनी महतो
बीरबांस, सरायकेला खरसावां।
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