
सरायकेला-खरसावां (संजय कुमार मिश्रा) सरायकेला नगर पंचायत उपाध्यक्ष सह भाजपा नेता मनोज कुमार चौधरी ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि विदेशी शासन का गुलाम रहा। परंतु स्वतंत्र भारत में भी विदेशी मानसिकता की सरकारों ने भारतीय संस्कृति के साथ साथ भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा को भी दबाने का काम किया। उन्होंने कहा है कि कुछ सदियों से आधुनिक चिकित्सा पद्धति जिसे एलोपैथी भी कहा जाता है, प्रचलन में है। किंतु आयुर्वेद के प्रचलन का समय ज्ञात नहीं है। जिसे स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने जाना था। इसका मतलब है कि आयुर्वेद का ज्ञान प्राचीनतम रहा है। उन्होंने बताया है कि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति द्वारा 1970 के दशक में यह सिद्धांत किया गया कि नवजात शिशु को स्तनपान कराने वाली महिला को कैंसर होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। और उसके ठीक लगभग 20 वर्षों बाद सिद्धांत को उलट कर 1990 के दशक में कहा गया कि नवजात शिशु को स्तनपान नहीं कराने वाली महिला को कैंसर होने की संभावना ज्यादा है। जबकि आयुर्वेद के सिद्धांत इस तरह बदलते नहीं रहते हैं। क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा परीक्षित चिकित्सा विज्ञान है। आयुर्वेद की कोई भी शास्त्रीय दवा अभी तक ना तो निष्प्रभावी हुई है और ना ही हानिकारक। जबकि एलोपैथिक की कुछ दवाइयां कुछ वर्षों में ही या तो निष्प्रभावी हो जाती हैं यह हानिकारक हो जाती हैं। उन्होंने बताया है कि षड्यंत्र के तहत विदेशी शासन और अदूरदर्शी भारतीय शासन की भारत के गौरव को नष्ट करने वाली नीति के कारण आयुर्वेद को पीछे धकेल दिया गया है। वर्ष 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना से आयुर्वेद को प्रोत्साहन मिला। और आयुर्वेदिक कारगर उपचार को देखते हुए वर्ष 2020 में भारत सरकार ने आयुर्वेदिक वैद्यों को भी कुछ प्रकार की शल्य चिकित्सा करने की अनुमति दे दी। आयुर्वेद प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की सलाह देता है। सेहतमंद बने रहकर मोक्ष प्राप्त करना ही भारतीय ऋषियों का उद्देश्य रहा है। जिसमें आयुर्वेद कहता है कि पहला सुख निरोगी काया। आयुर्वेद का मानना है कि अधिकतर बीमारियों का जन्म स्थान व्यक्ति का दिमाग होता है। इच्छाएं, भाव, द्वेष, क्रोध, लालच, काम आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों से कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार भोजन को यदि उत्तम भावना और प्रसन्नता से पकाकर और उसी भावना से खाया जाए तो वह अमृत के समान गुणों का हो जाता है। उन्होंने कहा है कि अब हम अपनी संस्कृति और अपने प्राचीनतम आयुर्वेद को अपमानित होते हुए बर्दाश्त नहीं कर सकते।
