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(कार्तिक पूर्णिमा पर सरायकेला में दिखी बोईत बंदाण की प्राचीन परंपरा; श्रद्धालुओं ने

दीप जलाकर नदी में बहाए केले की काष्ठ से बनी नाव)

“बोईत बंदाण” प्राचीन ओडिशा, झारखंड के आर्थिक विरासत

की यादें : परिच्छा

सरायकेला। सरायकेला सहि झारखंड में जगन्नाथ संस्कृति का पवित्र कार्तिक स्नान, धार्मिक बालुका पूजा तथा ओडिशा के समृद्ध समुद्री इतिहास को याद करने वाला त्योहार बोईत बंदाण हर्ष उल्लास के साथ सरायकेला, खरसावां समेत दोनों सिंहभूम में मनाया गया। झारखंड में ओडिया भाषा संस्कृति के संरक्षक कार्तिक परिच्छा ने इस महान संस्कृति के धारक व उपासकों को बोईत बंदाण पर शुभकामनाएं देते हुए समृद्ध अतीत पर पर प्रकाश डालते हुए ओड़िया जाति पर महत्वपूर्ण जानकारी दी है। ऐतिहासिक ओड़िया देशी रियासत सरायकेला में जगन्नाथ संस्कृति से जूड़ा यहां कार्तिक महिने में सैकड़ों की संख्या में ओड़िया महिला ब्रत रख खरखाई नदी एवं विभिन्न जलाशयों में महिनों स्नान कर बालुका पूजा की। इस वर्ष भी सैकड़ों की तादाद में न केवल सरायकेला ही नहीं वल्कि गांव गांव में ऐतिहासिक वोईत बंदाण का आयोजन हुआ। मुख्य आयोजन माजना घाट सरायकेला में देखने को मिला।

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इसके बाद पूर्णिमा के दौरान बाली यात्रा जिसेमें बोइत बोदाण ऐतिहासिक उत्सव भी कहा जाता वह भी मना। परन्तु ग्रहण के कारण सोमवार देर रात ही आयोजन हुआ।यह पूरे ओडिशा राज्य में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण उत्सव होता है। कार्तिक पूर्णिमा के अन्तिम पांच दिन पंचुकों दिनों (कार्तिक महीने, अर्थात अक्टूबर-नवंबर, की पूर्णिमा शेष दिनों ) में बड़े ही ज़श्न के साथ बालुका पूजा संपन्न हुआ। उत्कलिय भाषा, संस्कृति एवं इतिहास के जानकार बताते हैं कि कलिंग साम्राज्य का इलाका अपने शानदार समुद्री इतिहास के लिए जाना जाता है। सरायकेला से महज ढाई सौ किलोमीटर दूर ताम्रलिपि बंदरगाह था। जहां सरायकेला से निर्मित रेशम का कपड़ा भी निर्यात होता था। तो उसी बंदरगाह से अशोक के पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा भी बौध धर्म प्रचार करने लंका गयी थी। कलिंग की भौगोलिक स्थिति के कारण, इस क्षेत्र में ईसा पूर्व काल से समुद्र व्यापार होते थे। चौथी और पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व से ही बंदरगाहों का निर्माण होने लगा था। जिसमे ताम्रलिप्ति, माणिकपटना, चेलिटालो, पलूर और पिथुंड जैसे कुछ प्रसिद्ध बंदरगाहों द्वारा भारत समुद्र के रास्ते अन्य देशों से जुड़ चुका था। इस व्यापार को करने वालों को साधव कहा जाता था।

इसके कारण जल्द ही कलिंग वासियों ने श्रीलंका, जावा, बोर्नियो, सुमात्रा, बाली और बर्मा के साथ व्यापारिक संबंध बना लिए। बाली उन चार द्वीपों का हिस्सा था जिसे सामूहिक रूप से सुवर्णद्वीप कहा जाता था, जिसे आज इंडोनेशिया के रूप में जाना जाता है। ओड़िया लोग इन द्वीपों में व्यापार कर जहा कलिंग को समृद्ध किया तो वीरों ने अनेकों जगह शासन व्यवस्था भी हाथ में रखते थे। कलिंग वासियों ने ‘बोइतो’ नाम की बड़ी नावों का निर्माण किया और इनकी मदद से उन्होंने इंडोनेशियाई द्वीपों के साथ न केवल व्यापार किया वल्कि कहीं कहीं उत्कलीय वीरों ने शासन करने लगे थे। इन जहाजों के ढाँचे तांबे के होते थे।

इनमें एक बार में सात सौ आदमी तो बीस हाथीं सवार किए जा सकते थे। ये हाथी आज के सरायकेला, सिंहभूम, बंगाल, छत्तीसगढ़ इलाके से पकड़े जाते थे। कार्तिक परिच्छा कहते हैं जिस चीन का खौफ आज दिखा जा रहा है वही चीन हमारे अनुसासित हाथी को युद्ध में प्रयोग हेतु खरीदता था। कोरिया में बसे कलिंग राट, उत्कल राट लोग हमारे उत्कलीय है। दिलचस्प बात यह है कि कभी बंगाल की खाड़ी को कलिंग सागर के रूप में जाना जाता था क्योंकि यह कलिंग के इन जहाजों से भरी होती थी। समुद्री मार्गों पर कलिंग वासियों के प्रभुत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि कालिदास ने अपनी ‘रघुवंश’ नामक रचना में कलिंग के राजा को ‘समुद्र का देवता’ कहा है।

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