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झारखंड में, सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं बल्कि भूमीज समुदाय के लोग भी होते हैं मंदिरों के पुजारी …

रिपोर्ट : दीपक नाग (झारखंड न्यूज ब्यूरो हेड)

रांची : सनातनी हिन्दू धर्म में यह परंपरा रहें है कि, मंदिरों में हो या कोई पूजा पाठ का अनुष्ठान हो पुरोहित ब्राह्मण ही होता है । पर झारखंड राज्य के कुछ प्रांतों में ऐसे मान्य है कि यहां के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों को समाज में परिचय झारखंड के भूमीज समुदाय के लोगों ने करवाया है । परिणाम स्वरूप आज भी इन मंदिरों के पुजारी भूमीज समुदाय का ही देखा जाता है । चलिए ले चलते हैं आपको ऐसे कुछ जाने-अनजाने मंदिरों के महत्व की ओर जिनकी जिज्ञासा दिलों अवश्य में हो रहा होगा ।

झारखंड राज्य के घाटशिला अनुमंडल में बसा जादूगोड़ा एक छोटासा पर महत्वपूर्ण जगह है। जादूगोड़ा भले ही छोटा सा इलाका है, पर भारत सरकार का बहुमूल्य खनिज “युरेनियम अयस्क” उत्पादन का केंद्र भी है ।‌ इसलिए हमारे देश के लिए जादूगोड़ा एक विशेष संरक्षित स्थान भी है । इसके अलावे इस पुरे क्षेत्र का रक्षा सदियों से करने वाली ईष्ट देवी यानी रंकिणी मां की प्राचीन मंदिर हो तो जाहिर है क्षेत्र का महत्व कुछ और ही होता है । यहां धालभूम क्षेत्र के लोगों के लिए रंकिणी मां आस्था, श्रद्धा और विश्वास से जुड़ा हुआ है । सीधे अल्फ़ाज़ में कहूं तो पुरे इलाके का ईष्ट देवी का स्वरूप के रूप में जाना जाता है । लोग भारी संख्या मे मंदिर आते हैं पूजा-अर्चना करने के लिए।‌ इतना ही नहीं शीत ऋतु के समय घाटशिला में पश्चिम बंगाल से असंख्य सैलानी घुमाने आते हैं। और वें भी जादूगोड़ा आकर मां रंकिणी का दर्शन करते हैं । इस मंदिर में श्रद्धालुओं का पूजा के लिए लाइन लगा रहता है । इस मंदिर में भीड़ उमड़ने का दो मुख्य कारण है ! पहला, धालभूम क्षेत्र के अलावा रंकिणी मां की मंदिर संभवतः पुरे देश और दुनिया में दुसरा कहीं नहीं है, जो स्वयं-भू हो । और दुसरी बात, जादूगोड़ा के रंकिणी मां की मंदिर भौगोलिक दृष्टिकोण से प्राकृतिक सौन्दर्य से धनी है। पाहाड़ों के तलहट्टी पर स्वयं-भू रंकिणी मां की मंदिर भक्त और सैलानी को हमेशा से आकर्षण का केंद्र बना |

एक और विषेश बात रंकिणी मां की मंदिर में ध्यान देने योग्य है, रंकिणी मां के किसी भी प्राचीन मंदिर में देवी की मूर्ति मानव निर्मित नहीं है। यह स्वयं-भू आकृति है । धालभूम क्षेत्र के भूमीज समुदाय जादूगोड़ा रंकिणी मां के मंदिर को शक्ति पीठ स्वरूप विश्वास करते हैं ।

बहरहाल, रंकिणी मां झारखंड के इस क्षेत्र में कहां से आकर स्थापित हूई ? कितना प्राचीन गाथा है ? इसकी एक किंवदंती गाथा हैं ।‌ इन्तजार किजिए जल्द ही आगे की बातें आपके समक्ष रखने का कोशिश करेंगे।

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