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vananchal24tvlive. समर्पित ….

माँ तो माँ होती है, चाहे तेरी हो या मेरी

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, विश्व के तमाम माताओं को अर्पित

 

बस से उतरकर …
जेब में हाथ डाला ।
मैं चौंक पड़ा,
जेब कट चुकी थी।

जेब में था भी क्या ?
कुल 90 रुपए और एक खत,
जो मैंने माँ को लिखा था, कि …
मेरी नौकरी छूट गई है ।
अभी 90 रू से ज्यादा नहीं भेज पा रहा हूँ ।

तीन दिनों से वह पोस्टकार्ड
जेब में पड़ा था.
पोस्ट करने को मन
ही नहीं कर रहा था.
90 रुपए जा चुके थे, यूँ तो 90 रू
कोई बड़ी रकम नहीं होती है ।
लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो,
उसके लिए 90 रु नौ सौ से कम नहीं होते ।
●●●
कुछ दिन गुजरे.
माँ का ख़त मिला ।
पढ़ने से पूर्व मैं सहम गया । जरूर पैसे भेजने को लिखी होगी
📍लेकिन,
खत पढ़कर मैं हैरान रह गया !
माँ ने लिखा था ् बेटा,
तेरा 1000 रु का मनीआर्डर
मुझे मिल गया है ।
तू कितना अच्छा है रे ..!!
पैसे भेजने में ….
कभी देरी नहीं करता ।

मैं इसी उधेड़-बुन में लग गया,
कि आखिर माँ को मनीआर्डर
किसने भेजा होगा ?

कुछ दिन बाद ….
एक और पत्र मिला.
चंद लाइनें थीं , आड़ी-तिरछी.
बड़ी मुश्किल से पत्र पढ़ पाया.

लिखा था ् भाई,
90 रुपए तुम्हारे, और
910 रुपए अपनी ओर से मिलाकर
मैंने तुम्हारी माँ को
मनीआर्डर भेज दिया है ।
फिकर न करना,
हर महिने भेजता रहूंगा।
माँ तो सबकी एक जैसी होती है न,
क्या तेरी और क्या मेरी, वह क्यों भूखी रहे ?

संदेश ….. दीपक नाग घाटशीला

 

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