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झारखंड गिल्ली डंडा एसोसिएशन कर रहा तैयारी…..

तकनीकी रूप से सज कर एक बार फिर दिखेगा भारत के गांव की गलियों का पारंपरिक खेल गिल्ली डंडा…

सरायकेला ( संजय मिश्र )। गांव क्षेत्र का परंपरागत खेल गिल्ली डंडा आज भी बड़े बुजुर्गों के जेहन में एक खुशनुमा याद की तरह रचा बसा है। जिसकी बात निकलते ही गांव क्षेत्र के बड़े बुजुर्ग अपने दिनों और गिल्ली डंडा खेल की मस्तियों को पूरे जोश के साथ याद करने लगते हैं। परंतु समय के साथ तेजी से हो रहे शहरीकरण और विशेष कर आधुनिकीकरण जिसमें मोबाइल युग ने आज की पीढ़ी को मोबाइल गेम में उलझा कर गिल्ली डंडा जैसे पारंपरिक खेल को भुलाने के लिए भी विवश कर रखा है।

हालांकि पुराने दिनों में गिल्ली डंडा खेल की पहचान अभिभावकों की नजर में आवारगी के रूप में रही बताई जाती है। परंतु इस सच्चाई को भी माना जा रहा है कि मोबाइल गेम की आदतन गिल्ली डंडा जैसे पारंपरिक खेल उसे समय के बच्चों में एकाग्रता और शारीरिक स्फूर्ति विकसित करने के लिए कारगर हुआ करता था।
बहरहाल गांव की गलियों की पारंपरिक गिल्ली डंडा खेल को एक बार फिर से तकनीकी रूप से स्थापित करने की कवायद की जा रही है। जिसमें इंडियन गिल्ली डंडा एसोसिएशन के मार्गदर्शन में झारखंड गिल्ली डंडा एसोसिएशन इसकी तैयारी की कर रही है।

गिल्ली डंडा खेल का इतिहास रहा है पुराना  :-

झारखंड गिल्ली डंडा एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव गणेश चंद्र कालिंदी बताते हैं कि गिल्ली डंडा दक्षिण एशिया से शुरू हुआ एक प्राचीन खेल है। जो आज भी पूरे दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से खेला जाता है। यह खेल सुदूर उत्तर में भूमध्य सागर और सुदूर पूर्व में दक्षिण पूर्व एशिया तक भी खेला जाता है। दो छड़ियों के साथ खेले जाने वाले इस खेल में बड़ी छड़ी डंडा और छोटी छड़ी गिल्ली के रूप में होती है।

जिसमें दंड का उपयोग गिल्ली को करने के लिए किया जाता है। इस खेल में क्रिकेट और बेसबॉल जैसे बल्ले और गेंद के खेल से कई समानताएं हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन खेल गिल्ली डंडा की उत्पत्ति संभवत 2500 वर्ष पूर्व भारत में हुई थी। वर्ष 2023 से भारत सरकार ने इस खेल को खेलो इंडिया इंडीजिनियस खेल में शामिल किया है। जिससे कि इस खेल में भी खिलाड़ियों को अन्य खेलों की तरह भविष्य में सुविधाएं दी जा सकती है।

झारखंड गिल्ली डंडा एसोसिएशन वर्ष 2024-25 में फिर से इस खेल को सुनियोजित तरीके से गांवों तक ले जाने का प्रयास कर रही है। इसके तहत लोगों और वर्तमान पीढ़ी को इस खेल से जोड़ने के लिए ग्रामीण स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज के दौर में मोबाइल फोन के ऑनलाइन खेलों में व्यस्त बच्चे, युवा सहित उम्रदराज महिला एवं पुरुषों को भी इस खेल के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।

एकदिवसीय प्रशिक्षण सह सेमिनार 23 को :-

उन्होंने बताया कि आगामी 23 मई को प्राकृतिक नजारे के बीच दलमा वन्य जीव अभ्यारण्य परिसर क्षेत्र में गिल्ली डंडा को लेकर एकदिवसीय प्रशिक्षण सह सेमिनार का आयोजन किया जाएगा। जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों के प्रतिनिधि भी सेमिनार में शामिल होंगे। इस अवसर पर गिल्ली डंडा एसोसिएशन के तकनीकी प्रमुख जीतू खालको और सरायकेला खरसावां जिला एसोसिएशन के प्रमुख मान सिंह बानरा मुख्य रूप से मौजूद रहे।

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